
Ekatmita Social Welfare Society ( प्रशासक समिति ®✊🚩 / Prashasak Samiti )
May 28, 2025 at 04:23 PM
*आज हर गैर-मुस्लिम के लिए आवश्यक है कि वो एक बार इस्लाम का इतिहास जरूर पढ़े क्योंकि इस समय आपके आसपास जो भी हो रहा है उस पर इस्लाम के इतिहास का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव है।*
🔏 लेखक : पंकज सनातनी
इस्लाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद की 632 ईस्वी में मौत होती है जो कि आज भी एक रहस्य है। उनकी मौत के बाद उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू होती है।
उनका ससुर अबु बकर खलीफा बन जाता है, लेकिन इस बीच मुहम्मद की बेटी फातिमा को जिंदा जलाकर मार दिया जाता है क्योंकि उत्तराधिकार में एक नाम मुहम्मद के दामाद अली का भी था।
अबु बकर 2 साल राज किया और 634 ईस्वी में प्राकृतिक मौत मरा, प्राकृतिक लिखना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसके बाद सारे खलीफा मारे गए। अबु बकर का खास 'उमर' अब खलीफा बनता है और 644 ईस्वी में इसकी हत्या कर दी जाती है।
उमर के बाद उस्मान खलीफा बनता है जिसकी 656 ईस्वी में हत्या कर दी जाती है और इस हत्या के छींटे मुहम्मद के दामाद अली पर भी लगते हैं। मुहम्मद की पत्नी आयशा और अली के बीच युद्ध भी होता है जिसमें आयशा की पराजय हो जाती है।
अली खलीफा बनते है और 661 ईस्वी में इनकी भी हत्या करवा दी जाती है, मुआविया नाम का एक सीरिया का गवर्नर था जिसका नाम भी इस हत्या में आता है। अली के दो बेटे थे हसन और हुसैन, हसन को जहर देकर मरवा दिया जाता है और हुसैन को कर्बला के युद्ध में मार दिया जाता है।
इस तरह मुहम्मद के परिवार के सभी सदस्यों की हत्या खुद मुसलमानों द्वारा ही कर दी जाती है और ये सब सत्ता का खेल था। लेकिन कहानी में अभी बहुत ट्विस्ट है, दरअसल ये जो मुआविया है इसे आधे लोग तो मुसलमान मानते भी नहीं क्योंकि ये ईसाईयों को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रखता था।
इसका बेटा यजीद जब खलीफा बना तो उसका तो बचपन ही अपनी ईसाई माँ के साथ चर्च में गुजरा था। कुल मिलाकर ये मुआविया और उसके बाद जो खलीफा आए वे सब इस्लाम के लिए उतने ज्यादा समर्पित नहीं थे क्योंकि इन लोगों ने इस्लाम कभी मर्जी से नहीं अपितु जान बचाने के लिए अपनाया था।
साम्राज्य के विस्तार की अथाह आवश्यकता थी खलीफाओं के पास देने के लिए सिर्फ मजहबी कट्टरता थी ना कि धन। इसलिए इस्लाम के प्रचार के नाम पर भारत के सिंध से यूरोप के स्पेन तक इस्लाम को फैलाया गया और भयानक लूट पाट हुई।
अभी तो एक ट्विस्ट और है, सालों तक चली इस उत्तराधिकार की लड़ाई में मुहम्मद के समय लिखा गया सारा साहित्य नष्ट हो चुका था इसलिए 790 ईस्वी में इसे फिर से लिखा गया और तब चांद के टुकड़े करना और तरह-तरह के चमत्कार जोड़े गए।
कहने का अर्थ यह है कि आज जो भी आप इस्लाम के बारे में पढ़ रहे हैं वो सब मुहम्मद की मौत के 160 साल बाद लिखा गया है, हो सकता है मुआविया के पहले के ये सारे पात्र जो ऊपर लिखे गए है वे सब लिखने वालों की एक कल्पना हो शायद खुद... भी एक कल्पना ही हो।
मुआविया के बाद कई राजवंश आए और इस्लाम के नाम पर सत्ता की रोटी सेकते रहे। ये रोटी बड़ी स्वादिष्ट थी क्योंकि जब इस्लाम का प्रचार भारत और स्पेन में हुआ तो कई लोग हज के लिए अरब जाने लगे और अरब के लोगों के हाथ में पैसा आने लगा।
इसके अलावा मुस्लिम शासक किसी भी देश का हो वो शपथ खलीफा के नाम की लेता था। जो की खलीफा का वर्चस्व दर्शाता है।
वर्तमान में सऊद राजपरिवार सऊदी अरब पर राज कर रहा है इनका संबंध बानू हनीफा नाम के कबीले से है। ये वो ईसाई कबीला था जो हजरत मुहम्मद के विरुद्ध युद्ध लड़ा था, कई बार मुहम्मद को हराया भी और जब हार गया तो जान बचाने के लिए इस्लाम अपना लिया।
निःसंदेह ये सारे अरबी खलीफा, राजा और व्यापारी नमाज पढ़ते है इस्लाम के लिए पैसा बहाते है। लेकिन इनके पूर्वजों ने सिर्फ तलवार की दम पर इस्लाम अपनाया था। इन्हें इस्लाम से लगाव नहीं है बल्कि यह व्यापार बन गया है, सऊदी अरब सिर्फ हज यात्रा के नाम पर हर साल 30 अरब डॉलर कमाता है।
पाकिस्तान को इस समय भुखमरी से बचने के लिए 10 अरब डॉलर की आवश्यकता है। अरब के मुसलमान जिस इस्लाम के दम पर सोने के सोफे पर बैठे है पाकिस्तान के मुसलमान उसी इस्लाम के नाम पर आज भूखे मर रहे हैं।
कुल मिलाकर मजहब नहीं दुकान है यदि अमीरों का फायदा है तो सब बिकाऊ है बाकी नौकरों के लिए साफ सफाई और हमारा मालिक महान है वाली फनी चीजे है ही।
राष्ट्रहित सर्वोपरि ✊🚩
✍️ साभार
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