
जय क्षात्र धर्म⚔️🚩🚩
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About जय क्षात्र धर्म⚔️🚩🚩
जय क्षात्र धर्म, क्षत्रिय योद्धाओं से जुड़ा एक धर्म है. क्षात्रधर्म के बारे में कुछ और जानकारीः क्षात्रधर्म का मतलब है बुराई के ख़िलाफ़ लड़ना. भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में अर्जुन से कहा था कि बुराई के ख़िलाफ़ लड़ना कर्तव्य है. मनु के मुताबिक, क्षत्रिय वर्ण के लोगों का कर्तव्य था कि वे गांवों, कबीलों, और राज्यों की रक्षा करें. वशिष्ठ के मुताबिक, क्षत्रिय वर्ण के लोगों का मुख्य काम अध्ययन, शस्त्राभ्यास, और प्रजापालन करना था. वेदों के मुताबिक, क्षत्रिय वर्ण के लोगों को वेदाध्ययन करना, प्रजापालन करना, दान करना, और यज्ञादि करना था. क्षत्रिय वर्ण के लोगों को विषयवासना से दूर रहना था आप सब लोग भी [email protected] पर जानकारी / सुझाव भेज सकते है। धन्यवाद जय क्षात्र धर्म 🚩🚩
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*क्षत्रिय युवक-युवतियों की शादी में हो रहे अधिक विलंब के लिए कुंडली मिलान प्रथा भी जिम्मेदार !* 👇 महर्षि च्यवन और महर्षि भृगु की संहिता में साफ लिखा हैं कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष केवल 26 वर्ष 7 माह 3 दिन की उम्र तक माना जाता है इसके बाद नाड़ी दोष नही लगता। भृकुट दोष सिर्फ 24 वर्ष की आयु तक ही लगता है। मंगल दोष 29 साल 4 महीने 24 दिन की उम्र तक होता है। *अगर कन्या की आयु इससे ज्यादा है तो यह दोष स्वतः समाप्त हो चुके होते हैं।* यही 3 के गुण मिलान की खास जरूरत होती हैं और *जब हम लोग विवाह ही 30 वर्ष के बाद कर रहे हैं फिर कुंडली की क्या मान्यता रह गई????* *इसी वर्ष मार्च महीने में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में ब्राह्मण समाज द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय महायज्ञ का आयोजन हुआ था जिसमें देश - विदेश के विद्वानजन भी पधारें थे। सार्वजानिक मंच से घोषणा हुई कि शादी विवाह में कुंडली मिलान को बंद किया जाए। इसकी वज़ह से युवक -युवतियां की शादियों में अनावश्यक विलंब हो रहे हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि ब्राह्मणों द्वारा प्रचालित यह कुंडली मिलान की प्रथा ब्राह्मण समाज के लिए ही नुकसान दायक बन गया है।* आजकल खूब कुंडली मिलान करके शादी करने के बावजूद भी तलाक हो जा रहें हैं! *अतः हमारा भी मत है कि कुंडली मिलान के चक्कर मे न पड़े और वर -वधू की गोत्र, शिक्षा, व्यावहार, संस्कार और आर्थिक स्थिति का आंकलन करके स्वजाति में ही शादी तय करें। अन्तर्जातीय विवाह से दूर रहें, कोशिश करें कि हर हालत में बच्चों की शादियाँ समय पर हो जाए।* *सभी क्षत्रिय कम से कम 3 बच्चे करें, दहेज प्रथा समाप्त करे औऱ अंतर्जातीय विवाह पर लगाम लगाए !!*


इच्छुक राजपूत भाई संपर्क कर समझ कर सावधानी से उचित लाभ उठा सके है।


