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*Muwahid WhatsApp Channel-Tawhid ka Paigham* *Muwahid ka Matlab* Muwahid woh shakhs hai jo Allah ki wahdaniyat (oneness of God) par yakeen rakhta ho. Yeh Tawhid ka paigham hai-sirf Allah ki ibadat aur uski wahdaniyat ko maanna. *Muwahid ka Kirdar:* *1. Tawhid par Aqeedah Rakhne Wala:* Sirf Allah ki ibadat karta hai. *2. Shirk ka Inkaar Karne Wala:* Allah ke sath kisi ko shareek nahi thahraata. *3. Ikhlaas Se Ibadat Karne Wala:* Apni ibadat me sirf Allah ki Raza chahta hai. *4. Deen Ki Tableegh:* Ek Muwahid ki zimmedari hai ke wo tawhid ka paigham doosron tak pohnchaye. *5. Tawakkul aur Iman:* Ek Muwahid ka pura tawakkul sirf Allah par hota hai. Wo apne har kaam mein Allah se madad mangta hai aur har cheez ko Allah ki marzi par chor deta hai. *Mushrik aur Muwahid ka Farq* Muwahid: Sirf Allah ki ibadat karta hai. Mushrik: Allah ke sath kisi aur ko shareek banaata hai. "beyshak Allah iss baat ko nahi bakhshta kay uss kay sath kissi ko shareek thehraya jaye , aur iss say kamtar her gunah ki jiss kay liye chahta hai bakhshish ker deta hai . aur jo shaks Allah kay sath kissi ko shareek thehrata hai , woh raah-e-raast say bhatak ker boht door jaa girta hai." (Surah An-Nisa, 4:116) *Aap bhi is paigham ko doosron tak pohchane mein hamare saath judain!* Link per click kerke channel ko zaroor follow karein. Jazakamullahu Khairan kaseera https://whatsapp.com/channel/0029Va9l6iYEwEjsyxiyo12b
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*दुनिया में मुसीबत और बुराई क्यों मौजूद है?* (The problem of evil) Part 4 *आखरी बात* नास्तिक बुराई को जहां मन्सूब करना चाहिए वहाँ मन्सूब नही करता बल्कि गलत जगह मन्सूब कर देता है। नास्तिक ये समझता है कि बुराई इस दुनिया मे खुदा की वजह से है इसलिए वो खुदा को नही मानता है। नास्तिक का ये ऐतराज़ बिल्कुल ही गलत है क्योंकि इस दुनिया में खुदा ने बुराई को पैदा किया है लेकिन इंसान को बुराई करने पर मजबूर नही किया है। इंसान खुद से ही बुराई को चुनता है अगर हमारी जिंदगी में बुराई मौजूद है तो उसका सवब (cause) हम खुद है। बहुत बार ऐसा होता है कि मुसीबत का सवब (cause) इंसान खुद ही होता है। जैसे एक आदमी बहुत तेज़ रफ्तार से गाड़ी चला रहा है और यातायात के नियमों का पालन भी नही कर रहा है जिसके नतीजे में उसकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है और वह मर जाता है। तो इस मुसीबत का सवब इंसान खुद हुआ। बाज मर्तबा कोई दूसरा शख्स जो हमारे समाज का है वो मुसीबत का सवब बनता है। जैसे एक आदमी अहतियात के साथ ड्राइविंग कर रहा है और यातायत के नियमों का भी पालन कर रहा है लेकिन दूसरी तरफ से एक गाड़ी आ रही है और वो आदमी तेज़ ड्राइविंग कर रहा है और यातायात के नियमों का भी पालन भी नही कर रहा है। जिसकी वजह से दूसरे आदमी की गाड़ी का पहले आदमी की गाड़ी से एक्सीडेंट हो जाता है और पहला आदमी मर