
محمد جمال الدین خان قادِری
June 6, 2025 at 07:45 AM
*फ़ुरूई़ इख़्तिलाफ़ी मसाइल की शरई़ ह़ैसियत और अकाबिरीन में इख़्तिलाफ़ के बा-वजूद आपसी मह़ब्बत की कुछ मिसालें - “मुजद्दिदे मिल्लत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान” के ㉑ ह़ुरूफ़ की निस्बत से इख़्तिलाफ़ी मसाइल और अकाबिरीने अहले सुन्नत के आपसी रवैये की ㉑ मिसालें:*
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❶ हिन्द व पाक के मुसलमानों पर जो इख़्तिलाफ़ात रह़मत की बारिश बन कर बरस रही है इसे बअ़्ज़ शरीर लोगों ने मुसलमानों के लिए ज़हमत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है -
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❷ इमामे शाफ़िई़ ने फ़रमाया: ऐ अबू मूसा! क्या येह स़ह़ीह़ नहीं कि हम भाई भाई ही रहें, अगर्चे हमारा किसी मस्अले में इत्तिफ़ाक़ न हो
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❸ मसाइल में इख़्तिलाफ़ के बावजूद मुख़ालिफ़ की इ़ज़्ज़त व एह़तिराम और तअ़्रीफ़ व तौस़ीफ़ को बालाए त़ाक़ नहीं रखा जाएगा।
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❹ कभी मसाइल में इख़्तिलाफ़ की वजह से मुख़ालिफ़ के सामने आवाज़ बलन्द हो सकती है।
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❺ अगर मसाइल में इख़्तिलाफ़ है तो इसका येह मत़लब नहीं कि दोनों फ़रीक़ एक स्टेज पर जमअ़् नहीं हो सकते।
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❻ इमाम इसह़ाक़ बिन राहूयह / रा-हवैह ने एक रिवायत बयान फ़रमाई तो इमामे शाफ़िई़ ख़ामोश हो गए और रुजूअ़् कर लिया फिर इमाम अह़मद बिन ह़म्बल ने भी उसी पेश कर्दह रिवायत की त़रफ़ रुजूअ़् किया।
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❼ फ़रमाने इमाम अ़म्र बिन उ़बैद: मेरे और ह़क़ के दर्मियान कोई अ़दावत नहीं - अगर किसी मुख़ालिफ़ का ख़ात़ी होना वाज़ेह़ हो तो उससे इस त़ौर पर गुफ़्तगू की जाए कि उस पर ह़क़ वाज़ेह़ हो जाए। इब्ने फ़क़ीहे मिल्लत
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❽ जब किसी बड़े को किसी छोटे से शरई़ ह़ुक्म पता चले तो अनानियत को छोड़ कर बिला चूँ व चरा क़ुबूल करले क्योंकि बात़िल के साथ बलन्द रहना अ़क़्ल-मन्दी नहीं।
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❾ स़दरुल अफ़ाज़िल ने बअ़्ज़ मसाइल में अअ़्ला ह़ज़रत से इख़्तिलाफ़ किया है, इख़्तिलाफ़ के बा-वजूद भी आपस में वही मह़ब्बत थी और दोनों हमारे अकाबिर हैं और उन इख़्तिलाफ़ की वजह से किसी को भी बुरा नहीं कहा जा सकता।
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❿ मज़ामीर अअ़्ला ह़ज़रत के नज़दीक ह़राम है - लेकिन किछौछा शरीफ़ के उ़लमा मज़ामीर के साथ क़व्वाली सुनते थे, फिर भी अअ़्ला ह़ज़रत उन्हें फ़ासिक़ नहीं कहते बल्कि उनकी तअ़्ज़ीम करते थे।
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⓫ अअ़्ला ह़ज़रत का फ़तवा है कि सीप का चूना खाना ह़राम है लेकिन उ़लमाए बिहार इसे जाइज़ जानते हैं।
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⓬ फ़ुरूई़ इख़्तिलाफ़ के बा-वजूद भी मुख़ालिफ़ के पीछे नमाज़ पढ़ी जा सकती है, इस में कोई कराहत नहीं।
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⓭ ह़सनैने करीमैन के नाम के साथ علیہ السلام अ़लय-हिस्सलाम
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⓮ फ़रमाने ह़ुज़ूर बह़रुल उ़लूम: लाउडस्पीकर पर नमाज़ येह इख़्तिलाफ़ी मस्अलह है।
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⓯ वाक़िई़ हमारे अइम्मह अह़नाफ़ में बअ़्ज़ (फ़ुरूई़) इख़्तिलाफ़ात हैं और येह इख़्तिलाफ़ शरअ़न मज़मूम नहीं बल्कि वोह इख़्तिलाफ़ है जिसे शरीअ़त लोगों के लिए वुस्अ़त बल्कि रह़मत क़रार देती है - फ़तावी अजमलियह
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⓰ हमारा मसाइल में ज़रूर इख़्तिलाफ़ है और येह स़ह़ाबह के दर्मियान भी रहा है, येह कोई मअ़्यूब (ऐ़ब वाली) बात नहीं - फ़तावा उत्तरा खण्ड
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⓱ अअ़्ला ह़ज़रत का फ़तवा है कि लड़कियों को लिखना सिखाना जाइज़ नहीं लेकिन मुफ़्ती वक़ारुद्दीन रज़वी स़ाह़ब फ़रमाते हैं कि ज़रूरते ज़माना और इब्तिलाए आ़म की वजह से मुनासिब येह है कि इस ह़दीस को نہی تنزیہی पर मह़मूल किया जाए यअ़्नी औ़रतों को किताबत सिखाना अच्छी बात नहीं है।
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⓲ चाँद पर इन्सान का पहुँचना शरअ़न मुम्किन है या नहीं? इस मस्अले पर ह़ुज़ूर शारेह़े बुख़ारी और अ़ल्लामह ग़ुलाम जीलानी मेरठी के दर्मियान इख़्तिलाफ़ था।
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⓳ शारेह़ीन में इख़्तिलाफ़ है कि क़ब्र में ह़ुज़ूर ﷺ ख़ुद तशरीफ़ लाएंगे या शबीह पेश की जाएगी, शारेह़े बुख़ारी
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⓴ ह़ुज़ूर ﷺ ने शबे मेअ़्राज अल्लाह का दीदार किया या नहीं? येह मस्अलह भी इख़्तिलाफ़ी है - शारेह़े बुख़ारी
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㉑ ह़ुज़ूर ﷺ के वालिदैन मोमिन थे या नहीं? येह मस्अलह भी इख़्तिलाफ़ी है - शारेह़े बुख़ारी
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㉒ अबू त़ालिब मुसलमान या काफ़िर ? येह मस्अलह भी इख़्तिलाफ़ी है - शारेह़े बुख़ारी
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㉓ अपने ह़ाल पर रोना आया: हमारे अकाबिरीन के दर्मियान कई इख़्तिलाफ़ के बा-वजूद बाहमी मह़ब्बत व अ़क़ीदत का क्या आ़लम था, लेकिन क्या आज कहीं उसकी मिसाल दिखाई देती है? जवाब यही है कि बहुत कम! तक़रीबन ना के बराबर!
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