Stranger
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May 28, 2025 at 12:53 AM
#सरहद एक ज़मीन जिसे अल्लाह ﷻ ने बिछाया जिसमें कोई सरहद ना थी कहीं आने जानें कि पाबंदी ना थी लेकिन इंसानों ने अपने जाती मुफ़ीद के लिए ज़मीन को बांटा, सिर्फ बांटा ही नहीं बल्कि सरहदों पर दीवारें बना दीं, जंज़ीरें बांध दी, कांटो के तार बांध दिए और बड़ी बड़ी बंदूके, तोपें और गोले बारूद लेकर खड़े हो गए और ये सब किसलिए किया ताकि कोई इंसान ज़मीन मैं आज़ादी से ना घूम सके मशरीक का इंसान आज़ादी से मग़रीब की तरफ ना जा सके और मगरीब का इंसान मशरीक ना जा सके, समुद्र बांटा, आसमान बांटा सब कुछ बांट दिया और फिर ये बात करते हैं एक आज़ाद दुनिया की, एक पुर अमन दुनिया की जहां किसी को आने जाने की पाबंदी ना हो, रहने खाने की पाबंदी ना हो। आखिर ये कैसी आज़ाद दुनिया है जो गोले बारूद के ढेर पर बना रहे हैं??? लेकिन क्या इनके किए गए काम इनकी ज़ुबान से मेल खाते हैं?? नहीं बिल्कुल नहीं, ये लोग दिखावा करते हैं इंसाफ का, अमन का, आज़ादी का और दूसरी तरफ अपनी जेबें भरने के लिए अपनी कुर्सियां बचाने के लिए इंसान को इंसान से लड़वाते हैं उनका खून पानी की तरह बहाते हैं और कहते हैं कि हम दुनिया मैं अमन क़ायम करना चाहते हैं?? ये झूठ कहते हैं और जो करते हैं अपने जाती फायदे के लिए करते हैं। हम मुसलमान हैं अलहम्दुलिल्लाह हम कलमे की बुनियाद पर एक हैं अल्लाह कुरआन शरीफ मैं कहता है मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं। तो फिर क्या हो गया उन मुसलमानों को जो सरहदों के ग़ुलाम हो गए जो इंसानों की बनाई सरहदों के लिए अपने भाइयों का खून तक बहाने को जायज़ समझ रहे हैं। अस्तघफिरूल्लाह खुदा के घरों को निशाना बनाया गया और हमने मुसलमानों को उस पर रश्क़ करते हुए देखा। अस्तघफिरूल्लाह क्या हो गया है हमारे ईमान को?? क्या हो गया है हमारी नस्लों को ??? हम अपने ही खून पर खुशी मना रहे हैं?? अंबेडकर को जानते होगे तुम ज़रूर, एक बात बताता हूं यहां उसके बारे मैं, जानते हो जब उसने हिंदू धर्म छोड़ा तो इस्लाम के बारे मैं पढ़ना शुरू किया और बहुत करीब आ गया इस्लाम कुबूल करने के लेकिन फिर अल्लाह ﷻ जिसे चाहे हिदायत दे जिसे चाहे ना दे तो अंबेडकर के नसीब मैं हिदायत ना थी शायद उसने इस्लाम को पढ़ा लेकिन समझ ना सका लेकिन उसने एक बात कही इस्लाम कुबूल ना करने को लेकर और वो ये की "मुसलमान कभी भी इस्लाम से ऊपर देश को नहीं रखेगा" शायद वो समझ गया था कि इनका ईमान पक्का होता है और देश ये इंसानों द्वारा ज़मीन पर लकीरें खींच कर बनाई गई चीज़ है। तो मैने क़ौमी भाइयों से पूछना चाहत हूं कि आख़िर कब हम इन बातों को समझेंगे?? अगर हम इतिहास मैं झांकें तब पहला जम्हूरी देश 1789 मैं वजूद मैं आया जो कि अमेरिका था। उसके बाद से फिर इसी तरह जम्हूरियत अपने पैर पसारती चली गई और रोज़ रोज़ नए कानून लोगों पर थोपे जाने लगे। उसके बाद शुरू हुआ पूरी दुनिया पर जम्हूरियत थोपने का सिलसिला। जो इन मगरिबी लोगों के जम्हूरी निज़ाम के खिलाफ थे उनको तानाशाह घोषित करके उनके राज्यों पर कब्जा कर लिया गया उनको ग़ुलाम बना लिया गया। जिन्होंने गुलामी कुबूल ना की उनको मौत की सज़ा दी गई। तो असल मैं देखा जाए तो ये जम्हूरी निज़ाम है जो थोपा हुआ कानून है। जिसकी उम्र 250 साल से भी कम है और इसके मानने वाले लोग कहते फिरते हैं कि अपने दीन से ऊपर देश को रखो। जबकि हमारा दीन 1400 साल से मौजूद है और ना ही हमने कोशिश की अपने दीन को किसी पर थोपने की, क्योंकि खुद इसकी इजाज़त हमें हमारा दीन नहीं देता है। लोग कुरआन शरीफ पढ़ते हैं हमारे प्यारे आका रसूल अल्लाह ﷺ की सीरत को पढ़ते हैं और दीन ए इस्लाम ने शरीयत से जो हक़ बयानी की है उसकी तरफ मुताशिर होते हैं जहां सबके हुक़ूक़ की बात कही गई है इसमें सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि ज़मीन, आसमान, जानवर, पहाड़, पेड़, पौधे, हवा, पानी, आग, दरिया, ज़िंदा, मुर्दा और जो भी इस कुल कायनात मैं मौजूद है सबको हक दिए गए हैं सबके हुक़ूक़ की बात की गई है। तो और कुछ है ऐसा इस दुनिया जहान मैं जो दीन ए इस्लाम को टक्कर दे सके?? नहीं, बिल्कुल नहीं। अधूरा है लेकिन इतना ही है। ~~~~राशिद अली

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