
Veer Tejaji🚩
May 25, 2025 at 10:46 AM
“जवानी का जनसैलाब और सियासत की नब्ज़”
राजस्थान की तपती दोपहर में जब आसमान आग उगल रहा है, तब एक और आग ज़मीन पर जल रही थी—युवाओं के दिलों में, उनके अधिकारों की लड़ाई के लिए। न साधन, न सत्ता, न संगठन—फिर भी हनुमान बेनीवाल के पीछे जिस तरह युवाओं का सैलाब उमड़ा, वह भारतीय राजनीति में एक अहम संकेत बनकर उभरा है।
ना तो कोई चुनाव क़रीब है, ना पद का लोभ, ना ही कोई सरकारी मशीनरी साथ—लेकिन फिर भी लाखों युवाओं का इस रैली में यूँ सड़कों पर उतर आना दिखाता है कि मुद्दा अब सिर्फ़ एक भर्ती का नहीं रहा, यह भरोसे के टूटने और व्यवस्था से मोहभंग का नतीजा है।
“हम से छीनो न हमारे हक़ की हवाएँ,
हमसे न छीनो ये रोज़गार की दुआएँ।
बग़ावत अगर हक़ है तो बग़ावत सही,
अब सड़कों पे उतरे हैं इंक़लाब के साए।”
सरकार ने जिसे ‘सामान्य विरोध’ समझा, वह धीरे-धीरे ‘जनांदोलन’ की शक्ल ले चुका है। इंटेलिजेंस विफल रही, मंत्री वर्ग भ्रम में रहा, और नौजवानों ने बता दिया कि अब सिर्फ़ धैर्य नहीं, निर्णय चाहिए।
यह सिर्फ़ हनुमान बेनीवाल की बात नहीं, यह उस राजनीतिक सूझबूझ की बात है जो मुद्दे की नब्ज़ पकड़ लेती है। राजस्थान की सियासत में यह शायद लंबे अरसे बाद हुआ है कि किसी एक नेता के पीछे मुद्दों पर ऐसी दीवानगी देखी गई हो—बग़ैर किसी संगठनात्मक ढांचे के।
“वक़्त बताएगा कौन सही था, कौन ग़लत,
फिलहाल तो सड़कों पे जनसैलाब गवाही दे रहा है।”
सरकार ने जिस फैसले को टालना समझदारी समझा, वही अब उसके लिए सबसे बड़ा सियासी इम्तिहान बन चुका है। भर्ती रद्द हो या ना हो, पर जनता ने अपना फ़ैसला सुना दिया—यह प्रक्रिया अब ‘फर्ज़ी’ कहलाने लगी है, और जब विश्वास मरता है तो वोट की चोट सबसे पहले पड़ती है।
अंजाम जो भी हो, पर ये शुरुआत है उस सियासी मौसम की—जहाँ जवानी फिरसे मुद्दों की दीवानी हो रही है।
@hanumanbeniwal
#rajasthan