
محمد جمال الدین خان قادِری
June 2, 2025 at 04:40 PM
इख़्तिलाफ़ इख़्तिलाफ़ इख़्तिलाफ़, क़िस्त़ ⓲
✍ अ़ब्दे मुस़्त़फ़ा मुह़म्मद स़ाबिर इस्माई़ली
📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी रज़वी
*फ़ुरूई़ इख़्तिलाफ़ी मसाइल की शरई़ ह़ैसियत और अकाबिरीन में इख़्तिलाफ़ के बा-वजूद आपसी मह़ब्बत की कुछ मिसालें - “मुजद्दिदे मिल्लत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान” के ㉑ ह़ुरूफ़ की निस्बत से इख़्तिलाफ़ी मसाइल और अकाबिरीने अहले सुन्नत के आपसी रवैये की ㉑ मिसालें:*
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`मिसाल नम्बर ⓴` *ह़ुज़ूर ﷺ के वालिदैन मोमिन थे या नहीं?* येह मस्अलह भी इख़्तिलाफ़ी है जैसा कि *ह़ुज़ूर शारेह़े बुख़ारी* علیہ الرحمہ लिखते हैं कि इस बारे में सलफ़ से लेकर ख़लफ़ तक उ़लमा के मा-बैन इख़्तिलाफ़ रहा है और बहुत से ह़ज़रात इसके क़ाइल हैं कि रसूले करीम ﷺ के वालिदैन काफ़िर थे और *इमाम नसाई* علیہ الرحمہ का भी यही मसलक मअ़्लूम होता है,
और बहुत से ह़ज़रात इसके क़ाइल हैं कि आप ﷺ से लेकर *ह़ज़रते आदम* علیہ السلام तक तमाम आबाए किराम व उम्महाते इ़ज़ाम मोमिन थे - (मज़ीद लिखते हैं कि) *`राजेह़ यही है कि वालिदैने मुस़्त़फ़ा ﷺ मोमिन थे`* लेकिन अगर कोई नबिए अकरम ﷺ के वालिदैन के ईमान का इन्कार करता है तो वोह ख़ात़ी है, इस इन्कार की वजह से वोह गुमराह या बद-दीन नहीं हुवा - [उन्ज़ुर: *फ़तावा शारेह़े बुख़ारी,* जिल्द¹, पेज ²⁷⁸ से ²⁸¹]
येह मस्अलह ऐसा क़त़ई़ नहीं है कि जो न माने उसे काफ़िर या गुमराह क़रार दिया जाए क्योंकि *इमाम नसाई* علیہ الرحمہ और इनके अ़लावह भी कई ह़ज़रात का यही मसलक है -
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