JAINISM Channel (Jain Terapanth)
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जैन धर्म सूचना /समाचार व्हाट्स एप चैनल में आप सभी धर्मानुरागी भाईयो बहिनों का स्वागत है । आप सभी से निवेदन है इस चैनल से आप अपने सभी मित्रों रिश्तेदारों को अवश्य जोड़ने का प्रयास करे । आभार
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12.06.2025, गुरुवार, उजडेश्वर, अरवल्ली (गुजरात) : चित्त को शुद्ध बनाने का हो प्रयास : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण - अरावली पहाड़ी शृंखला के गांव पूज्यचरणों से बन रहे पावन - करीब 10 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत पहुंचे उजडेश्वर गांव - श्री एस.वी.टी. कैंपस आचार्यश्री का हुआ पावन प्रवास गुजरात की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महामना आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुजरात के अरवल्ली जिले में गतिमान हैं। आचार्यश्री की पदरज को प्राप्त कर अरावली पहाड़ी शृंखला के आसपास बसे गांव और नगर पावनता को प्राप्त हो रहे हैं। गुरुवार को प्रातःकाल बायड नगर ने महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। बायडवासियों ने गुरुचरणों की वंदना कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। मार्ग में गतिमान राष्ट्रीय संत के दर्शन करने के लिए स्थान-स्थान पर ग्रामीण लोग उपस्थित दिखाई दे रहे थे। आचार्यश्री से आशीष प्राप्त कर ग्रामीण धन्यता की अनुभूति कर रहे थे। स्थान-स्थान पर कई स्कूलों के बच्चों भी आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद से लाभान्वित बने। एक स्थान मार्ग पर ही बच्चे बैठ गए तो आचार्यश्री ने वहां कुछ क्षण विराजमान होकर विद्यार्थियों को मंगल पाथेय व आशीष प्रदान की। सभी पर मंगल आशीष की वृष्टि करते हुए आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर अरवल्ली जिले के उजडेश्वर गांव में पधारे। गांव में स्थित श्री एस.वी.टी. कैंपस परिसर में पधारे। आचार्यश्री का आज का प्रवास यहीं निर्धारित था। विद्या संस्थान के परिसर में ही आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रद्धालु जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि यह पुरुष अनेक चित्तों वाला होता है। चित्त का एक अर्थ चैतन्य आत्मा भी कर सकते हैं। हरियाली, पानी आदि सचित्त है। चित्त का एक दूसरा अर्थ मन भी होता है। जैसे आज मेरा चित्त प्रसन्न है। आदमी के भीतर भावधारा भी है। पच्चीस बोल में छह तरह की लेश्याएं बताई गई हैं। इनमें प्रथम तीन लेश्याएं अशुभ और शेष तीन लेश्याएं शुभ होती हैं। सामान्य भाषा में कहें तो आदमी की भावधारा कभी अच्छी तो कभी बुरी भी होती है। मन जिस प्राणी को भी होता है, वह महत्त्वपूर्ण होता है। दुनिया ऐसे अनेक प्राणी ऐसे भी हैं, जिनके मन का विकास नहीं होता। मन का होना विकास होने का एक प्रमाण होता है। मन वाला प्राणी बहुत बढिया कार्य भी कर सकता है तो बहुत घटिया कार्य भी कर सकता है। जिनके मन नहीं होता वे न तो धर्म की विशेष साधना कर सकते हैं और न ही बहुत ज्यादा पाप कर पाते हैं, किन्तु मन वाला प्राणी बहुत ज्यादा पाप करके सबसे अधोगति अर्थात् सातवें नरक तक जा सकता है तो बहुत उच्च कोटि की साधना कर सर्वाधिक उच्च स्थान मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। मन एक ऐसी शक्ति है, जिसका दुरुपयोग हो तो अधोगति की प्राप्ति हो सकती है और अच्छा सुदपयोग हो जाए तो सर्वाधिक ऊर्ध्वारोहण हो सकता है। आदमी अपने मन अर्थात् चित्त को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए। जितना भी संभव हो मन में अच्छे विचार आएं, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आगे कहा कि वर्तमान में प्रेक्षाध्यान का पचासवां वर्ष ‘प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष’ चल रहा है। इसमें आदमी को अपने श्वास की प्रेक्षा का प्रयास हो। ध्यान, स्वाध्याय हो। अच्छी पुस्तकों को पढ़ें तो अच्छे विचार भी आ सकते हैं। चित्त को शुद्ध बनाने का प्रयास होता रहे। श्री एस.वी.टी. कैंपस की ओर से शिक्षक श्री शम्भूभाई खाट ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। https://www.instagram.com/p/DKyo3Vko35B/?igsh=eXN1djd4cmVsd2xk
*केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल वर्तमान कुलाधिपति जैन विश्व भारती संस्थान का जैन विश्व भारती लंदन सेंटर पर आगमन* लंदन स्थित जैन विश्व भारती सेंटर में केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल का आगमन हुआ। इस अवसर पर उन्होंने समणी मलयप्रज्ञा जी एवं समणी नीतिप्रज्ञा जी के दर्शन कर आध्यात्मिक संवाद प्राप्त किया। प्रवासी जैन समुदाय द्वारा उनका आत्मीय स्वागत किया गया।यह अवसर जैन संस्कृति, मूल्यों और प्रवासी भारतीयों के बीच आध्यात्मिक जुड़ाव का प्रतीक बन गया। मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग जैन विश्व भारती

🚶♂️ *विहार-सेवा*🚶♂️ *▧ तारीख* 04 जून 2025 *𖡤 आचार्य श्री महाश्रमण जी का विहार* पूज्य गुरुदेव युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल वाहिनी सह पी जी मेहता हाई स्कूल मालपुर ज़िला : अरवल्ली (गुजरात) से विहार करके अणियोर कम्पा प्राथमिक शाला अणियोर कम्पा तालुका : मालपुर ज़िला : अरवल्ली(गुजरात) पधारेंगे। *➨पूज्य गुरुदेव का रात्री प्रवास* अणियोर कम्पा प्राथमिक शाला अणियोर कम्पा तालुका : मालपुर ज़िला : अरवल्ली स्थान पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 👇👇👇👇 https://maps.app.goo.gl/tLaUnjtcVDUzqskJA ━═━═━═━இ━═━═━ Jainism channel
02.06.2025, सोमवार, इपलोड़ा, अरवल्ली (गुजरात) स्वाध्याय में रत रहने का हो प्रयास : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण - करीब 9 कि.मी. का विहार कर इपलोड़ा पधारे शांतिदूत - श्री जयंतीभाई शर्मा का निवास स्थान पूज्यचरणों से बना पावन मेघरज की जनता को आध्यात्मिकता की पावन प्रेरणा प्रदान करने के उपरान्त सोमवार को प्रातःकाल जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया तो मेघरजवासियों ने अपने आराध्य को वंदन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। ग्रामीण मार्ग से यात्रायित आचार्यश्री के आशीष का लाभ उस मार्ग पर स्थित कई ग्रामवासियों को भी प्राप्त हुआ। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी इपलोड़ा में स्थित श्री जयंतीभाई शर्मा के निवास स्थान में पधारे। महान संत के अपने आंगन में पदार्पण से शर्मा परिवार हर्षविभोर था। शर्मा परिवार के निवास स्थान पर ही आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालु जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आगम में प्रेरणा दी गई है कि सदा स्वाध्याय में रत रहो। मानव जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान लौकिक विद्याओं का भी होता है और आध्यात्मिक विद्याओं का भी होता है। लौकिक विद्याओं को अपना महत्त्व है तो आध्यात्मिक ज्ञान आत्मा की दृष्टि से और लोकोत्तर दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता है। स्वाध्याय करते रहने से कई कंठस्थ किए हुए ज्ञान सुरक्षित रह सकते हैं। सीखे गए दोहों का पुनरावर्तन होता रहे तो वह भूल भी सकता है। इसलिए पुनरावर्तन भी होना चाहिए। बच्चों को केवल भौतिक ज्ञान ही नहीं, आध्यात्मिक ज्ञान भी देने का प्रयास करना चाहिए। कोरी भौतिकता के ज्ञान से जो समस्या हो सकती है, वह आध्यात्मिक ज्ञान हो जाने से समस्याओं का समाधान हो जाता है। बच्चे अनेक स्थानों पर जाकर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इसके साथ बच्चों को धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान कराना