
The Unbreakable Voice
June 12, 2025 at 06:15 AM
एक रोज और मर लूंगा। एक रोज और निराशाओं की बारिश आएगी। एक रोज और अकेलापन सालेगा। आदमी की इयत्ता में इतनी उदासी है कि दुनियाभर के यातना गृह शर्मा जाएं। इतने आंसुओं की धारा है कि समुंद्रों के पानी को मात मिल जाए और अंत वही , अस्थियों पर रेत में घूमते कुत्ते, कौए या लावारिस से मुर्दाघरों की मिट्टी । अपना अर्थ खोजने की इक्षा में उलझे इतिहास के सबसे अनाथ बच्चे। जिम्मेदारियों के बोझ से दबे लघु मानव से तपती धूप में बड़ी इमारतों और गाड़ियों के सामने बिल्कुल बौने। एक निषिद्ध फल ही तो खाया था और गलतियां किस खुदा से नहीं होती, हम तो तुम्हारे बच्चे थे घमंडी ईश्वर !🙏
आशु
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