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May 22, 2025 at 09:56 AM
क़ौम तो सताएगी ... (मौइज़े इब्राहिमी — पृष्ठ 196) दुनिया में कोई बड़ा आलिम (विद्वान) और कोई महान इमाम ऐसा नहीं गुज़रा, जिसे उसकी अपनी क़ौम ने दुख न पहुँचाया हो, बुरा न कहा हो। इमाम ताजुद्दीन सुबकी ने अपनी मशहूर किताब "अत-तबाक़ात अश-शाफ़िईया" में ठीक ही लिखा है: "जिसे उसकी क़ौम ने सताया, वह इमाम बना।" (ما من امام الّا و قد طعن فيه الطاعنون و هلك فيه الهالكون) दुनिया में कोई इमाम ऐसा नहीं गुज़रा, जिसे उसकी ही क़ौम ने बुरा न कहा हो। इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह जैसे महान आलिम के बारे में भी लोगों ने यहां तक कह दिया कि उन पर लानत करना कारे सवाब है इमाम आजम رحمه الله के बारे में कहा की यह उम्मत का शेतान है। और इसका कत्ल सत्तर जिहाद से ज्यादा सवाब रखता है। इमाम शाफीके बारे में कहा गया कि: "वह इब्लीस से भी ज्यादा फितना अनगेज है।" (هو أضل من إبلیس) हज़रत जुन्नून मिस्री के गले में तौक़ पेरों मैं बेडीयां (ज़ंजीर) डाली गई,और शहर से बाहर निकाल दिया गया और दुनिया उसे देखती रही। इमाम मुह़ीउद्दीन इब्न अऱबी के लिए कहा कि इसका कुफ्र ईसाईयों और यहूदियों के कुफ्र से भी ज़्यादा खतरनाक हैं। (أشدّ من كفر اليهود و النصارى) ऐ मेरे अज़ीज़ों! जब हमारे बड़ों को यह सब सहना पड़ा, तो हमें भी अल्लाह के दीन की राह में मुश्किलों से नहीं घबराना चाहिए। लोग क्या कहते हैं — इसकी परवाह न करें। हमारा मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ दीन की सेवा होना चाहिए। हम दीन की खिदमत करते जाएं, अल्लाह उसी राह पर हमारी ज़िंदगी चलाए और उसी राह पर हमारी मौत आए — आमीन! (وَآخِرُ دَعْوَانَا أَنِ الْـحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعَالَمِينَ) ---
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