अखंड भारत Akhand Bharat
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June 6, 2025 at 03:33 AM
न GPS न सैटेलाइट... वो गुमनाम जीनियस, जिन्होंने सबसे पहले नापी एवरेस्ट की ऊंचाई? अंग्रेजों ने छिपा दिया था नाम राधानाथ सिकदर वो भारतीय थे, जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का पता लगाया। अंग्रेजों ने पर्वत का नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा, सिकदर का नाम इतिहास में खो गया। राधानाथ सिकदर वो भारतीय थे, जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का पता लगाया। अंग्रेजों ने पर्वत का नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा, सिकदर का नाम इतिहास में खो गया। अक्टूबर 1813 में कोलकाता में जन्मे राधानाथ सिकदर की रूचि गणित में बचपन से ही थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें देश के प्रमुख संस्थानों में से एक हिंदू कॉलेज, जिसे अब प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है, में शिक्षक के तौर पर नियुक्ति मिल गई। डार्कग्रीन एडवेंचर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां सिकदर को हेनरी लुई विवियन डेरोजियो मिले। उन्होंने सिकदर को सलाह दी कि आलोचनात्मक रूप से सोचना, अधिकार पर सवाल उठाना और पुरानी परंपराओं को चुनौती एक छात्र के लिए बहुत जरूरी है। *18 साल की उम्र में बड़ा मुकाम* डेरोजियो की सीख ने सिकदर को निखरने का मौका दिया। संख्याओं, सूत्रों और तर्क के पीछे गहरे सत्यों का पता लगाने की तो जैसे उनके अंदर भूख जाग गई। उनकी इसी आदत ने बाद में उनके समय की सबसे बड़ी भौगोलिक चुनौतियों में से एक को हल करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। 1831 में महज 18 साल की उम्र में सिकदर ग्रेट त्रिकोणमितीय सर्वे ऑफ इंडिया में शामिल हो गए। इसके तहत ब्रिटिश सरकार, वैज्ञानिक सटीकता के साथ विशाल भारतीय उपमहाद्वीप का मैपिंग करना चाहती थी। इस प्रोजेक्ट को मूल रूप से अंग्रेज सरकार के अधिकारी सर जॉर्ज एवरेस्ट ने शूरू किया और इसकी पूरी कमान उनके ही हाथ में थी। यह प्रोजेक्ट केवल मैपिंग करने के लिए नहीं था। इसमें बड़े-बड़े थियोडोलाइट्स को ढोना, जंगली इलाकों में घूमना, असहनीय जलवायु से निपटना और बहुत ज्यादा तकनीकी त्रिकोणमितीय गणनाएं करना शामिल था। सिकदर के गणित का उस समय लोहा माना जाता था, इसलिए उन्हें प्रोजेक्ट में शामिल किया गया। *ना जीपीएस, ना सैटेलाइट, कर दिया कमाल* हालांकि, सिकदर के करियर में और दुनिया के भूगोल में सबसे बड़ा मोड़ 1852 में आया। भारत के नए सर्वेयर जनरल एंड्रयू स्कॉट वॉ के नेतृत्व में, टीम को हिमालय श्रृंखला से इकट्ठा किए गए डेटा का विश्लेषण करने का काम सौंपा गया था। उस समय 'पीक XV' के रूप में जाने जाने वाले पर्वत का आधिकारिक तौर पर अध्ययन नहीं किया गया था। त्रिकोणमितीय गणनाओं, पृथ्वी की वक्रता और वायुमंडल के अपवर्तन के आधार पर सिकदर ने निर्धारित किया कि पीक XV वास्तव में दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत था। उनकी गणनाओं से इसकी ऊंचाई, समुद्र तल से 29002 फीट तय की गई। आज जब हमारे पास ऊंचाई नापने के लिए मॉर्डन सैटेलाइट हैं, तो पता चलता है कि एवरेस्ट 29,029 फीट पर खड़ा है। यानी हमारे देश के एक गणितज्ञ ने, जीपीएस या हवाई उपकरणों के बिना, केवल गणना के आधार पर, महज 27 फीट के अंतर के साथ दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत की ऊंचाई नाम दी थी। *कैसे छिपाया गया राधादास सिकदर का नाम* इतने बड़े योगदान के बावजूद पर्वत का नाम सिकदर के नाम पर नहीं रखा गया। सर जॉर्ज एवरेस्ट के सम्मान में इसका नाम माउंट एवरेस्ट रखा गया। विडंबना देखिए कि इस चोटी की ऊंचाई की गणना होने से पहले ही वह रिटायर हो गए थे और उन्होंने इसे कभी नहीं देखा। हालांकि जॉर्ज एवरेस्ट ने खुद चोटी का नाम अपने नाम पर रखने का विरोध किया था। जॉर्ज एवरेस्ट ने कहा कि इसके लिए स्थानीय नामों जैसे चोमोलुंगमा (तिब्बती) या सागरमाथा (नेपाली) का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला। सिकदर की भूमिका को आधिकारिक ब्रिटिश रिकॉर्ड से काफी हद तक बाहर रखा गया। हालांकि, समय के भीतर गलतियों को सुधारने का अपना एक तरीका है। आज दुनिया जान रही है कि एवरेस्ट की पहली मापी गई ऊंचाई के पीछे का सच्चा दिमाग राधानाथ सिकदर का था।
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