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June 8, 2025 at 07:52 AM
बौद्ध वंदना क्यों करते है, प्राथना क्यों नहीं करते
प्रार्थना (प्राथना) और वंदना में अंतर क्या है?
1. प्रार्थना
प्रार्थना का अर्थ होता है — कुछ माँगना, ईश्वर या किसी उच्च सत्ता से कृपा, सहायता या वरदान की याचना करना।
उदाहरण: “हे भगवान! मुझे सफलता दो, मुझे दुख से मुक्ति दो।”
2. वंदना
वंदना का अर्थ है — श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता के साथ गुणों की सराहना करना।
यह माँग नहीं है, बल्कि एक भाव है कि हम किसी महान व्यक्ति या आदर्श के प्रति अपना सिर झुकाते हैं।
उदाहरण: “बुद्धं शरणं गच्छामि — मैं बुद्ध के मार्ग पर चलने का संकल्प करता हूँ।”
बौद्ध प्रार्थना क्यों नहीं करते?
बौद्ध धम्म की मूल धारणा है कि निर्वाण किसी ईश्वर या बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि अपने स्वयं के प्रयास से प्राप्त होता है।
बुद्ध ने स्पष्ट कहा था कि:
“अप्प दीपो भव” — स्वयं दीपक बनो।
इसलिए बौद्ध परंपरा में कोई सर्वशक्तिमान ईश्वर नहीं है जो कृपा करके दुःख मिटा दे।
प्रार्थना करने से कुछ "मिलता" है — इस धारणा को बौद्ध धर्म मिथ्या मानता है।
तो फिर बौद्ध वंदना क्यों करते हैं बुद्ध, बोधिसत्व और अरहंत की?
बौद्ध वंदना का उद्देश्य है:
1. गुणों की स्मृति: बुद्ध, बोधिसत्व और अरहंत के भीतर जो गुण हैं — जैसे करुणा, मैत्री, सम्यक दृष्टि, अहिंसा — उनका स्मरण कर प्रेरणा लेना।
2. आदर्श: बुद्ध को एक आदर्श मानते हुए उनकी शिक्षाओं पर चलने का संकल्प लेना।
3. मन को स्थिर करना: वंदना ध्यान और साधना से पहले मानसिक तैयारी है।
उदाहरण वंदना:
“इति पि सो भगवा...” — इसमें बुद्ध के 9 गुणों की स्तुति है, जैसे "अरहं, सम्मा-संबुद्धो, विज्जाचरणसंपन्नो" आदि।
बौद्ध क्यों बुद्ध या बोधिसत्व से कुछ नहीं मांगते हैं?
क्योंकि बुद्ध स्वयं कहते हैं कि:
उन्होंने केवल मार्ग दिखाया है, लेकिन चलना हमें खुद है।
अगर आप दुःख से मुक्ति चाहते हैं तो चार आर्य सत्य और आर्य अस्तगिक मार्ग का पालन करें।
बुद्ध ना तो वरदान देते हैं, ना दंड देते हैं — वे मार्गदर्शक है।
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☸️नमो बुद्धाय जय भीम☸️
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