
The Muslim Daily
June 9, 2025 at 07:22 AM
⚠ ई़दे ग़दीर सुन्नियों की नहीं ⚠
आज की मुरव्वजा 'ई़दे ग़दीर' जिसने सबसे पहले शुरू की, उसका नाम 'अह़मद इब्ने बुवैह' था, जो आमतौर पर हिस्ट्री में 'मुइ़ज़्ज़ुद् दौलह' के नाम से मशहूर है;
ये जब बग़दाद का हाकिम बना, तब इसने 352 हि. में ये सब शीओं वाली हरकतें एलानिया तौर पर शुरू कीं;
ये शख़्स शीआ़ हुकूमत 'दौलते बुवैहिय्यह (الدَّولَةُ البُوَيهِيَّةُ)' का बग़दाद में बनने वाला पहला हाकिम था;
इस सल्त़नत की बुनियाद 932 ई. में 'रुक्नुद् दौलह बुवैही' ने रखी, और ईरान पर 932 ई. से लेकर 949 ई. तक हुकूमत की, और अपनी सल्त़नत को फैलाया. फिर आख़िरकार ये सल्त़नत 1062 ई. में ख़त्म हो गयी;
इमाम अन्दलुसी (d. 741 हि.) अपनी किताब: 'अत् तम्हीद वल् बयान फ़ी मक़्तलिश् शहीद उ़स्मान' में लिखते हैं:
"وقد اتخذت الرافضة اليوم الذي قتل فيه عثمان (رضي الله عنه) عيداً، وقالوا: 'هو يوم عيد الغدير'."
"और जिस दिन ह़ज़रत उ़स्माने ग़नी (रद़ियल्लाहु अ़न्हु) को शहीद किया गया, उस दिन को राफ़िज़िय्यों ने 'ई़द' बना लिया, और कहा: 'ये ई़दे ग़दीर का दिन है'."
📙अत् तम्हीद वल् बयान फ़ी मक़्तलिश् शहीद उ़स्मान
[इमाम अन्दलुसी (d. 741 हि.)], पेज न. 234, फ़