भी बहुत जरूरी है। बच्चों में अच्छा ज्ञान हो, आध्यात्मिक रूप से भी शिक्षित हों और संस्कारित रहें तो बच्चे बड़े होकर अच्छे बन सकते हैं। अच्छी कहानियों से बच्चों को कितना ज्ञान मिलता है। आज के आधुनिक उपकरणों से भी बच्चों को कितने-कितने ज्ञान की प्राप्त हो सकती है। भौतिकता को जानने की आवश्यकता है तो धार्मिक ज्ञान का होना भी आवश्यकता है। कोरी भौतिकता कही समस्या जनक भी हो सकती है। उन समस्याओं से बचने के लिए आध्यात्मिकता का प्रभाव भी होना चाहिए। भौतिकता के साइड इफेक्ट से बचने के लिए धार्मिकता रूपी दवा का होना बहुत आवश्यक है। इसलिए अपना समय स्वाध्याय में लगाने का प्रयास करना चाहिए। स्वाध्याय के समय प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। नॉलेज अनेक प्रकार का हो सकता है। ज्ञान बहुत उपयोगी होता है। धर्म की अच्छी बातें कल्याण करने वाली होती हैं। इसलिए आध्यात्मिक ज्ञान को भी ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। ग्रन्थों को पढ़ने का प्रयास करना चाहिए। पढ़ते-पढ़ते कभी-कभी अच्छे ज्ञान रूपी रत्न भी प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए। आज यहां संतों का समागमन हुआ है। संतों का समागमन और हरि कथा बहुत दुर्लभ होती है। यहां के लोगों में खूब अच्छी धार्मिक भावना बनी रहे, यह काम्य है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री के स्वागत में गृहस्वामी श्री जयंतीभाई शर्मा ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। अन्य पारिवारिक सदस्यों व ग्रामीण श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के दर्शन किए और मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। https://www.facebook.com/share/p/1EcggCKeDq/
03.06.2025, मंगलवार, मालपुर, अरवल्ली (गुजरात) स्वर्ण के समान दुर्लभ है मानव जीवन : मानवता के मसीहा महाश्रमण - 11 कि.मी. का विहार कर मालपुर में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री - श्री पी.जी. मेहता हाईस्कूल पूज्यचरणों से बना पावन - साध्वी कीर्तियशाजी की स्मृतिसभा का हुआ आयोजन - आचार्यश्री के स्वागत में मालपुरवासियों ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति https://www.facebook.com/share/p/1VQiUpWgmW/ गुजरात के अरवल्ली जिले के ग्रामीण क्षेत्रों को अपनी पदरज से पावन बनाने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान हैं। ज्योतिचरण के स्पर्श से कभी राष्ट्रीय राजमार्ग तो कभी राजकीय राजमार्ग, कभी ग्रामीण मार्ग तो कभी-कभी कच्ची पगडंडियां भी पावन बनती हैं। मंगलवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इपलोड़ा से गतिमान हुए तो आसमान में बादलों की विशेष उपस्थिति थी जो राहगीरों को यात्रा में राहत प्रदान कर रही थी। ग्रामीण संकरे मार्ग के दोनों ओर स्थित हरे-भरे खेत व सड़क के किनारे हरे-भरे वृक्षों को सहलाते हुए बहती बयार और सुखद अनुभव करा रही थी, लेकिन जैसे-जैसे आचार्यश्री आगे बढ़ते जा रहे थे, सूर्य की तीव्र किरणें धरती को गर्म कर रही थीं। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री मालपुर में स्थित श्री पी.जी.मेहता हाईस्कूल में पधारे। जहां मालपुरवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। स्कूल परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जन समुदाय को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इस दुनिया में कई चीजें सुलभ होती हैं तो कई चीजें मनुष्य के लिए दुर्लभ भी होती हैं। कोई चीज बड़ी आसानी से प्राप्त होती है और कोई चीज काफी प्रयत्न करने से भी नहीं मिलने वाली और कभी बहुत मुश्किल से ही प्राप्त होती है। जिस प्रकार मिट्टी तो सामान्यतया सभी जगह प्राप्त हो जाए, किन्तु सोना सभी जगह प्राप्त नहीं होता, इसी प्रकार चौरासी लाख जीव योनियां बताई गई हैं, उनमें