
Ai Imaan Walon Allah Se Daro 😔
June 9, 2025 at 10:27 AM
सवाल :
*जो औरत गैर-मर्दों के सामने बेपर्दा होकर काम करती है तो क्या ऐसी कमाई करना जायज़ है या नाजायज़?*
*जवाब👇*
*अगर कोई औरत गैर-मर्दों के सामने बेपर्दा होकर नौकरी या व्यापार करती है तो इस तरह की बेपर्दगी के साथ नौकरी करना गुनाह और हराम है।*
*और इस तरह से जो पैसा वह कमाती है वह भी नाजायज़ और शक्की माना जाता है*
*ऐसे पैसे को किसी जायज़ काम में भी खर्च नहीं किया जाएगा।*
*✍🏻उलेमा-ए-अहले सुन्नत के फतवों से दलील👇*
*फतावा रज़विया, जिल्द 9 में*
*आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं:👇*
*औरत को सिर्फ शरीअत की ज़रूरत के वक्त घर से बाहर निकलने की इजाज़त है वो भी पूरे पर्दे के साथ*
*और गैर-मर्दों से मिलना-जुलना सख़्त हराम है*
*जो औरतें बाज़ारों में बेपर्दा घूमती हैं मर्दों से बात करती हैं यह पूरी तरह हराम है।*
*ऐसे मर्द और औरतों पर अल्लाह का ग़ज़ब होता है।*
*📚औरत की कमाई का हुक्म – फतावा रज़विया, जिल्द 9:*
*📍सवाल:👉एक औरत नौकरी करती है और अपने शौहर या वालिद के खर्च के बिना अपनी ज़िन्दगी चलाती है क्या उसकी कमाई हलाल है?*
*📝जवाब:👉अगर औरत किसी हलाल काम में नौकरी करती है जैसे – तालीम देना, इलाज करना, सिलाई-कढ़ाई वग़ैरह, और वो भी घर पर या पर्दे में, गैर-मर्दों से कोई ताल्लुक ना हो, तो कमाई हलाल है।*
*अगर उसमें बेपर्दगी, गैर-मर्दों से मिलना-जुलना, या गुनाह वाला माहौल हो तो कमाई नाजायज़ और हराम है।*
*📚फतावा रज़विया, जिल्द 23:*
*"औरतों का बाज़ारों में आना-जाना और मर्दों के साथ घुलना-मिलना फितना है इस्लाम इसकी बिल्कुल इजाज़त नहीं देता।*
*📚फतावा रज़विया, जिल्द 24:*
*"औरत को मर्दों की तरह नौकरी देना और उसे 'आज़ादी' का नाम देना ये पश्चिमी (वेस्टर्न) फितना है।*
*मुसलमान औरत की असली जगह उसका घर है जहाँ वह हया और दीन के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे*
*📝दीगर उलमा-ए-अहले सुन्नत के फतवे:👇*
*🔹 सदर-उश-शरीअत मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैहिर्रहमा बहार-ए-शरीअत, जिल्द 3:में लिखते हैं*
*औरत को बगैर शरीअत की ज़रूरत के घर से निकलना मना है।*
*और अगर निकले भी तो पूरे पर्दे के साथ और गैर-मर्दों से दूर रहे मर्दों के साथ नौकरी करना फितने और फसाद का सबब है*
*अल्लामा नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैहिर्रहमा लिखते हैं*
*इस्लाम ने औरत को घर की ज़ीनत बनाया है।*
*उसका मैदान है– इबादत, तालीम, सिलाई, परहेज़गारी वग़ैरह।*
*मर्दों की बैठकों या खल्त मस्त* *(मर्द-औरत दोनों वाले) माहौल में काम करने की इजाज़त नहीं।"*
*📚(तफ़सीर खज़ाइनुल इरफान, सूरह निसा: आयत 33)*
*"औरत का दफ्तरों में बेपर्दा होकर नौकरी करना शरई तौर पर हराम है और इससे जो कमाई होती है वो भी हराम है क्योंकि वह गुनाह के माहौल में होती है।*
*मुफ़्ती जलालुद्दीन अमजदी अलैहिर्रहमा लिखते हैं*
*फतावा फकीह-ए-मिल्लत, जिल्द 1:*
*औरत का दफ्तरों में मर्दों के साथ काम करना फितने का सबब है अगर पर्दा न हो और मर्दों से घुलना-मिलना हो तो ये रोज़गार नाजायज़ है।*
*मुफ़्ती शरीफुल हक़ अमजदी अलैहिर्रहमा लिखते हैं*
*फतावा शारह बुखारी, जिल्द 2:*
*इस्लाम ने औरत को पूरा पर्दा करने का हुक्म दिया है।*
*अगर वह बेपर्दा होकर कॉल सेंटर या ऑफिस में काम करे जहाँ मर्दों से बात हो तो उसकी कमाई गुनाह और फितना मानी जाएगी और पाक नहीं मानी जाएगी।*
*✅सभी अहले सुन्नत उलमा का इत्तेफाकी फैसला है*
*अगर औरत पर्दे के साथ, गैर-मर्दों से अलग, और शरई माहौल में काम करे तो कमाई जायज़ (हलाल) है।*
*अगर उसमें बेपर्दगी, गैर-मर्दों से बात, या फितने वाला माहौल हो तो कमाई नाजायज़ (हराम) है।*