
Dawah & iqra
May 15, 2025 at 12:25 AM
*#573-हर वो चीज़ जो तुमने दुआओं में मांगी है, वो तुम्हारी तरफ़ बढ़ रही है। जब अल्लाह के लिए कोई हद नहीं, तो तुम्हें भी अपनी सोच में कोई हद नहीं रखनी चाहिए।*
*आख़िर अल्लाह के लिए क्या नामुमकिन है? वो तो हर चीज़ पर क़ादिर है। दुआ की ताक़त हक़ीक़त है। जब तक सब कुछ क़ुबूल न होता देख लो, तब तक दुआ पर यक़ीन रखो। अल्लाह के लिए तो बस "कुन फ़यकून" है — यानी "हो जा" और वो हो जाता है।*
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