
Poet And Pancakes
May 24, 2025 at 07:51 PM
*धूप-छाँव का खेल*
पर्वत विशाल, शीतल नदी के बीच दिखा वो,
अचरज भरा, किंतु सुहावना दृश्य अनूठा,
कुदरत का था करिश्मा या कोई जादू,
मेरे दिल को चुराने वाला धूप-छाँव का खेल।
जिधर गई निगाह उधर फैली धूप, मुस्काती,
रे एक बार झपकी पलक तो आ खड़ी हुई छाँव।
पल में बदलती जगह, हैरान करती ये जोड़ी,
जैसे हो दो छोटे बच्चे, खेले छुपन छुपाई का खेल।
दोनों समझते हैं, एक-दूसरे के लिए तड़पते हैं,
पर ऐसी उनकी किस्मत, कभी न मिल सकते हैं।
उन्होंने निकाला संग रहने का नया तरीका,
सदियों से चला आ रहा उनका अनोखा मेल।
इंसान तो साथ हो फिर भी अलग हो जाते है,
अरे सीखो, हैं सदियों से अलग फिर भी है साथ,
आखिर प्रकृति ने सुनी पुकार, पसीजे दिल और हुआ मिलन,
पर्वत विशाल के बीच दिखा, वह धूप-छाँव का खेल।
- Chinmay

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