
محمد جمال الدین خان قادِری
May 12, 2025 at 03:39 PM
इख़्तिलाफ़ इख़्तिलाफ़ इख़्तिलाफ़ | क़िस्त़ ❺
✍ अ़ब्दे मुस़्त़फ़ा मुह़म्मद स़ाबिर इस्माई़ली
📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी रज़वी
*“मुजद्दिदे मिल्लत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान” के `21` ह़ुरूफ़ की निस्बत से इख़्तिलाफ़ी मसाइल और अकाबिरीने अहले सुन्नत के आपसी रविय्ये की `21` मिसालें:*
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`मिसाल नम्बर ❹` ह़ज़रते सय्यिदुना *इमामे अअ़्ज़म अबू ह़नीफ़ह* और ह़ज़रते सय्यिदुना *इमामे मालिक* رضی الله تعالٰی عنہما मस्जिदे नबवी में इ़शा की नमाज़ के बअ़्द बाहम पढ़ते और दोनों में से अगर एक दूसरे के क़ौल पर तवक़्क़ुफ़ करता तो दूसरा *बिना ग़ुस़्स़ह किए, बिना चेहरे का रंग बदले और ख़त़ाकार क़रार दिए बिग़ैर ठहर जाता;* फिर दोनों ह़ज़रात उसी मजलिस में नमाज़े फ़ज्र अदा फ़रमाते - [فضائل ابی حنیفه و اصحاب از امام ابو القاسم بن ابی العوام]
इस वाक़िए़ को लिखने के बअ़्द *शहज़ादए फ़क़ीहे मिल्लत, मुफ़्ती अज़हार अह़मद अमजदी स़ाह़ब* लिखते हैं कि इस वाक़िए़ से येह चीज़ें अख़ज़ कर सकते हैं: ① अगर बाहम मसाइल पर गुफ़्तगू हो रही है तो किसी का किसी के क़ौल पर एअ़्तिराज़ करना या उसके क़ुबूल करने में तवक़्क़ुफ़ करने की वजह से मद्दे मुक़ाबिल के चेहरे पर ग़म व ग़ुस़्स़ह का इज़हार नहीं होना चाहिए - *② अगर मसाइल में इख़्तिलाफ़ है तो इसका येह मत़लब नहीं कि दोनों फ़रीक़ एक स्टेज पर जमअ़् नहीं हो सकते -*
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