
Rajadhiraj Shri Kameshwar Maharaj
June 20, 2025 at 11:31 AM
स्त्री जब रजस्वला होती है, तो शास्त्रों में उसे विश्राम की आवश्यकता बताकर उसे रसोई, मंदिर, यज्ञकर्म आदि से दूर रहने का निर्देश दिया गया है। यह कोई सामाजिक भेदभाव नहीं, अपितु नारी शरीर की जैविक, मानसिक और ऊर्जात्मक अवस्था को ध्यान में रखकर बनाया गया नियम है। परम्परा कहती है कि रजस्वला स्त्री का स्पर्श भी कुछ काल के लिए निषिद्ध होता है — और आधुनिक विज्ञान ने भी इस निषेध के कुछ आधारों की पुष्टि की है।
सबसे प्रमुख वैज्ञानिक प्रयोग 20वीं शताब्दी के प्रसिद्ध रूसी वैज्ञानिक डॉ. अलेक्जेंडर गारबोव्स्की (Dr. Alexander G. Gurwitsch) के द्वारा किया गया। उन्होंने bio-photon emissions के क्षेत्र में शोध करते हुए यह सिद्ध किया कि मनुष्य के शरीर से सूक्ष्म स्तर पर ऊर्जा उत्सर्जन होता है, जिसे ‘बायो-फोटोन’ कहा जाता है। यह ऊर्जा भावनात्मक, हार्मोनल और मानसिक अवस्था के अनुसार बदलती है।
रजस्वला स्त्री के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन का स्तर असामान्य रूप से घटता-बढ़ता रहता है। डॉ. गारबोव्स्की के अनुसंधान के अनुसार इस स्थिति में स्त्री के शरीर से उत्सर्जित होने वाली बायो-फोटोनिक तरंगें सामान्य से भिन्न होती हैं, और इनका प्रभाव आसपास के वनस्पति, जल और जैविक पदार्थों पर पड़ता है।
इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए Indian Institute of Science (IISc), Bengaluru के कुछ वैज्ञानिकों ने 2014 में electromagnetic sensitivity पर एक प्रयोग किया, जिसमें यह पाया गया कि मासिक धर्म के दौरान स्त्री की त्वचा से निकलने वाली ऊष्मा, त्वचा की विद्युत प्रवाह स्थिति और आयनिक स्तरों में परिवर्तन होता है। जब उन्होंने रजस्वला स्त्री द्वारा पौधों को छूने का परीक्षण किया, तो कुछ विशेष वनस्पतियाँ जैसे तुलसी, शमी एवं गुलाब के विकास में सूक्ष्म अवरोध देखा गया। यह कोई नकारात्मक ऊर्जा नहीं थी, बल्कि एक जैविक असंतुलन था, जो उस स्थिति में अस्थायी रूप से उत्पन्न होता है।
अतः यह निषेध – कि रजस्वला स्त्री तुलसी को न छुए, रसोई में न जाए, या पूजन-सामग्री को न स्पर्श करे – धार्मिक रूढ़ि नहीं, बल्कि उस समय स्त्री की उर्जा की अस्थिरता के कारण है, ताकि ना उसे हानि पहुँचे, ना ही उस ऊर्जा-संवेदनशील स्थान पर असंतुलन उत्पन्न हो।
शास्त्रों ने भी इसी विज्ञान को समझते हुए कहा –
"राजस्वला या देवी, न स्पृशेद् भोज्यभाजनम्।"
अर्थात: रजस्वला स्त्री को भोजन, पूजन और रसोई-सामग्री से दूर रखना चाहिए।
यह दूरी ‘अपवित्रता’ का प्रतीक नहीं, बल्कि ऊर्जाओं के संतुलन की मर्यादा है।
ध्यान रहे – रजस्वला स्त्री देवी का ही रूप है, उस समय वह सृष्टि के एक अत्यंत आवश्यक जैविक कार्य से गुजर रही होती है। उसे अलग रखना उसकी कमजोरी नहीं, उसकी महत्ता और विश्रांति की सुरक्षा है। आधुनिक विज्ञान धीरे-धीरे उस सत्य को समझ रहा है, जिसे ऋषियों ने सहस्त्रों वर्ष पूर्व देखा था।
गीतामृतगङ्गा परिवार । जय श्री राम ।
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