Guru Nanak Blessings 🙌
June 17, 2025 at 04:00 PM
*कल के सत्संग का ज्ञान*👏
*!! धन गुरु नानक जी !!*
!!श्री जपजी साहिब जी!!
!! Day 104!!
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*बहुता करमु लिखिआ ना जाइ ॥ वडा दाता तिलु न तमाइ ॥*
पद्अर्थ: करमु = बख्शिश। तिलु = तिल मात्र भी। तमाइ = लालच, त्रिष्णा। दाता = दातें देने वाला।
अर्थ: अकाल-पुरख बहुत सी दातें देने वाला है, उसे तिलमात्र भी लालच नहीं है। उसकी बख्शिश इतनी बड़ी है कि लिखने में नहीं लाई जा सकती।
👉🏻 अगोचर में समाना है तो है तो नाम जपना होगा।
👉🏻ईश्वर को जितना बड़ा है उससे बड़ी उसकी दाते है।
*पउड़ी ॥ ना तू आवहि वसि बहुतु घिणावणे ॥ ना तू आवहि वसि बेद पड़ावणे ॥ ना तू आवहि वसि तीरथि नाईऐ ॥ ना तू आवहि वसि धरती धाईऐ ॥ ना तू आवहि वसि कितै सिआणपै ॥ ना तू आवहि वसि बहुता दानु दे ॥ सभु को तेरै वसि अगम अगोचरा ॥ तू भगता कै वसि भगता ताणु तेरा ॥१०॥*
👉🏻 परमात्मा बहुत दिखावे वाले तरले लेने से, वेद पढ़ने-पढ़ाने से, तीर्थ पर स्नान करने से, साधुओं की सारी धरती गाहने से, किसी चतुराई-सयानप से, बहुत दान देने से, किसी जीव के वश में नहीं आता।
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👉🏻हे अपहुँच और अगोचर प्रभू! हरेक जीव तेरे अधीन है।
👉🏻इन दिखावे के उद्यमों से कोई जीव तेरी प्रसन्नता प्राप्त नहीं कर सकता।
👉🏻ईश्वर सिर्फ उन पर रीझता है जो सदा उसका सिमरन करते हैं, तेरा भजन-सिमरन करने वालों को सिर्फ तेरा आसरा-सहारा होता है।
👉🏻 उसे परमात्मा का अंत पाया नहीं जा सकता।
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कबीर साहिब जी कहते हैं:-
*सलोकु ॥ कबीर महिदी करि कै घालिआ आपु पीसाइ पीसाइ ॥ तै सह बात न पुछीआ कबहू न लाई पाइ ॥१॥*
👉🏻 कबीरदास जी कह रहे है मैंने अपने आप को मेंहदी की तरह पीस-पीस के बड़ी मेहनत की, किन्तु हे प्रभू तूने मेरी बात भी नहीं पूछी (भाव, तूने मेरी सार ही नहीं ली) और तूने मुझे अपने चरणों से नहीं लगाया।
आगे गुरु नानक देव जी महाराज कह रहे हैं:-
*मः ३ ॥ नानक महिदी करि कै रखिआ सो सहु नदरि करेइ ॥ आपे पीसै आपे घसै आपे ही लाइ लएइ ॥ इहु पिरम पिआला खसम का जै भावै तै देइ ॥२॥*
👉🏻हमें महिंदी बनाया भी उसने खुद ही है।
👉🏻जब प्रभू मेहर की नजर करता है, वह खुद ही महिंदी को पीसता है, खुद ही रगड़ता है, खुद ही अपने पैरों पर लगा लेता है।
👉🏻। ये प्रेम का प्याला प्रभू की अपनी वस्तुहै, उस मनुष्य को देता है जो उसको प्यारा लगता है।
"कोई पीयो रे प्याला नाम रस का"
👉🏻 परमात्मा किसी को भी कुछ देता है तो उसका गुण, धर्म, स्वभाव आदि देखकर नहीं देता, वह समदृष्टि है सबको बराबर देता है।
गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस में लिखते हैं:-
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"कोमल चित्त अति दीन दयाला,
कारण बिन रघुनायक कृपाला। "
तीसरी पातशाही जी कहते हैं:-
👉🏻चित्त लगाकर उस ईश्वर की वडियाइ कर।
👉🏻 हर क्षण परमात्मा का शुक्रिया करें।
👉🏻हर एक स्वांस में, उठते- बैठते, सोते -जागते, चलते -फिरते ,सुबह- शाम ,दिन -रात परमात्मा का शुक्रिया करें।
👉🏻दान देते समय नैन नीचे रखें। ईश्वर ने आपको यह सेवा दी है, शुक्र करें।
*सलोकु मः ३ ॥ ए मन हरि जी धिआइ तू इक मनि इक चिति भाइ ॥ हरि कीआ सदा सदा वडिआईआ देइ न पछोताइ ॥*
अर्थ: हे मन! प्यार से एकाग्रचिक्त हो के हरी का सिमरन कर; हरी में ये हमेशा के लिए गुण हैं कि दातें दे के पछताता नहीं।
*हउ हरि कै सद बलिहारणै जितु सेविऐ सुखु पाइ ॥ नानक गुरमुखि मिलि रहै हउमै सबदि जलाइ ॥१॥*
अर्थ: मैं हरी से सदा कुर्बान हूँ, जिसकी सेवा करने से सुख मिलता है; हे नानक! गुरमुख जन अहंकार को सतिगुरू के शबद के द्वारा जला के हरी में मिले रहते हैं।1।
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शुकराना वाहेगुरु जी🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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