محمد جمال الدین خان قادِری
محمد جمال الدین خان قادِری
June 4, 2025 at 06:29 PM
इख़्तिलाफ़ इख़्तिलाफ़ इख़्तिलाफ़, क़िस्त़ ⓴ ✍ अ़ब्दे मुस़्त़फ़ा मुह़म्मद स़ाबिर इस्माई़ली 📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी रज़वी `अपने ह़ाल पर रोना आया:` हमने अभी बयान किया कि हमारे अकाबिरीन के दर्मियान कई इख़्तिलाफ़ के बा-वजूद बाहमी मह़ब्बत व अ़क़ीदत का क्या आ़लम था, लेकिन क्या आज कहीं उसकी मिसाल दिखाई देती है? *जवाब यही है कि बहुत कम! तक़रीबन ना के बराबर!* https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J `अभी तो अलमियह येह है कि;` ❶ अगर किसी से इख़्तिलाफ़ है तो उसका बद-मज़हबों की त़रह़ रद्द किया जाता है - ❷ ऐसे ऐसे अल्फ़ाज़ इस्तेअ़्माल किए जाते हैं कि जिसे हम यहाँ लिखना भी मुनासिब नहीं समझते - ❸ अनानियत और हट-धर्मी तो पूछिए मत! कुछ लोगों के अन्दर कूट कूट कर भरी हुई है - ❹ मुख़ालिफ़ ने अगर दो कड़वी बातें कह दीं तो हम भी अपने नफ़्स को तकलीफ़ नहीं देना चाहते बल्कि उससे भी ज़्यादह कड़वाहट उगल देते हैं - ❺ बॉयकॉट का नाम तो हमेशा मुँह में रहता है, ज़रूरत हो या न हो लेकिन येह बॉयकॉट का लफ़्ज़ ज़रूर इस्तेअ़्माल किया जाता है - ❻ मुख़ालिफ़ को ज़लील व ख़्वार करने की हम कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते और अगर ग़लत़ी से छूट जाए तो फिर उसको सूद समेत अदा करते हैं - ❼ इख़्तिलाफ़ तो था फ़ुरूई़ मसाइल का मगर येह क्या? मुख़ालिफ़ की सुन्नियत और ईमान पर ही सुवालियह निशान लगाने की कोशिश की जा रही है - ❽ अगर एक मस्अले पर किसी का किसी से इख़्तिलाफ़ है तो वोह दोनों एक स्टेज पर जमअ़् हो ही नहीं सकते! अगर दोनों को जमअ़् करने की कोशिश की जाए तो येह एक मियान में दो तलवार डालने के बराबर है - ❾ अगर इख़्तिलाफ़ दो बड़ी हस्तियों के दर्मियान है तो उनके ख़ुलफ़ा व मुरीदीन भी इसमें भर-पूर ह़िस़्स़ह लेते हैं - ❿ किसी के भी ख़िलाफ़ बात हो जाए लेकिन हमारे शैख़, हमारे पीर और ह़ज़रत के मौक़िफ़ से मुख़ालिफ़त नहीं होनी चाहिए - ⓫ इस त़रह़ के इख़्तिलाफ़ी मसाइल पर अ़वामी तक़रीर होती है जिससे लोगों को ग़लत़ पैग़ाम मिलता है और बअ़्द में लड़ाई झगड़े की नौबत आ जाती है - ⓬ जिनके मा-बैन इख़्तिलाफ़ है वोह तो है ही लेकिन उनके ख़ुलफ़ा, मुह़िब्बीन व मुरीदीन सरह़द पर बमबारी करने का काम कर रहे हैं - जी हाँ! एक बम धमाका इधर से होता है फिर दूसरा उधर से - ⓭ कई लोग इन सब से परेशान होकर मज़हब से ही बेज़ार हो गए हैं - ⓮ एक चीज़ तो हम बताना भूल ही गए! “ज़बर दस्ती” यअ़्नी हम जबरन चाहते हैं कि जो हमारा मौक़िफ़ है वही मुख़ालिफ़ भी इख़्तियार करे - ⓯ इत्तिह़ाद की ज़रूरत को तस्लीम करते हैं लेकिन काम लड़वाने वाला हो रहा है - ⓰ एक दूसरे के पीछे नमाज़ पढ़ना तो बहुत दूर की बात है! हम एक दूसरे की शक्ल भी देखना पसन्द नहीं करते! येह तो चंद बातें हैं वरनह जो कुछ हो रहा है वोह इससे कहीं ज़्यादह है - इसका पूरा फ़ाइदह बद-मज़हबों के खाते में जमअ़् हो रहा है - अल्लाह तआ़ला हमें अ़क़्ले सलीम और ज़बान शीरीं अ़त़ा फ़रमाए; अल्लाह रब्बुल इ़ज़्ज़त तमाम मुसलमानों को सलीक़ए कलाम और आदाबे उ़लमाए किराम की दौलत से माला माल फ़रमाए, आमीन ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ یہ تحریر `اُرۡدُوۡUrdū उर्दू` مِیں ↶ https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J/1116 Yeh Taḥreer `ᴿᵒᵐᵃⁿ ᵁʳᵈᵘ` Men ↷ https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J/1114
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