जैन पाठशाला जैन धर्म Jain Religion and Jainism
June 16, 2025 at 06:11 AM
निगोद के दुःख और वहाँ से निकलने का क्रम
*एक श्वास में अठदस बार, जन्म्यो मस्यो भयो दुखभार ।*
*निकसि भूमि जल पावकभयो, पवन प्रत्येक वनस्पति थयो ॥4॥*
*अन्वयार्थ-* "निगोद में यह जीव" ( एक श्वास में ) एक श्वास में (अठदसबार) अठारह बार ( जन्म्यो ) पैदा हुआ (मरयो) मरा और (दुख भार ) दुःखों का समूह ( भरयो) सहा [ और वहाँ से ] ( निकसि) निकल कर (भूमि) पृथ्वीकायिक जीव (जल) जलकायिक जीव (पावक) अग्निकायिक जीव (पवन) वायुकायिक जीव और (प्रत्येक वनस्पति ) प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव (थयो ) हुआ।
*अर्थ* - निगोद में इस जीव ने एक श्वास मात्र (एक मुहूर्त जो दो घड़ी अर्थात् 48 मिनिट का होता है और जिसके 3773 श्वास होते हैं उनमें यह जीव 66336 बार जन्म-मरण करता है) एक श्वास में अठारह बार जन्म और मरण करता हुआ, दुःख के बोझ को सहता हुआ, वहाँ से निकलकर यह जीव पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और प्रत्येक वनस्पति कायिक (ऐसे पाँच तरह के एकेन्द्रिय) स्थावर जीव हुआ है ।
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