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पौधों की स्वस्थ वृद्धि, बेहतर उत्पादन और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए आज जैविक और प्राकृतिक उपायों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता ने जहाँ एक ओर तत्काल लाभ पहुँचाया है, वहीं दूसरी ओर दीर्घकालिक रूप से मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। ऐसे में ह्यूमिक एसिड एक ऐसा प्राकृतिक विकल्प बनकर उभरा है, जो न केवल पौधों की पोषण आवश्यकता को पूरा करता है, बल्कि मिट्टी के जैविक गुणों को भी संरक्षित और संवर्धित करता है। ह्यूमिक एसिड एक काली-भूरी रंग की जैविक अम्लीय पदार्थ होता है, जो हजारों वर्षों से मृदा में सजीव अवशेषों के विघटन से बनता है। यह मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों को पौधों के लिए अधिक सुलभ बनाता है, जिससे पौधे अधिक तेजी से और स्वस्थ तरीके से विकसित होते हैं। साथ ही, यह पौधों की जड़ों को सशक्त करता है, मिट्टी में जल धारण क्षमता बढ़ाता है और पर्यावरण के लिए पूर्णतः सुरक्षित होता है। इस लेख के मध्यम से हम जानेंगे ह्यूमिक एसिड के उपयोग, इसके लाभ, और इसके पौधों की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान के बारे में। यह लेख आपको बताएगा कि ह्यूमिक एसिड का सही ढंग से उपयोग कैसे करें और इसके नियमित प्रयोग से किस प्रकार आप अपनी खेती या बागवानी में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। ■ ह्यूमिक एसिड क्या है? ह्यूमिक एसिड एक प्राकृतिक जैविक पदार्थ है जो मृदा में उपस्थित सजीव अवशेषों जैसे पौधे, पत्तियाँ, जीव-जंतु आदि के लंबे समय तक विघटन decomposition से बनता है। यह मुख्य रूप से ह्यूमस का एक घटक होता है जो मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ■ क्या ह्यूमिक एसिड रासयनिक तत्व है? नही ह्यूमिक एसिड मूलतः एक जैविक तत्व है, लेकिन रासायनिक संरचना के दृष्टिकोण से यह जैविक यौगिकों का एक जटिल मिश्रण है। यह न तो पूरी तरह से रासायनिक है और न ही पूरी तरह से जैविक खाद जैसा है। इसे प्राकृतिक स्रोतों जैसे कि लियोनार्डाइट, पीट, कोयला या खादयुक्त मिट्टी से निकाला जाता है। ■ इसका पौधों पर प्रयोग कितना सुरक्षित है? ह्यूमिक एसिड पूर्णतः सुरक्षित होता है जब इसे उचित मात्रा में प्रयोग किया जाए। यह पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाता और मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने का काम करता है। यह पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है और उन्हें पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से ग्रहण करने में मदद करता है। अधिक मात्रा में देने से भी आमतौर पर कोई बड़ा नुकसान नहीं होता, लेकिन अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की pH में बदलाव हो सकता है। ■ ह्यूमिक एसिड के फायदे: ◆ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाना – यह मिट्टी की संरचना सुधारता है, जलधारण क्षमता बढ़ाता है और पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाता है। ◆ जड़ों की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है – यह पौधों की जड़ों को लंबा और घना बनाता है जिससे पौधा अधिक पोषण ग्रहण कर पाता है। ◆ पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार – यह नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि तत्वों को पौधों के लिए अधिक सुलभ बनाता है। ◆ पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है – पौधे की सहनशक्ति और रोगों से लड़ने की शक्ति में वृद्धि करता है। ◆ मिट्टी के pH को संतुलित करता है – अम्लीय या क्षारीय मिट्टी को संतुलन में लाने में सहायक होता है। ◆ जैविक खेती में उपयोगी – यह एक सुरक्षित और प्राकृतिक विकल्प है जो ऑर्गेनिक फार्मिंग में खूब इस्तेमाल किया जाता है। ■ प्रयोग की विधियाँ और मात्रा: 1) गमलो में तरल रूप में: 1 लीटर पानी में 2 मि.