
Dr. Azam.type
May 20, 2025 at 02:33 PM
#शुरू_अल्लाह_के_नाम_से पार्ट 1
रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया :
" हर वह अहम काम जो अल्लाह के नाम से शुरू न किया जाए, अधूरा है."
चुनांचे आप ﷺ ने हर अहम काम को
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
( बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम)
से शुरू करने की ताकीद फरमाई है।
यहां तक के खाना खाते वक्त, पानी पीते वक्त, सवारी पर सवार होते वक्त, कोई ख़त या तहरीर लिखते वक्त, गर्ज़ हर काबिले जिक्र काम के शुरू में आप ﷺ
'बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम' पढ़ा करते थे।
बज़ाहिर यह एक छोटा सा अमल है, जिसे हम
एक रस्मी कार्रवाई समझकर नजरअंदाज कर देते हैं या छोटी सी सुन्नत समझ कर आम तौर छोड़ देते हैं ; लेकिन दर हकीकत यह कोई रस्म नहीं , बल्कि उससे एक बहुत बुनियादी फिक्र की आबयारी मकसूद है, यह एक ऐसी अहम हकीकत का एतेराफ है, जिसको सामने रखने से जिंदगी के सारे मसाइल के बारे में इंसान का पूरा नुक्ता ए नजर और मामलात तय करने के लिए उसकी पूरी अप्रोच ही बदल जाती है।
यह इस बात का ऐलान है कि इस कायनात का कोई ज़र्रा अल्लाह तआला के हुक्म में और उसकी मशिययत के बगैर हरकत नहीं कर सकता।
इंसान को अपनी अमली जिंदगी में असबाब इख्तियार करने का हुक्म जरूर दिया गया है , लेकिन न तो यह असबाब खुद ब खुद वजूद में आ गए हैं, और ना असबाब में ब-जाते खुद कोई कारनामा अंजाम देने की ताकत मौजूद है, हकीकत में इन असबाब को पैदा करने वाला और उनमें तासीर पैदा करके उनके नतीजे में वाकयात को वजूद में लाने वाला कोई और है।
उसकी एक सादा सी मिसाल यह है कि जब हम पानी पीना चाहते हैं तो बसा अवकात गफलत और बेखयाली के आलम में पी कर फारिग हो जाते हैं, एक जाहिर बीं इंसान ज्यादा से ज्यादा इतना सोच लेता है कि उसे यह पानी किस कुंवे, किस दरिया, किस झील या नहर से हासिल हुआ , लेकिन उस कुएं या दरिया और झील तक पानी कैसे पहुंचा !?
और इंसान की प्यास बुझाने के लिए अल्लाह तआला की कुदरत ए कामिला ने क़ायनात की कितनी क़ुव्वतें उस की खिदमत में लगा रखी हैं? और उसके लिए कैसा अजीबो-गरीब निजाम बनाया हुआ है !? उसका ध्यान बहुत कम लोगों को आता है.....।
(जारी..)