
محمد جمال الدین خان قادِری
June 12, 2025 at 06:25 PM
`इस्लाम नस्ली नहीं उस़ूली दीन है!`
✍ मौलाना *ह़सन नूरी गोंडवी* स़ाह़ब
📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी
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इस्लाम में कुछ बातें हैं जिन्हें मानना है और कुछ हैं जिनका इन्कार ज़रूरी है। जो मानने वाली बातें माने, और इन्कार करने वाली बात का इन्कार करे; वोह चाहे जहाँ का रहने वाला हो, किसी भी रंग व नस्ल का हो, आ़लिम हो या ग़ैर आ़लिम, वोह बहर ह़ाल मुसलमान है।।
और जो शख़्स़ किसी भी अअ़्ला ख़ानदान या मुबारक शहर में पैदा हुवा, अलक़ाबात अअ़्ला, ज़बान व बयान का माहिर, शोहरत आसमान को पहुँच रही हो, बा-वजूद इसके अगर वोह मानने वाली बातों में किसी एक का इन्कार और इन्कार करने वाली बातों में किसी एक का इस्बात करे, हज़ार बार कलिमह पढ़े, कअ़्बतुल्लाह में जान दे दे, अन्-गिन्त ह़ज व उ़मरह करने वाला हो, अगर्चे उसने हज़ारों को मुसलमान बनाया हो, दिफ़ाए़ दीने इस्लाम पर तह़रीरी और तक़रीरी काम आफ़ताब से ज़्यादह रौशन हों, बा-वजूद इसके वोह मुसलमान नहीं हो सकता ।।
देखो अबू लहब घर का था हाशिमी था, मक्कह में पैदा हुवा, सरदार के घर का था, त़ालिबे हाशिमी था, मक्कह मुकर्रमह में पैदा हुवा, ज़बान व बयान में माहिर था, अबू जहल सरदार था, मक्कह का ख़त़ीब था, बा-असर भी था, फ़स़ाह़त व बलाग़त भी रखता था, बा-वजूद इसके मुसलमान नहीं।।
सलमान फ़ारसी, स़ुहैब रूमी, बिलाले ह़ब्शी, मक्की मदनी नहीं, अ़रबी व क़रशी नहीं, बा-वजूद इसके न स़िर्फ़ मोमिन बल्कि मोमिनों के जान हैं।।
लिहाज़ा जान लें कि इस्लाम यहू+दिय्यत, नस़रा+निय्यत, मजू+सिय्यत, बरह+मनिय्यत, की त़रह़ नस्ली दीन नहीं बल्कि येह उस़ूली दीन है ।।
अब किसी का शहज़ादह हो या वली-ज़ादह, वोह दीन व ईमान नहीं, और न उसकी बातें हमारे लिए ह़ुज्जत, बल्कि उस़ूल देखिए! उसके मुत़ाबिक़ है फ़-बिहा वर्नह ठोकरों में।।
देखिए उस़ूल ही के तह़त अबू जहल व अबू लहब को नहीं माना, मगर उस़ूल मानने के सबब सय्यिदुना इ़करिमह बिन अबू जहल, सय्यिदह दुर्रह बिन्ते अबू लहब को मानते हैं।।
नबी علیہ السلام का बेटा कन्आ़न और उनकी अहलियह को उस़ूल ही के तह़त नहीं माना, और उस़ूल ही के पेशे नज़र सय्यिदह आसियह को मानते हैं।।
अस़्ल इस्लाम उस़ूली है, येह नस्ली दीन नहीं कि बाप वली तो बेटा नस्ल दर नस्ल सब वली ही होंगे, बाप उम्मत का अ़ज़ीम पेशवा तो ज़रूरी नहीं कि नस्ल दर नस्ल हर कोई हमारा पेशवा ही होगा, क्या नहीं देखा शाह अ़ब्दुर् रह़ीम, शाह वलिय्युल्लाह, शाह अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ मुह़द्दिसे देहलवी علیہم الرحمہ को मानते हैं, लेकिन आगे चल कर उस़ूल से हट जाने के सबब इस्माई़ल देहलवी को नहीं मानते।।
चराग़ जला के मैं ने रख दिया है राहों में
अब जो रास्ता भूले येह उसकी क़िस्मत है
✍(मौलाना) ह़सन नूरी गोंडवी (स़ाह़ब)
📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी
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