محمد جمال الدین خان قادِری
محمد جمال الدین خان قادِری
June 8, 2025 at 05:55 PM
*फ़तावा रज़विय्यह और बहारे शरीअ़त में* *फ़ुरूई़ इख़्तिलाफ़ी मसाइल, `क़िस्त़`* `❶` फ़तावा रज़विय्या, आ'ला ह़ज़रत की किताब है और बहारे शरीअ़त, ह़ुज़ूर स़दरुश्-शरीआ़ मुफ़्ती अमजद अ़ली आ'ज़मी साह़िब की, जो आ'ला ह़ज़रत के ख़लीफ़ा हैं. आपके और आ'ला ह़ज़रत के दरमियान जो मुह़ब्बत थी, वो किसी से छुपी हुई नहीं है; इसके बा-वुजूद बा'ज़ फ़ुरूई़ मसाइल में दोनों ह़ज़रात की राय अलग-अलग है। देखिए: *आ'ला ह़ज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान क़ादिरी रज़वी बरेलवी अ़लैहिर्रह़मा फ़रमाते हैं:* "बैलों का गोबर, पेशाब नजासते ख़फ़ीफ़ा है, जब तक के चहारूम कपड़ा न भर जाए या मुतफ़र्रिक़ इतनी पड़ी हो के जम्अ़् करने से चहारूम कपड़े की मिक़दार हो जाए, कपड़े को नजासत का ह़ुक्म न देंगे और इससे नमाज़ जाइज़ होगी और बिल्-फ़र्ज़ अगर इससे ज़ाइद भी धब्बे हों और धोने से सच्ची मा'ज़ूरी या'नी ह़र्जे शदीद हो, तो नमाज़ जाइज़ है। 📙 [फ़तावा रज़विय्या, जिल्द नं. 4, सफ़ह़ा नं. 571, नाशिर: रज़ा फ़ाउन्डेशन (लाहौर)] *और ह़ुज़ूर स़दरुश्-शरीआ़, मुफ़्ती अमजद अ़ली आ'ज़मी रह़मतुल्लाहि अ़लैह फ़रमाते हैं:* "हर ह़लाल चौपाया का पाख़ाना जैसे गाय, भैंस का गोबर, बकरी, ऊँट की मींगनी नजासते ग़लीज़ा है।" 📙 [बहारे शरीअ़त, जिल्द नं. 1, सफ़ह़ा नं. 391 मुल्तक़त़न, नाशिर: मक्तबतुल मदीना (कराची)] *किसी ने इस इख़्तिलाफ़ की वजह पूछी, तो ह़ुज़ूर स़दरुश्-शरीआ़ अ़लैहिर्रह़मा ने फ़रमाया:* ह़ज़रते इमामे आ'ज़म रह़मतुल्लाहि अ़लैह फ़रमाते हैं के ग़लीज़ा है और साह़िबैन (या'नी इमामे आ'ज़म के क़रीबी शागिर्द ह़ज़रते इमाम यूसुफ़ और ह़ज़रते इमाम मुह़म्मद) के क़ौल में नजासते ख़फ़ीफ़ा है, बल्कि ह़ज़रते इमाम मुह़म्मद रह़मतुल्लाहि अ़लैह ने आख़िर ज़माने में फ़रमाया के पाक है। `मज़ीद फ़रमाते हैं:` चूँकि इस ज़माने में नमाज़ का बहुत कम ख़याल रहता है, मा'मूली बातें भी नमाज़ छोड़ने के लिए उ़ज़्र हो जाती हैं, ख़ुसूसन जानवर पालने वाले, गाड़ी चलाने वाले इससे बदिक़्क़्त बच सकते हैं, उनकी ज़रूरत का लिह़ाज़ करते हुए आ'ला ह़ज़रत अ़लैहिर्रह़मा ने नजासते ख़फ़ीफ़ा का ह़ुक्म दिया, बल्कि मजबूरी और उ़ज़्रे सह़ीह़ की सूरत में इमाम मुह़म्मद रह़मतुल्लाहि अ़लैह के क़ौले अख़ीर पर भी अ़मल करने की इजाज़त दे दी। 📙 [फ़तावा अमजदिय्या, जिल्द नं. 1, सफ़ह़ा नं. 36, मुल्तक़त़न] ✍ मुह़म्मद ज़ैद रज़ा क़ादिरी तारीख़: 09/01/2025 ई़स्वी ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ یہ تحریر `اُرۡدُوۡUrdū उर्दू` مِیں ↶ https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J/1135 Yeh Taḥreer `ᴿᵒᵐᵃⁿ ᵁʳᵈᵘ` Men ↷ https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J/1133
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