मनुष्य जन्म सोने के समान है, जो हर किसी को नहीं मिलता। वनस्पतिकाय अनंत जीवों के लिए कितना सुलभ होता होगा। अनंत-अनंत जीव कितने-कितने वर्षों से वहीं जन्म लेते हैं और वहीं मर जाते हैं। वनस्पतिकाय ही उनका अब तक घर बना हुआ है। जितने जीव मोक्ष को प्राप्त होते हैं, उतने अव्यवहार राशि वाले जीव व्यवहार राशि में आते हैं। प्रकृति मानों संतुलन बनाए रखती है। इस प्रकार मनुष्य जन्म दुर्लभ है, जो अभी हम लोगों को सुलभ रूप में प्राप्त है। इस जीवन में आत्मकल्याण के लिए जो कुछ भी करना है, आदमी को कर लेने का प्रयास करना चाहिए। जीवन तो हर क्षण बीत रहा है, इसलिए जो भी करना है, आदमी को यथाशीघ्र कर लेने का प्रयास करना चाहिए। जब तक शरीर ठीक है, अनुकूलता है, तब तक आदमी को जो भी धर्म, ध्यान, सेवा आदि का कार्य कर लेने का प्रयास करना चाहिए। यह शरीर अधु्रव, अशाश्वत है। इसी प्रकार धन, संपत्ति भी अधु्रव व अशाश्वत है। आदमी अपने जन्मदिवस पर प्रसन्नता के साथ इस बात भी ध्यान देना चाहिए कि उस आदमी के जीवनकाल का एक वर्ष और कम हो गया है। इसलिए आदमी को जितना संभव हो सके, अपने जीवन में धर्म का संचय करने का प्रयास करना चाहिए। संवर-निर्जरा रूपी थाति का संचय करने का प्रयास करना चाहिए। एक उम्र के बाद जितना संभव हो सके, आदमी को अपनी आत्मा की ओर रहने का प्रयास करना चाहिए। 75 वर्ष आ गए हैं तो आदमी को अब धीरे-धीरे निवृत्ति व संन्यास की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। साधु न बनें तो भी गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी संन्यासी के रूप में ही रहने का प्रयास करना चाहिए। धर्म, ध्यान, साधना, जप, तप, स्वाध्याय आदि के द्वारा अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। अपद अवस्था में रहकर आदमी को धर्म की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। जीवन की विभिन्न सक्रियताओं से बचते हुए, निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। राजनीति, समाज अथवा कोई व्यवसाय हो, इन सभी से निवृत्त होकर अच्छा मानव बनने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए इस दुर्लभ मानव जीवन में श्रुति हो, श्रद्धा हो, संयम मंे पराक्रम हो तो आत्मा का कल्याण संभव हो सकता है। मालपुर के पूर्व विधायक श्री जसुभाई पटेल, तालुका पंचायत प्रमुख श्रीमती भाग्यश्रीबेन, श्री पी.जी. मेहता हाईस्कूल के प्रिंसिपल श्री सौरभभाई, श्री राजकुमार पोरवाल, श्री पंकज माण्डोत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज साध्वी कीर्तियशाजी (गंगाशहर) की स्मृतिसभा का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने उनकी संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान कराया। उनके संदर्भ में मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने अपने उद्गार व्यक्त किए। पुनः प्रारम्भ हुए स्वागत समारोह में मालपुर के बच्चों ने नशामुक्ति पर अपनी प्रस्तुति दी। श्री ऋषि देरासरिया, श्री हार्दिक माण्डोत, बालक धैन माण्डोत तथा वयोवृद्ध श्री वरदीचंद पोरवाल ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मालपुर की कन्याओं ने भी स्वागत गीत का संगान किया। मालपुर स्थानकवासी समाज के अग्रणी श्री प्रकाश देरासरिया ने भी अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी।
