
🕉️🇮🇳 वंदेमातरम्🚩🚩🇮🇳🇮🇳
June 19, 2025 at 07:27 AM
यूक्रेन बनाम रूस जैसा कोई युद्ध वास्तव में नहीं है और न ही ईरान बनाम इज़राइल। हाँ, यह सब अपनी अपनी भी लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन असली खेल है रूस बनाम अमेरिका। यह ऐसा युद्ध है जो कई दशकों से जारी है। अपना रंग रुप बदलता रहता है पर सतत जारी रहता है। रूस, अमेरिका की ही तरह एक विशाल देश है जिसे यदि थोड़ा भी मौक़ा मिलता है तो वह उठ खड़ा होता है। उसी रूस को रोकने के लिए वास्तव में नाटो बनाया गया अर्थात् नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन। नार्थ अटलांटिक वह समुद्री क्षेत्र है जिसके चारो तरह दुनिया के सबसे समृद्धशाली राष्ट्र जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली आदि बसे हुए हैं। रूस को यदि अमेरिका किसी तरह इस क्षेत्र में घुसने से रोक दे तो रूस दुनिया के व्यापार में बहुत पीछे चला जाएगा और इन देशों में उसका दखल भी समाप्त हो जाएगा।
रूस ऊपर ब्लैक सी में क्रीमिया (लाल रंग से दर्शाया स्थान) में पिछले तीन सौ सालों से बना हुआ है और वहाँ से अपने पोर्ट के माध्यम से ब्लैक सी से होते हुए ग्रीस के निचले हिस्से से पश्चिमी यूरोप तक पहुँच जाता है। कोल्ड वार के बाद जब USSR टूटा तो क्रीमिया रूस के हाथ से जाता रहा लेकिन जल्द ही इसे समझ आ गया कि क्रीमिया के बिना रूस बौना साबित होगा इसलिए अंततः रूस में मौला देखा और क्रीमिया पर पुनः अपना क़ब्ज़ा स्थापित कर लिया। नीचे की तरफ़ उसने सीरिया से अपने लिए रास्ता खोल लिया। असद परिवार जिसे अभी कुछ ही समय पहले सीरिया की सत्ता से बेदखल किया गया है वह रूस का समर्थक था और रूस की सेना और नेवी दोनों वहाँ से समुद्र में अपनी उपस्थिति बनाए रखती थी।
नाटो जो को वास्तव में नार्थ अटलांटिक क्षेत्र का संगठन था उसे अमेरिका ने रूस को घेरने के लिए बढ़ाना शुरू कर दिया और यूक्रेन जो कि रूस से सटा हुआ था और जिसका नार्थ अटलांटिक क्षेत्र से कोई मतलब नहीं है उसे भी इसमें शामिल होने को आमंत्रित किया गया। इस आमंत्रण के पीछे अमेरिका का एक मात्र मकसद था कि धीरे धीरे ब्लैक सी को चारों तरफ़ से घेरना और रूस को इस पश्चिमी यूरोप के समुद्री रास्ते से बिल्कुल समाप्त कर देना। इसलिए रूस ने पहले क्रीमिया को क़ब्ज़ा किया ताकि ब्लैक सी में उसकी जो तीन सौ साल पुरानी पहुँच है वो बरकरार रहे और यूक्रेन पर हमला बोल दिया। यूक्रेन को इस युद्ध से कुछ नहीं मिलने वाला लेकिन अमेरिका ने इस युद्ध का फ़ायदा उठाया और रूस के व्यस्त होते ही सीरिया में सत्ता परिवर्तन कर दिया और असद परिवार के साथ ही साथ रूस की सेना, नेवी को भी समुद्र का यह निचला हिस्सा छोड़ना पड़ा। रूस को पता है कि यदि किसी भी तरह उसने यूक्रेन को छोड़ दिया और वह नाटो में शामिल हुआ तो क्रीमिया भी उसके हाथ से जाएगा और ब्लैक सी के माध्यम से पश्चिम यूरोप में उसके लिए रास्ता बंद हो जाएगा।
