
☝️Haqq Ka Daayi (An Islamic Channel)
June 15, 2025 at 04:43 PM
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❁ вɪѕмɪʟʟααнɪʀʀαнмαռɪʀʀαнєєм
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*▣_ शहादत ए हुसैन _▣*
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*◈-क़िस्त - 05-◈*
*▣ मोहर्रम और आशूरा के दिन नाजायज़ काम ▣*
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*※(1) _मातम ,नोहा करना और सौग मनाना ※*
*▣_ माहे मोहर्रम को बाज़ लोग मनहूस महीना समझते हैं हालांकि (जैसा पहले गुज़र चुका) यह महीना मुबारक है बड़े बड़े अज़ीम वाक़्यात इस महीने में पेश आए हैं, कई लोग इस माह में खुशुसन आशूरा के दिन मातम करते हैं और गम का इज़हार करते हैं, यह गुनाह है, इस्लाम हमें सब्र और इस्तेका़मत की तालीम देता है। ज़ोर ज़ोर से रोना पीटना कपड़े फाड़ना छातियों को पीटना इस्लामी तालीमात से कोसों दूर है।*
*▣_ इस्लाम का हुक्म यह है कि किसी के मरने से 3 दिन के बाद गम का इज़हार ना करो और ना ही सोग मनाओ । सिर्फ औरत अपने शौहर के मरने के बाद 4 माह 10 दिन सोग मनाएं। शौहर के अलावा किसी और का चाहे वह बाप हो भाई हो या बेटा तीन दिन से ज़्यादा सोग मनाना जायज़ नहीं।*
*▣_ सहीह बुखारी की हदीस है कि उम्मुल मोमिनीन हजरत उम्मे हबीबा रजियल्लाहु अन्हा को अपने वालिद की वफात की खबर पहुंची तो 3 दिन के बाद खुशबू मंगाई और चेहरे को लगाई और फरमाया कि मुझे इसकी ज़रूरत नहीं थी (क्योंकि बूढ़ी हो चुकी थी और खाविंद यानी हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की वफात हो चुकी थी ) लेकिन मैंने बाप का सौग खत्म करने के लिए खुशबू लगाई क्योंकि मैंने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से सुना कि किसी मुसलमान औरत के लिए 3 दिन से ज़्यादा सौग मनाना जायज़ नहीं ।*
*▣_ इस हदीस मुबारक से मालूम हुआ कि 3 दिन से ज्यादा सौग मनाना जायज़ नहीं, बाज़ लोग सैयदना हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु का सौग मनाते हैं ,मुहर्रम में अच्छे कपड़े नहीं पहनते ,बीवी के क़रीब नहीं जाते,चार पाइयों को उल्टा कर देते हैं वगैरा- वगैरा ।*
*▣_ हालांकि हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत को तक़रीबन 14 साल से भी ज़्यादा हो चुके, यह नावाक़फियत की बातें है ।*
*▣_ अल्लाह ताअला हम सबको हिदायत पर रखे ।आमीन या रब्बुल आलमीन।*
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*※ २_ ईसाले सवाब के लिए खाना ※*
*▣_ मोहर्रम के महीने में बिलखुसूस 9 वी 10 वी और 11 वीं तारीख में खाना पका कर हजरत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु की रूह को ईसाले सवाब करते हैं ।*
*▣_ईसाले सवाब का सबसे अफज़ल तरीक़ा यह है कि अपनी हैसियत के मुताबिक नक़द रक़म किसी खैर के काम में लगा दें या किसी मोहताज मिस्कीन को दे दें यह तरीक़ा इसलिए अफज़ल है कि इससे मिस्कीन अपनी हर हाजत पूरी कर सकेगा और आज उसे कोई ज़रूरत नहीं तो कल की ज़रूरत के लिए रख सकता है। यह सूरत दिखावे से भी पाक है।*
*▣_ हदीस पाक में मख्फी (गुप्त ) सदका देने वाले की यह फजीलत वारिद हुई है कि ऐसे शख्स को अल्लाह ताला बरोज़े क़यामत अर्श के साए में जगह इनायत फरमाएंगे जबकि कोई और साया ना होगा और शदीद गर्मी से लोग पसीनो में गर्क हो रहे होंगे।*
*▣_फजी़लत के लिहाज़ से दूसरे दर्जे पर यह सूरत है कि मिस्कीन की हाजत के मुताबिक़ सदका़ दिया जाए यानी उसकी ज़रूरत को देखकर उसे पूरा किया जाए यह ईसाले सवाब की सही सूरतें हैं।*
*⚀•हवाला:➻┐शहादते हुसैन रजियल्लाहु अन्हु, ( मजमुआ इफादात)*
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