जाता है तो इस मुसीबत का सवब हमारे समाज का कोई दूसरा शख्स हुआ। किसी मुसीबत का वाज़ मर्तबा पूरा समाज सवब बनता है उदहारण के लिए अभी हाल ही में पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैल गया था। बहुत से देशों में जिसमे हमारा देश भी शामिल है वहाँ पर मरीज के लिए वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की कमी थी जिसकी वजह से बहुत से लोग जिनकी जान बचाई जा सकती थी वो दुनिया से चले गए। इन सब लोगो की जान का जिम्मेदार हमारा समाज खुद है। क्योंकि हमने ही हमारे समाज के ऐसे लोगो को चुनकर सत्ता में भेजा है जो कि भ्रष्टाचार करते है। जो पैसा वेंटिलेटर और ऑक्सीजन पर लगना चाहिए था इन लोगो ने वो पैसा वहाँ नही लगाया जिसकी वजह से बहुत सारे लोग मारे गए। इससे ये साबित हुआ कि इस मुसीबत का सवब हमारा समाज खुद है और हमारे समाज का भ्रष्ट होना है। जब भी हम दुनिया मे मुसीबत देखे तो उस मुसीबत का सवब इंसान खुद है। चाहे वो खुद हो या उसके आस पास के लोग हो या चाहे हमारा पूरा समाज हो। इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को खुदा ने जारी रखा है और उस बुराई के अंदर भी भलाई का पहलू मौजूद है लेकिन अगर इंसान के अंदर कोई बुराई है तो उसका कारण वो खुद है। जैसाकि खुदा ने अपने आखिरी संदेश कुरआन में कहा है कि: *जो मुसीबत तुम्हें पहुंची वह तो तुम्हारे अपने हाथों की कमाई से पहुंची और बहुत कुछ तो वह माफ कर देता है।* 📓(कुरआन 42:30) नास्तिक का ये ऐतराज़ की खुदा रहमान और क़ादिरे मुतलक (सर्वशक्तिमान) है तो इस दुनिया मे बुराई क्यों मौजूद है? इसका जबाब हमने ये दिया है कि खुदा सिर्फ रहमान और क़ादिरे मुतलक ही नही बल्कि अल-हक़ीम (The Wise) भी है। खुदा का कोई भी काम हिकमत से खाली नही है और खुदा की मुकम्मल हिकमत हमे समझ आ जाये ये जरूरी नही है। फिर हमने जाना कि खुदा ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को रखा है तो इसकी माकूल वज़ह क्या है? इसकी तीन माकूल वज़ह ऊपर बताई गई है। 1 .अगर इस दुनिया के अंदर मुसीबत औऱ बुराई न हो तो इंसान कभी भी भलाई का आनंद नही कर सकता। 2. खुदा ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को इसलिए भी रखा है ताकि इंसान के अंदर अच्छाइयां परवान चढ़ सके। 3. खुदा ने इस दुनिया मे मुसीबत और बुराई को इसलिए भी रखा है ताकि हम अपनी पसंद से अच्छाई और बुराई को चुन सकें, खुदा की दी हुई आज़ादी (free will) का इस्तेमाल कर सकें। इन तीन वज़हों के अलावा और भी बहुत सी वज़ह हो सकती हैं। अगर अब भी नास्तिक को समझ में नहीं आ रहा है कि खुदा ने मुसीबत और बुराई को क्यों रखा है तो उससे एक सवाल ये है कि अगर दुनिया में मुसीबत और बुराई मौजूद है तो इसकी वजह से आप खुदा का इंकार कैसे कर सकते है?

