India's Best Journalist ✍️
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May 22, 2025 at 02:21 AM
━━━━━━━ꕥ❈ꕥ❈ꕥ━━━━━━ ┌──────────────────┐ *`█▓░༺श्रीगणेशाय नम:༻░▓█`* └──────────────────┘ ━━━━━━━ꕥ❈ꕥ❈ꕥ━━━━━━ *༺❝ li.श्रीरामचरितमानस.li ❞༻* *━━━━━━━ꕥ❈ꕥ❈ꕥ━━━━━━* *♻️ .li.अयोध्याकाण्ड.li. ♻️* 🪷🧺🪷🧺🪷🧺🪷🧺🪷 🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊 _*‼️द्वितीय सोपान अयोध्या काण्ड‼️*_ *🪀भाग -274🪀* 🎏🎏🎏🎏🎏🎏🎏🎏🎏 *॥ श्रीवशिष्ठजी व भरत जी का संवाद॥* 🪅🪅🪅🪅🪅🪅🪅🪅🪅 _*चौपाई :*_ _*मोहि उपदेसु दीन्ह गुरु नीका।*_ _*प्रजा सचिव संमत सबही का॥*_ _*मातु उचित धरि आयसु दीन्हा।*_ _*अवसि सीस धरि चाहउँ कीन्हा॥*_ गुरुजी ने मुझे सुंदर उपदेश दिया। (फिर) प्रजा, मंत्री आदि सभी को यही सम्मत है। माता ने भी उचित समझकर ही आज्ञा दी है और मैं भी अवश्य उसको सिर चढ़ाकर वैसा ही करना चाहता हूँ॥1॥ _*गुर पितु मातु स्वामि हित बानी।*_ _*सुनि मन मुदित करिअ भलि जानी॥*_ _*उचित कि अनुचित किएँ बिचारू।*_ _*धरमु जाइ सिर पातक भारू॥2॥*_ (क्योंकि) गुरु, पिता, माता, स्वामी और सुहृद् (मित्र) की वाणी सुनकर प्रसन्न मन से उसे अच्छी समझकर करना (मानना) चाहिए। उचित-अनुचित का विचार करने से धर्म जाता है और सिर पर पाप का भार चढ़ता है॥2॥ _*तुम्ह तौ देहु सरल सिख सोई।*_ _*जो आचरत मोर भल होई॥*_ _*जद्यपि यह समुझत हउँ नीकें।*_ _*तदपि होत परितोष न जी कें॥*_ आप तो मुझे वही सरल शिक्षा दे रहे हैं, जिसके आचरण करने में मेरा भला हो। यद्यपि मैं इस बात को भलीभाँति समझता हूँ, तथापि मेरे हृदय को संतोष नहीं होता॥3॥ _*अब तुम्ह बिनय मोरि सुनि लेहू।*_ _*मोहि अनुहरत सिखावनु देहू॥*_ _*ऊतरु देउँ छमब अपराधू।*_ _*दुखित दोष गुन गनहिं न साधू॥*_ अब आप लोग मेरी विनती सुन लीजिए और मेरी योग्यता के अनुसार मुझे शिक्षा दीजिए। मैं उत्तर दे रहा हूँ, यह अपराध क्षमा कीजिए। साधु पुरुष दुःखी मनुष्य के दोष-गुणों को नहीं गिनते। _*दोहा :*_ _*पितु सुरपुर सिय रामु बन*_ _*करन कहहु मोहि राजु।*_ _*एहि तें जानहु मोर हित*_ _*कै आपन बड़ काजु॥177॥*_ पिताजी स्वर्ग में हैं, श्री सीतारामजी वन में हैं और मुझे आप राज्य करने के लिए कह रहे हैं। इसमें आप मेरा कल्याण समझते हैं या अपना कोई बड़ा काम (होने की आशा रखते हैं)?॥177॥ _*चौपाई :*_ _*हित हमार सियपति सेवकाईं।*_ _*सो हरि लीन्ह मातु कुटिलाईं॥*_ _*मैं अनुमानि दीख मन माहीं।*_ _*आन उपायँ मोर हित नाहीं॥*_ मेरा कल्याण तो सीतापति श्री रामजी की चाकरी में है, सो उसे माता की कुटिलता ने छीन लिया। मैंने अपने मन में अनुमान करके देख लिया है कि दूसरे किसी उपाय से मेरा कल्याण नहीं है॥1॥ _*सोक समाजु राजु केहि लेखें।*_ _*लखन राम सिय बिनु पद देखें॥*_ _*बादि बसन बिनु भूषन भारू।*_ _*बादि बिरति बिनु ब्रह्मबिचारू॥*_ यह शोक का समुदाय राज्य लक्ष्मण, श्री रामचंद्रजी और सीताजी के चरणों को देखे बिना किस गिनती में है (इसका क्या मूल्य है)? जैसे कपड़ों के बिना गहनों का बोझ व्यर्थ है। वैराग्य के बिना ब्रह्मविचार व्यर्थ है॥2॥ _*सरुज सरीर बादि बहु भोगा।*_ _*बिनु हरिभगति जायँ जप जोगा॥*_ _*जायँ जीव बिनु देह सुहाई।*_ _*बादि मोर सबु बिनु रघुराई॥*_ रोगी शरीर के लिए नाना प्रकार के भोग व्यर्थ हैं। श्री हरि की भक्ति के बिना जप और योग व्यर्थ हैं। जीव के बिना सुंदर देह व्यर्थ है, वैसे ही श्री रघुनाथजी के बिना मेरा सब कुछ व्यर्थ है॥3॥ _*जाउँ राम पहिं आयसु देहू।*_ _*एकाहिं आँक मोर हित एहू॥*_ _*मोहि नृप करि भल आपन चहहू।*_ _*सोउ सनेह जड़ता बस कहहू॥*_ मुझे आज्ञा दीजिए, मैं श्री रामजी के पास जाऊँ! एक ही आँक (निश्चयपूर्वक) मेरा हित इसी में है। और मुझे राजा बनाकर आप अपना भला चाहते हैं, यह भी आप स्नेह की जड़ता (मोह) के वश होकर ही कह रहे हैं॥4॥ _*दोहा :*_ _*कैकेई सुअ कुटिलमति*_ _*राम बिमुख गतलाज।*_ _*तुम्ह चाहत सुखु मोहबस*_ _*मोहि से अधम कें राज॥178॥*_ कैकेयी के पुत्र, कुटिलबुद्धि, रामविमुख और निर्लज्ज मुझ से अधम के राज्य से आप मोह के वश होकर ही सुख चाहते हैं॥178॥ _*॥हरि: ॐ तत् सत्॥*_ *क्रमशः........* 🪦🪦🪦🪦🪦🪦🪦🪦🪦 li.▬▭▬▭▬--▭▬▭▬▭▬.li 2️⃣2️⃣🪦0️⃣5️⃣🪦2️⃣5️⃣ li.▬▭▬▭▬--▭▬▭▬▭▬.li 🫐🧺🫐🧺🫐🧺🫐🧺🫐 ━━━━━━━ꕥ❈ꕥ❈ꕥ━━━━━━━ *🪴🎀 📿li.जयश्रीराम.li📿🎀🪴* 🟪🟨🟩💦💓💦🟩🟨🟪
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