
Amit Jain
May 17, 2025 at 08:55 AM
मैं हिसाब नहीं रखता,
कितना पाया, कितना गवाया।
बस चाहत इतनी है की,
दुख वहाँ से ना मिले,
जहाँ मैंने अपना सुख लुटाया।