*तौहीद के अक़्ली दलाइल* इस दुनिया मे खुदा को मानने वाले आपको दो तरह के इंसान मिलेंगे एक वो जो इस कायनात का मालिक सिर्फ एक खुदा को मानते है दूसरे वो जो एक से ज्यादा खुदाओ को इस कायनात का मालिक मानते है। जो एक से ज्यादा खुदाओ को इस कायनात का मालिक मानते है वो कहते है कि आखिर इस कायनात के मालिक एक से ज्यादा खुदा क्यो नहीं हो सकते है? और वो एक मिसाल देते है कि जैसे फैक्ट्री में किसी गाड़ी, फोन, मशीन या कोई भी चीज को बनाने के लिए अलग-अलग विभाग और लोगों की जरूरत पड़ती है। उनमें इलेक्ट्रीशियन भी होता है, मैकेनिक भी और लेबर भी काम करती है। अलग-अलग विभाग मिलकर उस गाड़ी को बनाते है जिससे वो गाड़ी अच्छी तरह डिज़ाइन की हुई बनती है वैसे ही हमारी कायनात को अलग-अलग खुदाओ ने मिलकर बनाया है। तो आइए जानते है कि गाड़ी की ये मिसाल ख़ुदा पर भी लागू होगी या नहीं? आखिर एक से ज्यादा ख़ुदा क्यों नहीं हो सकते है? इस सवाल का जवाब जानने से पहले हम ख़ुदा को समझते है कि आखिर खुदा कहते किसे है? ख़ुदा उस जात को कहते है जो सर्वशक्तिमान (omnipotent) हो यानी हर चीज को करने की ताकत रखता हो, हर चीज का जानने वाला (omniscient) हो, ख़ुदा का वुजूद इस कायनात के लिए जरूरी हो यानी ये कायनात उसके बिना नहीं चल सकती हो, जो अपनी हर इच्छा को पूरी कर सकता हो, उसमें कोई भी ऐब या कमी न हो, उसे कुछ भी करने के लिए किसी से इजाजत लेने की जरूरत ना हो, वो अपने काम के लिए किसी के सामने जवाबदेह ना हो, ये खुदा की बहुत सी सिफात मे से कुछ सिफात मैने आपके सामने रखी। अब हम कुछ अक़्ली सवालों की जरिये आपको बताएंगे कि इस कायनात के एक से ज्यादा खुदा क्यों नहीं हो सकते है, और अगर एक से ज्यादा खुदा माने जाये तो निम्नलिखित सवाल उठेंगे तो उनका जवाब क्या होगा एक से ज्यादा ख़ुदाओं के मानने वालों के पास? *कुछ अक़्ली सवाल* *पहला सवाल*- *क्या सब ख़ुदाओं की ताक़त बराबर होगी? या कुछ ख़ुदाओं की ताक़त कम होगी और कुछ ख़ुदाओं की ताक़त ज्यादा होगी?* मिसाल के लिए मान लीजिये कि दो खुदा है, तो क्या दोनो खुदाओ के पास ताक़त बराबर होगी? या एक खुदा के पास ताकत ज्यादा होगी और दूसरे के पास कम? • अब अगर कोई ये कहे कि एक खुदा के पास ताकत ज्यादा है और दूसरे खुदा के पास ताकत कम है, तो ऐसी स्थिति मे ये याद रखिये कि ताकत कम होना एक ऐब (defect) या कमी है और जिस जात मे भी ऐब हो वो खुदा नहीं हो सकता। लिहाजा आपका वो खुदा जिसको आप कमतर समझते हो दूसरे खुदा के मुकाबले मे, वो खुदा हो ही नहीं सकता, लिहाजा साबित हुआ कि खुदा एक ही है क्योकि खुदा के अंदर तमाम खूबियों का होना जरूरी है और उसके अंदर किसी भी ऐब या कमी का होना नामुमकिन है। और ये अक़्ली बात भी कि हम ऐसे खुदा कि इबादत क्यों करे जिसके अंदर ऐब या कमी हो। और जिसके अंदर ऐब या कमी हो वो खुदा कैसे हो सकता है? •अब अगर कोई कहे कि दोनो खुदाओ के पास बराबर ताकत है कोई भी किसी से कमतर या बड़ा हुआ नहीं है, इस स्थिति मे बराबरी भी एक ऐब है क्योकि अगर ताकत मे बराबरी है तो इससे हमे ये मालूम हुआ कि कोई एक खुदा दूसरे खुदा को हरा नहीं सकता क्योंकि दोनो के पास बराबर ताकत है। इस स्थिति मे एक खुदा का दूसरे खुदा को हरा ना पाना, उस खुदा का असमर्थ (incapable) होना है और असमर्थ (incapable) होना एक ऐब है लिहाजा जिस जात के अंदर ऐब हो, वो जात खुदा नहीं हो सकती। अगर दोनो खुदा ताकत के ऐतबार से बराबर है तो एक खुदा दूसरे खुदा को हरा नहीं सकता और किसी चीज को न कर पाना एक ऐब है और जिस जात मे ऐब हो वो खुदा नहीं हो सकता। • अब अगर कोई कहे कि एक खुदा दूसरे खुदा को हरा सकता है तो