04.06.2025, बुधवार, अणियोर कम्पा, अरवल्ली (गुजरात) जब तक शरीर सक्षम, कर लें धर्म का समाचरण : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण - महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने किया लगभग 13 कि.मी. का विहार - अणियोर कम्पा गांव पर बरसी शांतिदूत की अनुकम्पा - ग्रामीणों ने गुरुमुख से स्वीकार किए सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्प जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी जन-जन को पावन पाथेय प्रदान करते हुए बुधवार को प्रातः की मंगल बेला में मालपुर से मंगल प्रस्थान किया। ग्रामीण क्षेत्रों में गतिमान आचार्यश्री के दर्शन से अनेक गांव के ग्रामीण लाभान्वित हो रहे हैं। कई स्थानों पर ग्रामीण महिलाओं ने मार्ग में उपस्थित होकर आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। सभी पर अपने दोनों कर कमलों से आशीष की वर्षा करते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर अणियोर कम्पा में स्थित अणियोर कम्पा प्राथमिकशाला में पधारे। आचार्यश्री का एकदिवसीय प्रवास यहीं हुआ। प्राथमिकशाला परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में बताया गया है कि जब तक बुढ़ापा पीड़ीत न करे, जब तक शरीर में कोई बीमारी न हो जाए और जब तक इन्द्रियां क्षीण न हो जाएं, तब तक मानव को धर्म का समाचरण कर लेना चाहिए। जब तक शरीर की सक्षमता हो, तब तक धर्म का अच्छे रूप में समाचरण कर लेना चाहिए। धर्म का कार्य करने मंे तीन बाधाएं होती हैं, इनमें पहला है बुढ़ापा। बुढ़ापे में यदि कोई सेवा, परिश्रम आदि का कार्य करने का प्रयास करता है तो वह उसमें सक्षम नहीं हो पाता है, क्योंकि उसे आंखों से ज्यादा दिखाई नहीं देता है। पैर ज्यादा चलने में अक्षम हो जाते हैं, सुनाई भी कम देता है, हाथ कोई कार्य करने में कांपने लगते हैं तो भला ऐसा में आदमी में कोई धार्मिक कार्य, परोपकार का कार्य अथवा सेवा का कार्य कितना कर सकता है। धर्म के मार्ग की दूसरी बाधा है-बीमारी। आदमी की उम्र तो ज्यादा नहीं हुई, लेकिन उसे कोई लकवा आदि जैसी बीमारी हो जाए तो भी वह आदमी भला कितना कार्य करने में सक्षम हो पाएगा। शरीर में अनेक प्रकार की व्याधियां आ जाने पर आदमी के कार्य करने में बाधा उत्पन्न होती है। तीसरी बाधा बताई गई है- इन्द्रिय शक्ति की हिनता। देखने में कठिनाई हो जाए, सुनने की क्षमता इतनी कमजोर हो जाए तो भी कमी की बात हो जाती है। इसलिए जब तक इन्द्रिय हिनता की बात न हो, तब तक आदमी को धर्माचरण कर लेना चाहिए। मानव शरीर को नौका के समान कहा गया है। आदमी को अपने इस मानव शरीर के माध्यम से संसार रूपी समुद्र को तरने का प्रयास करना चाहिए। मानव शरीर नौका, जीव नाविक और संसार समुद्र है, महर्षि लोग इससे तर जाते हैं। संयम और तप की साधना हो तो यह शरीर नौका बन सकती है, अन्यथा नहीं। आदमी को पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। पाप कर्म मानव जीवन रूपी नौका में छिद्र के समान होते हैं और इन छिद्रों के कारण नौका डूब जाती है। इसलिए आदमी को संसार रूपी समुद्र से तरने के लिए पापकर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। यह मानव जीवन मोक्ष प्राप्ति का गेट है। जो मानव जीवन को बेकार गंवा दे, वह मानों महामूर्ख हो सकता है। मानव जीवन के द्वारा मोक्ष के वरण का प्रयास करना चाहिए। आदमी कम से कम अपने जीवन में लेनदेन में नैतिकता, प्रमाणिकता को रखने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो अहिंसा और नशामुक्ति की भावना को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए कि ताकि आत्मा परम सुख की ओर गति कर सके। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित ग्रामीणों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करते हुए उन्हें स्वीकार करने का आह्वान किया तो ग्रामीणों ने सहर्ष ही तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री के स्वागत में श्री घनश्याम भाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। https://www.facebook.com/share/p/16gCehAWHb/
01 जून 2025 रविवार मेघरज, ज़िला : अरवल्ली के विहार - प्रवास , प्रवचन की तस्वीरें पूज्य गुरुदेव युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल वाहिनी सह शिणावाड प्राथमिक शाला, शिणावाड, तालुक़ा : मोड़ासा, ज़िला : अरवल्ली से विहार करके श्री पी सी एन हाईस्कूल, मेघरज, ज़िला : अरवल्ली (गुजरात) पधारे https://www.instagram.com/p/DKWr6HxIU0E/?igsh=cDdxcHQzcDJtYjgw