ली. या 2 ग्राम ह्यूमिक एसिड मिलाएं। हर 15 दिन में एक बार जड़ों में दें। 2) मिट्टी में मिलाकर (सूखा रूप): 1 किलो मिट्टी में 5 ग्राम ह्यूमिक एसिड पाउडर गमले की मिट्टी तैयार करते समय मिलाएं। 3) पत्तियों पर छिड़काव: 1 लीटर पानी में 2 मि.ली. ह्यूमिक एसिड मिलाकर सुबह या शाम के समय पत्तियों पर 15 दिन में हल्का छिड़काव करें। 4) ड्रिप से या जड़ों में देना: 1–2 लीटर ह्यूमिक एसिड को 200–250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से दें। 5) बीज उपचार: बीजों को 6–12 घंटे के लिए 1% ह्यूमिक एसिड घोल में भिगोकर बोने से अंकुरण अच्छा होता है। ■ किन पौधों पर प्रयोग: ह्यूमिक एसिड का प्रयोग लगभग सभी प्रकार के फसलों और पौधों पर किया जा सकता है, जैसे: खेत मे लगे फलदार पौधे, फुल वाले पौधें, सब्जियाँ-फसलों पर और गमलों में लगे पौधे पर। क्या यह जानकारी आपको उपयोगी लगी? कृपया कॉमेंट करके जरूर बताये। अगर अच्छी लगी है तो अपने बागवानी प्रेमी दोस्तों के साथ इसे साझा जरूर करें। आपका एक छोटा सा प्रयास किसी का गार्डन हरा भरा और बेहतर बना सकता है।

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कृषि मौसम विज्ञान विभाग चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार 23 मई, 2025 : मौसम पूर्वानुमान :- हरियाणा राज्य में मौसम आमतौर पर 26 मई तक खुश्क व गर्म रहने की संभावना है। इस दौरान पश्चिमी हवाएं चलने की संभावना से विशेषकर दिन के तापमान में हल्की बढ़ोतरी होने की संभावना है। इस दौरान बीच बीच में हल्के बादल तथा धूलभरी हवाएं चलने की संभावना है। परंतु 26 मई रात्रि से हवा में बदलाव तथा पश्चिमीविक्षोभ के आंशिक प्रभाव से मौसम में बदलाव संभावित जिससे 27 मई से 29 मई के दौरान राज्य के ज्यादातर क्षेत्रों में हवाओं व गरजचमक के साथ बूंदाबांदी या हल्की बारिश की संभावना है। इस दौरान कुछ एक स्थानों पर तेज बारिश की संभावना बन रही है जिससे दिन के तापमान में गिरावट संभावित। ##########$$$#### डॉ मदन खीचड़ विभागाध्यक्ष कृषि मौसम विज्ञान विभाग चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार

आलू में पोषक तत्वों की कमी: नाइट्रोजन (N): पुरानी पत्तियों से शुरू होकर हल्के हरे से पीले पत्ते (क्लोरोसिस)। विकास में कमी और कंद का आकार कम होना। यूरिया या CAN (कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट) जैसे नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें। मिट्टी में नाइट्रोजन को स्थिर करने के लिए फलियों जैसे बीन्स या मटर के साथ फसल चक्र अपनाएँ। *फास्फोरस (P):* _लक्षण:_ विकास में कमी, गहरे हरे पत्ते, पुरानी पत्तियों पर बैंगनी रंग का मलिनकिरण, जड़ों का खराब विकास और परिपक्वता में देरी। रोपण के समय DAP (डायमोनियम फॉस्फेट) जैसे फास्फोरस आधारित उर्वरकों का प्रयोग करें। फास्फोरस की उपलब्धता में सुधार के लिए अम्लीय मिट्टी में चूना डालें। *पोटैशियम (K):* _लक्षण:_ पत्ती के किनारों का पीला और भूरा होना (झुलसना), नसों के बीच क्लोरोसिस और कंद की खराब गुणवत्ता। कंद