इस स्थिति मे हार जाना भी एक ऐब है लिहाजा जो हार गया वो खुदा हो ही नहीं सकता, लिहाजा साबित हुआ कि खुदा एक ही है। • कोई ये भी कह सकता है कि उन खुदाओ के पास ताकत बराबर है लेकिन उनकी आपस मे कभी लड़ाई नहीं होती, तो ऐसी स्थिति मे भी हम यही कहेंगे और मानने पर मजबूर होंगे कि सारे खुदा एक दूसरे को बर्दास्त किये बैठे है यानी उन्होंने अपनी कमजोरी का इजहार कर दिया कि एक खुदा है और उसकी मौजूदगी मे दूसरे खुदा भी मौजूद है लिहाजा कोई खुदा भी किसी दूसरे खुदा को हरा नहीं सकता है इसलिए ये लड़ ही नहीं रहे है गोया कि मजबूरन वो बैठे हुए है और मजबूर होना भी एक ऐब है जो खुदा कि जात मे नहीं हो सकता, इसलिए अल्लाह ने क़ुरआन की पहली आयत मे ही फरमा दिया; "अल्हम्दु लिल्लाहीं रब्बिल आलमीन" - *सारी तारीफे अल्लाह के लिए ही है जो सारे जहाँ का रब है।* यहा पर अल्लाह अस-शुक्र भी ला सकते थे अस-सना भी ला सकते थे और भी अल्फाज ला सकते थे जो तारीफ के लिए इस्तेमाल होते है लेकिन अल्लाह ने यहा अल-हम्द का इस्तेमाल किया है क्योकि अल-हम्द मे तमाम तारीफे, तमाम कमालात (खूबिया), तमाम बेहतरीन सिफात (Attributes) सिर्फ अल्लाह के लिए है, इसलिए अगर एक से ज्यादा खुदा माने जाये तो उन सब खुदाओ कि ताकत क्या होगी? बराबर होगी? या कम होगी? या ज्यादा होगी? *दूसरा सवाल*- *क्या वो अलग-अलग खुदा अपने राजों और अपने भेदों को दूसरे खुदा से छिपा सकते है या नहीं?* उदाहरण के लिए खुदा A अपने राजों और अपने भेदों को खुदा B से छिपा सकता है या नहीं? • अगर कोई ये कहे कि खुदा A अपने राजों और अपने भेदों को खुदा B से छिपा सकता है तो खुदा B से दूसरी जात कि राजों और भेदों का छिप जाना ये नवाकफ़ियत और ला इल्मी (अज्ञानी) होना है, और किसी चीज़ के बारे मे ना जान पाना भी एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता है क्योकि खुदा कहते ही उसको है जो हर चीज का जानने वाला हो। • अब अगर कोई ये कहे कि ख़ुदा A अपने राजों और भेदों को खुदा B से नही छिपा सकता, इस स्थिति मे ख़ुदा A अपने राजों और भेदों को ख़ुदा B से छिपाने मे असमर्थ (incapable) हो जायेगा, क्योकि ख़ुदा A चाहकर भी अपने राजों को ख़ुदा B से नहीं छिपा सकता और ये छिपा ना पाना एक बेबसी है, जोकि एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता। दोनो स्थिति मे जो भी अपने राजों और अपने भेदों को छिपा पाने मे असमर्थ हो रहा है वो खुदाई के दायरे से बाहर हो जायेगा और जो बच रहा है वही खुदा है, लिहाजा साबित हुआ की खुदा सिर्फ एक है जो हर चीज का जानने वाला है, इसको अल्लाह ने क़ुरान मे कुछ इस तरह फरमाया: *जो कुछ बन्दों के सामने है, उसे भी वो जानता और जो उनसे ओझल है उसे भी वो जानता है और उसके इल्म मे से कोई चीज उनके पकड़ मे नहीं आ सकती, ये और बात है कि किसी चीज का इल्म वो खुद ही उनको देना चाहे।* 📓(अल-कुरआन 2:255) अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। कोई भी चीज अल्लाह के इल्म से छिपी नहीं है, कोई चाहकर भी अल्लाह से कोई चीज छिपा नहीं सकता और अल्लाह के इल्म में से कोई भी बात कोई दूसरा नहीं जान सकता जब तक की अल्लाह खुद ना बता दे। *तीसरा सवाल*- *क्या सभी खुदा मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से बराबर होंगे? या सभी खुदा मकाम और मर्तबे के ऐतबार से मुख्तलिफ दर्जे मे होंगे? यानी अपने स्टेटस के ऐतबार से सब खुदा कैसे होंगे?