
मे नास्तिक क्यों हूं
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About मे नास्तिक क्यों हूं
अंधविश्वास या पाखंडवाद पर बोलना सामाजिक सुधार और जागरूकता के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। संविधान का अनुच्छेद 51A(e) भी नागरिकों से अपेक्षा करता है कि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सुधार की भावना विकसित करें, जो अंधविश्वास के खिलाफ बोलने को प्रोत्साहित करता है। 👉🇮🇳🇮🇳👍
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"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने हमें केवल संविधान नहीं दिया, बल्कि हमें इंसान बनाया। उन्होंने हमें उस धर्म की कैद से मुक्त किया जिसमें शुद्धता का माप चोटी, तिलक और जनेऊ था — और इंसानियत का कोई मूल्य नहीं था। उन्होंने हमें उस झूठे, शोषणकारी और पाखंडी धर्म से बाहर निकाला। "डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर 🙏

आज दिल्ली के आंध्रा भवन मे भीम आर्मी की राष्ट्रीय एवं प्रदेश कार्यकारिणी की मीटिंग हुई। जिसमें ग्वालियर हाई कोर्ट में बाबा साहब की प्रतिमा मामले व बोधगया महाबोधि विहार मामले को लेकर चन्द्रशेखर आजाद जी व विनय रतन सिंह जी द्वारा बड़े आंदोलन की रणनीति पर चर्चा की गई।

क्या इस दुनिया में है भूत प्रेत का प्रमाण? वैज्ञानिक समुदाय सामान्यतः मानता है कि भूत-प्रेत जैसी अवधारणाएं अंधविश्वास पर आधारित होती हैं। जो घटनाएं "भूतिया" लगती हैं (जैसे अजीब आवाजें, ठंडी हवा, डरावना एहसास), उनके पीछे अक्सर प्राकृतिक कारण होते हैं: जैसे कि हवा का दबाव, बिजली की गड़बड़ी, नींद में भ्रम (sleep paralysis), मानसिक तनाव आदि। मनोविज्ञान के अनुसार, भय, अकेलापन, या बचपन से सुनी कहानियों के कारण हमारा मस्तिष्क डरावने अनुभव पैदा कर सकता है। कभी-कभी hallucinations (मृगतृष्णा) या Sleep Paralysis जैसे अनुभव लोगों को यह विश्वास दिला सकते हैं कि उन्होंने किसी आत्मा को देखा है धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव: भारत और दुनिया के कई हिस्सों में भूत-प्रेत की कहानियाँ सदियों से लोक परंपरा का हिस्सा रही हैं। ये कहानियाँ सामाजिक अनुशासन, डर या मनोरंजन के लिए गढ़ी गई हो सकती हैं। कई बार धर्म और आस्था से जुड़ी मान्यताएँ भी इनकी पुष्टि करती दिखती हैं, लेकिन ये वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं माने जाते। भूत-प्रेत से जुड़े टीवी शो और यूट्यूब वीडियोज़: ये अधिकतर मनोरंजन या डर पैदा करने के उद्देश्य से बनाए जाते हैं। इनमें दिखाई गई घटनाओं को अक्सर स्क्रिप्टेड या विशेष प्रभावों (special effects) से दिखाया जाता है। कोई भी घटना आज तक दोहराए जाने योग्य वैज्ञानिक प्रयोग के रूप में प्रमाणित नहीं हुई है भूत-प्रेत जैसी चीज़ों का अब तक कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। अधिकतर ऐसे अनुभव मनोवैज्ञानिक, सामाजिक या प्राकृतिक कारणों से होते हैं। विश्वास और अंधविश्वास में अंतर समझते समय मूल दिक्कत यह आती है कि एक समय में जिस विश्वास को सराहा जाता था वही दूसरे समय में अंधविश्वास बन जाता है। समाज का एक हिस्सा जिसे अंधविश्वास मानता है, वही किसी दूसरे समूह को पवित्र लगता है। कोपर्निकस, गैलिलियो ने इन तमाम कथित पाखंड को जाँचा, और जो पाया, उसे व्यक्त करने पर यातना भी सही। क्या समाज सुधार का इतिहास भी ऐसा ही नहीं है? इस पर गौर करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं सामाजिक परिवर्तन के लिए असहमति तक सीमित रहना संभव नहीं है। उसके लिए सक्रिय आंदोलन की जरूरत होती है। सचेत संघर्ष की जरूरत होती है। इस पुस्तक में ऐसे ही संघर्षों का विवरण डॉ. नरेंद्र दाभोलकर ने अपने शब्दों में दिया है। ‘बोलता पत्थर’, ‘लंगर का चमत्कार’, ‘कमर अली दरवेश की पुकार’, ‘अनुराधा देवी की बंद मुट्ठी’ और अन्य ऐसी ही अंधविश्वास-पूर्ण गतिविधियों के विरुद्ध डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और उनके संगठन के ये आंदोलन निस्संदेह पठनीय है। सभी प्रकार की तर्कशील और प्रगतिशील किताब ऑनलाइन खरीदे