रूस को जब लगा कि बाईडेन प्रशासन पूरी तरह से यूक्रेन के पक्ष में है और रूस के लिए यह युद्ध खिंचना भारी साबित हो रहा है तो उसने ही अपने पिट्ठू ईरान को सक्रिय किया। ईरान ने अमेरिका के संसाधनों को एक युद्ध के बजाय दो जगहों पर डाइवर्ट करने के लिए अपने प्रॉक्सी हमास को आगे करके इसराइल पर हमला करा दिया। इसराइल और यहूदियों ने अपने आदत और पूर्व के अनुभवों के आधार पर इसे अपने अस्तित्व का प्रश्न मान लिया। अब युद्ध दो फ्रंट पर खुल गया और यूक्रेन को अमेरिका से मिलने वाली सहायता में एक हिस्सा इसराइल का भी लगने लगा। रूस की यह नीति कारगर साबित हुई और युद्ध अभी तक चलाने में कामयाब साबित हुआ है। अब जबकि अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन है जो पुतिन के लिए सहानुभूति भी रखता है। अब जब इजराइल का फ्रंट रूस ने खोल दिया तो अमेरिका में इस मौके पर फ्री में सहायता करने के बजाय इजरायल के साथ मिलकर सीरिया से रूस को भगा दिया और अपने मनमाफिक सत्ता परिवर्तन कर डाला।
रूस के कहने पर अपने प्रॉक्सी हमास हिजबुल्ला और हूती से इसराइल पर हमले कराकर ईरान तमाशा देखना चाहता था और साथ ही इस्लामिक जगत का बेताज बादशाह बनना चाहता था पर इसराइल का भय भी जायज है कि इस्लामिक उम्मा के बीच ख़ुद को बड़ा साबित करने के लिए यदि ईरान ने उसके अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया तो फ़िर क्या होगा? उधर ईरान के नष्ट होने से रूस कमजोर होगा सो अमेरिका का भी स्वार्थ सधेगा, इसलिए दो दिन पहले तक ईरान से मतलब न रखने का दावा करने वाले ट्रंप अब धमकी दे रहे हैं। उधर पाकिस्तान ने ईरान के साथ डबल गेम कर दिया। उसने ईरान से वादा किया कि उम्मा के नाते वह ईरान का साथ देगा लेकिन जब जरूरत लगी तो न केवल भाग खड़ा हुआ बल्कि उल्टा आज तो उसके ज़मीन से संभवतः अमेरिकी सेना के जहाज़ भी उड़ान भर रहे हैं। पाकिस्तान अमेरिका के लिए बहुत महत्व का देश रहा है क्यूंकि ईरान और अफ़ग़ानिस्तान दोनों पाकिस्तान के पड़ोसी देश हैं और वहाँ की जानकारी पाकिस्तानी आई एस आई से ही ठीक से मिल सकती थी। अब प्रश्न यह है कि यदि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो जाता है तो भला फिर अमेरिका को पाकिस्तान की क्या जरूरत रहेगी? और यदि पाकिस्तान चीन के साथ चला जाता है तो बगल में ईरान में बैठा अमेरिका उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा खासकर तब जबकि बलूचिस्तान ही ईरान से लगा है?
दुनिया के देश शतरंज की गोटियों की तरह हैं। सब एक दूसरे से जुड़े, अपनी अपनी अलग चाल, अपना अपना पक्ष। फ़िलहाल दुनिया में जो युद्ध के रूप में घटनाएँ देखने को मिल रही हैं वह वास्तव में अमेरिका का रूस को घेरने की प्रतिक्रिया है। यह सब प्रतिक्रियाएँ अपने अपने स्वार्थ के हिसाब से अलग अलग देश दे रहे हैं।
🖋️ भूपेंद्र सिंह जी
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