* इस स्थिति मे दो ही संभावनाए हो सकती है या तो सब खुदा मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से बराबर होंगे या तमाम खुदाओ मे से कुछ ख़ुदा छोटे होंगे और कुछ ख़ुदा बड़े होंगे। अगर सब खुदा मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से बराबर होंगे तो ये नामुमकिन है क्योकि बराबरी एक जज्बा और एक एहसास है जो खुदा अपने मद्दे मुकाबिल बर्दास्त नहीं कर सकता यानी खुदा by definition ये चाहता है कि उसके बराबर कोई नहीं होगा वो सबसे ऊपर होगा। और अगर हम मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से सब खुदाओ को बराबर माने तो एक ऐतराज ये उठेगा कि खुदा ये बर्दाश्त किये बैठा है कि उसकी मौजूदगी में कोई दूसरा खुदा भी उसके बराबर है। ये भी नामुमकिन है क्योकि ख़ुदा by definition यह चाहता है कि कोई उसके बराबर ना हो। अगर हम दूसरी संभावना की तरफ़ जाएँ कि उन तमाम खुदाओ मे से कुछ खुदा बड़े होंगे और कुछ खुदा छोटे होंगे तो ये भी गलत है उसकी वजह ये है कि खुदा का छोटा होना और मर्तबे के ऐतबार से कम होना ये एक ऐब है और खुदा के अंदर कोई भी ऐब पाया नहीं जा सकता, लिहाजा मक़ाम और मर्तबे से भी साबित हुआ कि खुदा सिर्फ एक होना चाहिए। क़ुरआन की सुरह इखलास में अल्लाह के बारे में बताया गया कि: وَ لَمۡ یَکُنۡ لَّہٗ کُفُوًا اَحَدٌ और कोई उसका हमसर नहीं है (यानी उसके बराबर नहीं है)। 📓(क़ुरआन 112:4) यानी सारी कायनात में कोई नहीं है, न कभी था और न कभी हो सकता है जो अल्लाह के जैसा या उसके मर्तबे के बराबर हो और पूरी कायनात में कोई नहीं है जो अपनी खूबियों, कामों और इख्तियारात में अल्लाह से किसी दर्जे भी बराबरी रखता हो। चौथा सवाल*- चौथा सवाल जो कि बहुत बुनियादी तौर पर उठेगा वो identification का उठेगा, कि क्या सब खुदा एक जैसे होंगे या अलग-अलग होंगे? मिसाल के तौर पर इंसान अगर एक से ज्यादा खुदाओ का तसव्वुर करेगा तो उस इंसान के लिए अपने खुदाओ को पहचानने के लिए अलग-अलग category होगी या नहीं होगी? इस स्थिति मे अगर कोई ये कहे कि identification के ऐतबार से सब खुदा एक जैसे है, उनमे कोई फर्क नहीं है, तो मुझे बताइये कि वह इंसान जो इन तमाम खुदाओ पर ईमान लाना चाहता है वह इन तमाम खुदाओं को कैसे पहचान पायेगा? वह इंसान उन सभी खुदाओ मे फर्क नहीं कर सकेगा कि ये पहला खुदा है या दूसरा है या तीसरा या चौथा है... यानी ऐसी कसरत का कोई फायदा ही नहीं जिसमे कोई फर्क ना हो, ऐसी कसरत हमे खुद वहादानियत यानी एक खुदा की तरफ़ लेकर जा रही है, एक जैसे खुदाओ का मौजूद होना फर्जी बात है। इसको आप एक मिसाल से समझो कि आप मार्केट गये और एक ही तरह की शर्ट या दूसरी चीज कसरत से लेना शुरु कर दें अगर वो आप अपने लिए ले रहे है तो कोई भी इंसान आप से यही कहेगा कि भाई पागल हो जो आप सब चीजें एक जैसी ही ले रहे हो अगर आपको लेनी ही है तो मुख्तलिफ ले लो। अगर कोई ये कहे कि वो सब खुदा identification के ऐतबार से एक जैसे नहीं अलग-अलग होंगे तो