05.06.2025, गुरुवार, उभराण, साबरकांठा (गुजरात) अभ्याख्यान रूपी पाप से बचने का हो प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण - अरवल्ली जिले को पावन बना पुनः साबरकांठा जिले में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री - 10 कि.मी. का विहार कर उभराण को पावन करने पधारे शांतिदूत गुजरात की पग-पग की धरा को ज्योतित करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अरवल्ली जिले को पावन बनाने के उपरान्त गुरुवार को पुनः साबरकांठा जिले की सीमा में प्रवृष्ट हुए। गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणियोर कम्पा से गतिमान हुए। आज का विहार पथ ग्रामीण क्षेत्रों वाला ही तथा किन्तु काफी रमणीय भी था। आसपास वृक्षों से आच्छादित कुछ छोटी पहाड़ियां बारिश और तूफान से बिल्कुल हरितिमा से युक्त दिखाई दे रही थीं। उन पहाड़ियों के कारण मार्ग में भी आरोह-अवरोह लिए हुए था। आसमान में छाए बादलों के कारण मौसम भी अनुकूल बना हुआ था। जगह-जगह खेतों में फसलें लगी हुई थीं, तो कई खेत फसलों के बुआई आदि के लिए तैयार भी दिखाई दे रहे थे। विहार के दौरान आचार्यश्री ने पुनः साबरकांठा जिले में पधारे। आचार्यश्री लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर उभराण में स्थित श्री एम.एम. मेहता हाईस्कूल में पधारे। स्कूल परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। उनमें एक है मृषावाद, एक है माया, एक है अभ्याख्यान और एक है माया-मृषा। ये चारों मानों मृषावाद से जुड़े हुए हैं। जब कोई झूठ बोलता है तो एक उसका एक सहयोगी तत्त्व माया भी होता है। माया और मृषा मानों दोनों संबद्ध भी हो सकते हैं। कपटपूर्वक झूठ बोलने में आदमी कई बार दूसरे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाता है। मन में द्वेष का भाव होता है तो किसी को बदनाम करने के लिए झूठा आरोप लगा देता है और उसे फैलाने का प्रयास भी होता है, ताकि समाज में उसकी गरिमा समाप्त हो जाए। ऐसा आरोप लगाने वाला और कपटपूर्वक झूठ बोलने वाला आदमी पाप से आबद्ध हो जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि आदमी जैसा झूठा आरोप दूसरों पर लगाता है, उसे वैसा फल भी भोगना होता है। झूठा आरोप लगाना, जिसे अभ्याख्यान पाप भी कहा जाता है, इससे मानव को बचने का प्रयास करना चाहिए। अपने जीवन में किसी भी आदमी पर झूठा आरोप अपनी वाणी से लगाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में कई बार ऐसे प्रसंग आ सकते हैं। कभी कोर्ट, पुलिस आदि में जाने का काम पड़ जाए तो भी झूठी शिकायत से बचने का प्रयास करना चाहिए। सही बात है तो पुलिस और कोर्ट में जाने का अधिकार है, किन्तु झूठी शिकायत, किसी को फंसाने के नियत से पुलिस और कोर्ट में जाना तो पाप ही है। न्याय पाना तो अधिकार है, किन्तु झूठ आरोप में फंसा देना, किसी से द्वेषवश गलत शिकायत कर देना पाप है। इससे यथासंभवतया बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के स्वागत में श्री विमलभाई पितलिया व श्री पिंटू पिछोलिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

05 जून 2025 गुरुवार के विहार - प्रवास , प्रवचन की तस्वीरें ।पूज्य https://www.instagram.com/p/DKhAVEHoC_G/?igsh=ZWxmOHRvM3dzZWFy गुरुदेव युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल वाहिनी सह अणियोर कम्पा प्राथमिक शाला, अणियोर कम्पा, तालुक़ा : मालपुर, ज़िला : अरवल्ली से विहार करके श्री एम एम मेहता हाई स्कूल, उभरान, तालुका : मालपुर, जिला:अरवल्ली (गुजरात) पधारे