आज एक ओर जहां वो लोग हैं जो हर rajputised caste को क्षत्रिय/राजपूत बनाना चाहते हैं, तो दूसरी ओर वो प्रतिवादी (reactionary) राजपूत हैं जो राजपूतीकरण का विरोध करते करते समाज की उपजातियों को स्वीकारने से भी इनकार करते हैं। हर समाज के स्थानांतरण के कारण या अन्य सामाजिक कारणों से उपजातिया बनती रहीं हैं। निःसंदेह राजपूत क्षत्रिय वंशों जा एक ट्राईबाल किनशिप ग्रुप है, किन्तु इसमें गत 600 सालों में ब्राह्मणवाद का प्रभाव पड़ा जिस कारण उपजातियों का उदय होता रहा। उदाहरण : यह हेंडल पूर्वांचल की नमक उत्पादक नोनिया जाति और एनसीआर की खाकी चौहान (राजपूत उपजाती) को समतुल्य बता रहे हैं। नोनिया जाति 20वि सदी में खुदको सीधा सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय का वंशज घोषित करती आई हैं। स्वाभाविक है कि एक जाति का एक वंश और वो भी एक व्यक्ति जो सम्राट था, का वंशज बतलाना हास्यस्पद और अविश्वसनीय है। किन्तु एनसीआर की जमींदार खाकी चौहान जाति यह नहीं कहती कि हम किसी सभी किसी एक सम्राट के वंशज हैं या हम चौहान हैं । खाकी चौहानो का नाम ही इसलिए पड़ा क्योंकि इनमें सबसे बड़ी आबादी चौहानो की है और इनकी वर्तमान जागीरों में बसावट चौहान साम्राज्य द्वारा ग़ज़नविद साम्राज्य से संघर्ष के समय बनी - किन्तु इनमें चौहान (बचस खाप), सोलंकी (भाल खाप), गहलोत इत्यादि भी हैं। यही arrangement बुंदेलखंड में मुख्य बुंदेला (गहरवार) वंश ने बुंदेला परमार और धाँधेरा चौहानो को लेकर भी बनाया जो अब पुनः मुख्यधारा के क्षत्रिय समाज में मिल गया है । मालवा साइड के सोंधिया परिहारों ने भी ऐसी arrangement बनाई थी जो पुनः main क्षत्रिय समाज में विलय होने लगे हैं। रवा राजपूतों में केवल 6 वंशों के गाँवों ने एक अलग उपजाती बनाई - चौहान, तंवर, परमार, यदुवंश, गहलोत और कछवाह। यह ठीक वैसे है जैसे राजस्थान में मुस्लिम राजपूतों की जाति कायमखानी कहलाने लगीं , किन्तु इसमें सिर्फ करमचंद चायल चौहान के वंशज थोड़ी हैं, अन्य चायल चौहान भी हैं, मोहिल चौहान भी हैं, अहाड़ा गहलोत इत्यादि भी हैं। एक और विचारणीय बात है कि खाकी हो या रवा यह सभी जनरल में ही आती हैं अर्थात इन्होंने ना तो नमक बनाने का काम शुरू किया ना इन्होंने अपना क्षत्रिय कर्म छोड़ा और ना अपनी जागीरे खोयीं। हालाँकि राजस्थान, गुजरात और हिमाचल में ऐसे भी क्षत्रिय/राजपूत हैं बहुत तादात में हैं जो भूमिहीन हो गए, जैसे जालौर के नातारायत राजपूत और भोमिया राजपूत, करड़िया राजपूत, हिमाचल के राठी राजपूत। (यहां नतारायत, भोमिया, करड़िया, राठी केटेगरीज़ हैं ना की वंश)। आप तमिल नाडु जाओगे तो आपको बोन्दीली समाज मिलेगा जो राजा तेजसिंह बुंदेला के साथ दक्षिण में गए बुंदेला उपजाती से ही बनी। इनसे अलग एक केस है, उन जातियों का जो हम राजपूतों से ही बनीं किन्तु अब वो अलग समाज हैं। बाकी, राजस्थान की माली जाति मुलतः राजपूतो से ही निकली है - यह वह भूमिहीन राजपूतों से बनी है जिन्होंने पारम्परिक क्षत्रिय कर्म छोड़कर शुद्ध खेती का काम शुरू किया। सिंध से भाग कर आने वाली विदेशी जाटों की मारवड़ ढूंधाड़ में बसावट से पूर्व यही माली (राजपूत) इस क्षेत्र के शुद्ध किसान थे। हालांकि मालियों का केस अलग हैं - उनका निकास राजपूतों से ज़रूर है किन्तु खाकी, रवा इत्यादि की तरह वे उपजाति नहीं बोले जा सकते। किन्तु इनका सम्बन्ध भी किसी डांगी, नोनिया, ग्वाला, खंगार, लोधीयो, गोचर, जाट इत्यादि के फरजी क्लेम जैसा नहीं है --- यही कारण कि क्षत्रिय समाज की सभी उपजातियों के ही समान राजपूत मालियो की कुलदेवीयां भी वहीं हैं। यही स्टेटस राजपूतों से बिश्नोई संप्रदाय या सीरवी संप्रदाय में जुड़े लोगों की भी है - दोनों संप्रदाय राजपूतों द्वारा ही शुरू किए गए थे।। *जय क्षात्र धर्म* 🚩