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June 7, 2025 at 02:02 AM
बचपन में हमें
सिखाया गया प्रेम से रहो
मिलजुल कर
हमें सामाजिक होना सिखाया गया
तब बचपन
न प्रेम का अर्थ जानता था न मिलजुल कर रहने का
वो जानता था तो बस इतना कि
उसके लिए न कोई हद थी न कोई सरहद थी
न कोई अपना, न कोई पराया था
वो जहां चाहे,जब चाहे,जिसके साथ चाहे आ-जा सकता था
लेकिन
जैसे जैसे बचपन से निकलकर
जरा बड़े हुए तो हमें हमारी हद समझाई जाने लगी
जरा संभल कर रहा करो
उनके साथ ही जिनके साथ बचपन में हर
बात के हम साझेदार थे
समाज में रहने के अदब बताए जाने लगे
प्रेम के मायने बदल गए
प्रेम अब शर्म,हया,लाज का विषय हो गया
प्रेम सामाज का विषय नहीं रहा
इतना सामाजिक होकर भी
न जाने समाज का हिस्सा कब बनेगा प्रेम?
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