Geet Chaturvedi
Geet Chaturvedi
June 16, 2025 at 02:42 PM
जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो सच कहूं, मैं अपनी कविता के बारे में बहुत आश्वस्त-विश्वस्त होकर कुछ नहीं कह पाता। मुझे वे दिन याद आ जाते हैं, जब मैं लुहार का काम करता था। लोहे की जो कृतियां मैं बनाता था, उनसे लगभग निराश हो जाता था। अब मुझे लगता है कि कवि और लुहार दोनों लगभग एक जैसे होते हैं- दोनों ही उस सटीक-अचूक स्वप्न के पीछे दौड़ रहे होते हैं जो कभी पूरा नहीं हो सकता। अपनी एक शुरुआती कविता में मैंने ये पंक्तियां लिखी थीं : आज़ादी और कुछ नहीं सिवाय उस दूरी के जो शिकारी और शिकार के बीच होती है कविता लिखने की गत भी ऐसी ही है। जब आप कविता का शिकार करने की कोशिश करते हैं, कविता आपका शिकार कर लेती है। इस तरह देखा जाए, तो आप ख़ुद शिकार हैं, ख़ुद ही शिकारी भी, लेकिन कविता दोनों के बीच की दूरी है, जैसे आज़ादी। - बेई दाओ (पेई ताओ) अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
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