
Daily Vivekananda
June 19, 2025 at 12:28 AM
हम पहले प्रत्यक्षानुभूति करते हैं, युक्ति-विचार बाद में आता है। हमें यह प्रत्यक्षानुभूति प्राप्त करनी होगी, और इसे ही धर्म, साक्षात्कार कहा जाता है। किसी व्यक्ति ने भले ही शास्त्र, संप्रदाय या अवतारों का नाम भी न सुना हो, किन्तु यदि उसने प्रत्यक्षानुभूति कर ली है, तो उसे और किसी बात का प्रयोजन नहीं रह जाता।
-- स्वामी विवेकानन्द
{वि.सा. ७ : देववाणी - २९ जुलाई, सोमवार}
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