01.06.2025, रविवार, मेघरज, अरवल्ली (गुजरात) मेघरज में अध्यात्म की वर्षा करने पधारे अध्यात्म जगत के महामेघ महाश्रमण - शांतिदूत ने किया करीब 12 कि.मी. का विहार - मेघरजवासियों ने आराध्य का किया भावभीना अभिनंदन - इन्द्रियों के लिए ग्राह्य नहीं है आत्मा : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण - साध्वीप्रमुखाजी ने भी मेघराजवासियों को किया उद्बोधित - मेघरजवासियों ने भी दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति जन-जन के मानस को पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी धर्मसंघ के महामेघ के रूप में मेघरज में पधारे तो मानों मेघरज की आचार्यश्री की आध्यात्मिक वर्षा से अभिस्नात हो उठा। मेघरजवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ मेघरज के श्री पी.सी.एन. हाईस्कूल में पधारे। इससे पूर्व रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी शिणावाड से गतिमान हुए। लोगों को आशीष प्रदान करते हुए 12 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मेघरज में स्थित श्री पी.सी.एन. हाईस्कूल परिसर में पधारे। मेघरजवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। स्कूल परिसर में बने ‘महावीर समवसरण’ में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान उपस्थित जनमेदिनी को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा एक ऐसा तत्त्व है, जो इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। आत्मा का सिद्धांत आध्यात्मिक जगत का प्रमुख सिद्धांत है। अध्यात्म का मूल आधार आत्मा पर ही टिका हुआ है। आत्मा को अमूर्त कहा गया है। आत्मा का कोई रूप नहीं होता। आत्मा को इन्द्रियों के द्वारा नहीं जाना जा सकता है। दुनिया में जो पदार्थ हैं- मूर्त और अमूर्त और दूसरे ढंग से कह सकते हैं जीव और अजीव। जिसमें वर्ण हो, रूप हो, रस हो, गंध हो, स्पर्श हो वह मूर्त और जिसमें ये सभी नहीं होते, वे अमूर्त होते हैं। जो आंखों से दिखाई देते हैं, सभी पुद्गल होते हैं। आत्मा इन्द्रियों के लिए ग्राह्य नहीं है। आत्मा अशोष्य, अहदाह्य, अक्लेद्य है। आत्मा का कभी नाश नहीं होता है। आत्मा को गलाया, भिंगोया, सुखाया या जलाया नहीं जा सकता है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है, जब तक उसे मोक्ष नहीं मिल जाता। जिस प्रकार आदमी पुराने कपड़ों को छाड़ता है, आत्मा उसी प्रकार पुराने और जीर्ण-शीर्ण शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश कर जाती है। राग-द्वेष के संस्कार जब नष्ट हो जाएंगे तो आत्मा परमसुख को प्राप्त कर सकती है। आदमी को अपने जीवन का लक्ष्य परमसुख को प्राप्त करने को बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोक्ष ही एक ऐसा स्थान है, जहां एकांत सुख है। मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ना मानव जीवन का लक्ष्य रखने का प्रयास करना चाहिए। आज मेघरज में आना हुआ है। यहां की जनता में अच्छे संस्कार आएं। सभी में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का प्रभाव रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मेघरजवासियों को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उद्बोधित किया। अपनी वैराग्यभूमि में अपने आराध्य के आगमन से हर्षित मुनि कोमलकुमारजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। मेघरज तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री लादूलाल माण्डोत, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री निलेश गांधी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय ज्ञानशाला, तेरापंथ युवक परिषद व तेरापंथ महिला मण्डल ने संयुक्त रूप से अपनी प्रस्तुति दी। मुनि कोमलकुमारजी के संसारपक्षीय ज्ञातिजन श्री बाबूलाल दक व श्री निलेश दक ने अपनी अभिव्यक्ति दी। बालिका जैन्सी दक व यशवी कोठारी ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला ने अपनी प्रस्तुति दी। https://www.facebook.com/share/p/19WoUf1ear/