Abhivykti
Abhivykti
May 23, 2025 at 04:17 AM
उन चीज़ों को छुओ जो तुम्हारे सामने मेज़ पर रखी हैं घड़ी क़लमदान एक पुरानी चिट्ठी बुद्ध की प्रतिमा बेर्टोल्ट ब्रेश्ट और चे गेवारा की तस्वीरें दराज़ खोलकर उसकी पुरानी उदासी को छुओ शब्दों की अँगुलियों से एक ख़ाली काग़ज़ को छुओ वॉन गॉग की पेंटिंग के स्थिर जल को एक कंकड़ की तरह छुओ जो उसमें जीवन की हलचल शुरू कर देता है[1] अपने माथे को छुओ और देर तक उसे थामे रहने में शर्म महसूस मत करो छूने के लिए ज़रूरी नहीं कोई बिल्कुल पास में बैठा हो बहुत दूर से भी छूना संभव है उस चिड़िया की तरह दूर से ही जो अपने अंडों को सेती रहती है कृपया छुएँ नहीं या छूना मना है जैसे वाक्यों पर विश्वास मत करो यह लंबे समय से चला आ रहा एक षड्यंत्र है तमाम धर्मगुरु ध्वजा-पताका-मुकुट-उत्तरीयधारी बमबाज़ जंगख़ोर सबको एक दूसरे से दूर रखने के पक्ष में हैं वे जितनी गंदगी जितना मलबा उगलते हैं उसे छूकर ही साफ़ किया जा सकता है इसलिए भी छुओ भले ही इससे चीज़ें उलट-पुलट हो जाएँ इस तरह मत छुओ जैसे भगवान महंत मठाधीश भक्त चेले एक दूसरे के सर और पैर छूते हैं बल्कि ऐसे छुओ जैसे लंबी घासें चाँद-तारों को छूने-छूने को होती हैं[2] अपने भीतर जाओ और एक नमी को छुओ देखो वह बची हुई है या नहीं इस निर्मम समय में। __________________________________ [1] जापानी फ़िल्मकार अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म ‘ड्रीम्स’ का एक अंश। [2] शमशेर बहादुर सिंह की एक कविता-पंक्ति।
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