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                                June 21, 2025 at 11:17 PM
                               
                            
                        
                            **रा-धा/ध:-स्व-आ-मी!                                                                             22-06 -2025-(रविवार) आज सुबह सतसंग में पढे गये शब्द पाठ:-                                                       (1) दरस गुरु पाया जागा भाग। बढ़ा गुरु चरनन में अनुराग।। (संस्कृत)(प्रेमबानी- शब्द-71- पृ.सं.357,358)(अधिकतम् उपस्थिति- करनाल ब्राँच हरियाणा- @-3:15- दर्ज-81)                                                             (2) राधा/ध:-स्व-आ-मी चरन सीस मैं ड़ारा। राधा/ध:-स्व-आ-मी कीन मोर उपकारा।। (प्रेमबानी-2- शब्द-18- पैरा-1-11- पृ.सं.101-103)(स्वेतनगर मोहल्ला)                                                                           (3) आज आनंद रहा मौज से चहुँ दिस छाई। राधा/ध:-स्व-आ-मी की रहे सब मिल महिमा गाई।। (रत्नांजली- शब्द-57- पृ.सं.118-120)(पुरुष पाठ पार्टी दयालबाग)                                                                                                                                                                                                        सतसंग के बाद:-                                           (1)- रा-धा/ध:-स्व-आ-मी मूल नाम।                                                                (2)- हे दयाल सद् कृपाल!                                          {संत सुपरमैन व विद्यार्थीगण द्वारा पढ़ें गये शब्द पाठ }-                                                         (१)- राधा/ध:-स्व-आ-मी रक्षक जीव के जीव न जाने भेद। गुरु चरित्र जाने नहीं रहें कर्म के खेद।। (प्रेम समाचार)                                                    (२)- अहो मेरे प्यारे सतगुरु, अचरज शब्द सुना दो, धुन में स्रुत अटके।। (प्रेमबानी-3- शब्द-5- पृ.सं.151,152)                                                         (३)- भक्त का पंथ निराला है।।टेक।। (प्रेमबानी-4- शब्द-5- पृ.सं.93)                                                          (४)- राधा/ध:-स्व-आ-मी आय प्रगट हुए जग में। राधा/ध:-स्व-आ-मी मोहि लगाया सँग में।। (प्रेमबिलास- शब्द-98- पृ.सं.140,141)                                                        (५)- तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ। पढूं या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम। जो मर्जी तेरी के मुआफिक न हो रज़ा के तेरी कुछ मुख़ालिफ़ जो हो।। (संस्कृत)                                                                 (3)- रा-धा/ध:-स्व-आ-मी रा-धा/ध:-स्व-आ-मी रा-धा/ध:-स्व-आ-मी रा-धा/ध:-स्व-आ-मी रा-धा/ध:-स्व-आ-मी रा-धा/ध:-स्व-आ-मी रा-धा/ध:-स्व-आ-मी रा-धा/ध:-स्व-आ-मी!                                                                                                                                                                                                                                                🙏🏻रा-धा/ध:-स्व-आ-मी🙏🏻**