निर्माण के दौरान पोटेशियम सल्फेट का प्रयोग करें। अधिक सिंचाई से बचें क्योंकि इससे मिट्टी से पोटेशियम निकल सकता है। कैल्शियम (Ca): गंभीर मामलों में पत्तियों के किनारे मुड़े हुए, युवा टहनियों के सिरे विकृत और पत्तियों के किनारों पर परिगलन दिखाई देता है। मिट्टी में जिप्सम या चूना डालें। कैल्शियम अवशोषण को बेहतर बनाने के लिए मिट्टी में नमी बनाए रखें। *सामान्य अनुशंसाएँ:* पोषक तत्वों के स्तर और pH का पता लगाने के लिए रोपण से पहले मिट्टी की जाँच करें। संतुलित पोषक तत्व आपूर्ति प्रदान करने के लिए मिट्टी परीक्षण के परिणामों के आधार पर उर्वरक डालें कमियों के संकेतों के लिए नियमित रूप से पौधों का निरीक्षण करें और उसके अनुसार प्रबंधन प्रथाओं को समायोजित करें।

**घन जीव अमृत (Ghan Jeev Amrit)** एक प्राकृतिक और जैविक खाद है जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, पौधों को पोषण देने, और सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को सक्रिय करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह जीवामृत (तरल जैविक खाद) का ठोस रूप है और प्राकृतिक खेती (जैसे जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग) में इसका विशेष महत्व है। इसे गाय के गोबर, गोमूत्र, और अन्य प्राकृतिक सामग्रियों से तैयार किया जाता है। --- ### **घन जीव अमृत बनाने की विधि** **सामग्री:** 1. **गाय का ताजा गोबर** – 10 किलो 2. **गाय का गोमूत्र** – 2 लीटर 3. **गुड़ (शुद्ध)** – 250 ग्राम 4. **बेसन (चने का आटा)** – 250 ग्राम 5. **मिट्टी (जैविक खेत की मिट्टी)** – 1 किलो 6. **पानी** – आवश्यकतानुसार --- ### **बनाने की प्रक्रिया:** 1. **मिश्रण तैयार करना:** - एक बड़े बर्तन या प्लास्टिक की टंकी में गाय का गोबर डालें। - इसमें गोमूत्र, गुड़, बेसन, और मिट्टी मिलाएं। - अच्छी तरह मिलाकर गीला घोल बना लें। अगर मिश्रण सूखा लगे, तो थोड़ा पानी डालें (लेकिन ज्यादा पानी नहीं)। 2. **किण्वन (Fermentation):** - मिश्रण को ढक्कन से ढक दें, लेकिन हवा आने-जाने के लिए थोड़ा खुला रखें। - इसे छायादार जगह पर 48 घंटे (2 दिन) के लिए रख दें। - इस दौरान मिश्रण में प्राकृतिक सूक्ष्मजीव सक्रिय होते हैं और किण्वन प्रक्रिया शुरू होती है। 3. **ठोस रूप देना:** - 2 दिन बाद मिश्रण को हाथों से छोटे-छोटे गोले या टिकिया के आकार में बना लें। - इन्हें सूखने के लिए छाया में रखें। 4-5 दिन में ये सूखकर कठोर हो जाएंगे। 4. **संग्रहण:** - सूखे हुए घन जीव अमृत को किसी सूखे स्थान पर रखें। यह 6 महीने तक उपयोगी रहता है। --- ### **उपयोग का तरीका:** - **मिट्टी में मिलाने के लिए:** प्रति एकड़ खेत में 50-100 किलो घन जीव अमृत का उपयोग करें। इसे बुवाई से पहले मिट्टी में मिलाएं। - **गमले या छोटे पौधों के लिए:** 1-2 टुकड़े मिट्टी में दबा दें। - **लाभ:** यह मिट्टी को पोषक तत्व देता है, जैविक गतिविधि बढ़ाता है, और रासायनिक खाद पर निर्भरता कम करता है। --- ### **ध्यान रखें:** - केवल **देशी गाय** के गोबर और गोमूत्र का ही उपयोग करें, क्योंकि ये अधिक प्रभावी होते हैं। - किण्वन के दौरान मिश्रण को धूप या बारिश से बचाएं। - घन जीव अमृत को जीवामृत (तरल) की तुलना में लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है। यह प्राकृतिक खेती का एक सस्ता और टिकाऊ तरीका है, जो मिट्टी की सेहत और फसल की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है। 🌱

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