सवाल ये उठता है कि उन सब खुदाओ का इख्तिलाफ सकारात्मक (positive) होगा या नकारात्मक (negative) होगा। मिसाल के तौर पर एक खुदा के पास बारिश करने की ताकत होगी और दूसरे के पास तूफ़ान लाने की ताकत होगी और दूसरे खुदा की तूफ़ान वाली ताकत बारिश वाले खुदा के पास नहीं है। यहाँ हम सिर्फ खुदा की सिफात (Attributes) का ही फर्क कर सकते है क्योकि खुदा का जिस्म नहीं होता अगर हम खुदा की सिफात की कमी या ज़्यादती का फर्क माने तो जिस खुदा की सिफात मे कमी होगी तो ये ऐब है अगर सिफात मे ज़्यादती होगी तो दूसरे के लिए ऐब है और खुदा के अंदर कोई भी ऐब मौजूद नहीं हो सकता है। इससे भी यही साबित हुआ कि ख़ुदा सिर्फ एक है। *पांचवा सवाल*- *कायनात को बनाने के ऐतबार से उनकी कुदरत का क्या मैयार होगा? क्या इस कायनात को बनाने के लिए हर खुदा मुकम्मल तौर पर कादिर होगा या किसी दूसरे खुदा का मोहताज़ होगा?* अगर कोई ये कहे कि हर खुदा अकेले पूरी कायनात को बनाने की ताकत रखता है तो इस कायनात को बनाने के लिए एक खुदा के अलावा बाकी किसी खुदा की जरूरत ही नहीं होगी क्योकि एक खुदा अकेला ही पूरी कायनात को बना देगा। अगर कोई ये कहे कि इस कायनात को बनाने के लिए सब खुदा एक दूसरे के मोहताज़ है कोई खुदा भी अकेला इस पूरी कायनात को नहीं बना सकता है तो हम कहेंगे कि खुदा का किसी काम को ना कर पाना मोहताजी है, और मोहताज़ी भी एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता। *छठा सवाल* - *चलो मान लिया जाये कि सब खुदाओ ने इस कायनात को मिलकर बना लिया, तो वो सब खुदा इस कायनात के निजाम को कैसे चलाएंगे ?* क्या एक खुदा ही इस कायनात के निजाम को चला सकता है? या सब खुदा मिलकर इस कायनात को चला रहे है? अब अगर कोई कहे कि सब खुदा मिलकर इस कायनात के निजाम को चलाते है, तो इससे एक ही नतीजा निकलता है कि कोई भी खुदा अकेला इस कायनात को नहीं चला सकता है, और इस कायनात को चलाने के लिए सभी खुदा एक दूसरे के मोहताज़ है,और मोहताज़ी एक ऐब है और खुदा के अंदर कोई ऐब नहीं हो सकता है लिहाजा उनमे से कोई खुदा नहीं होगा जो एक दूसरे का मोहताज़ हो। अब अगर कोई ये कहे कि सब खुदा मिलकर इस कायनात के निजाम को तो चला रहे है लेकिन कोई किसी का मोहताज़ नहीं है उनमे से हर एक खुदा ये ताकत रखता है कि वो अकेला ही इस कायनात के निजाम को चलाये, तो इस स्थिति मे एक खुदा के अलावा बाकी तमाम खुदाओ की मौजूदगी उनका वजूद गैर-जरूरी है, यानि उनके वजूद की जरूरत ही नहीं है और मखलूक (creation) को जिस जात की जरूरत न हो वो जात खुदा नहीं हो सकती क्योकि खुदा तो वही है जिसे दूसरों की जरूरत नहीं लेकिन दूसरों को उसकी जरूरत है। "*लोगों तुम्ही अल्लाह के मोहताज़ हो और अल्लाह तो गनी और हमीद है*" 📓(अल-क़ुरआन 35:15) इस पूरी कायनात मे हर चीज़ अल्लाह की मोहताज़ है, और अल्लाह किसी चीज़ का मोहताज़ नहीं, हम खुद अल्लाह के मोहताज़ है हमारी जिंदगी एक पल के लिए भी कायम नहीं रह सकती, अगर अल्लाह हमे जिंदा ना रखे और वे असबाब (साधन) हमारे लिए न जुटाये जिनकी बदौलत हम दुनिया मे ज़िंदा रहते है। ऊपर की आयत मे अल्लाह की दो सिफात (Attributes) का ज़िक्र हुआ है एक गनी और दूसरा हमीद। गनी से मुराद यह है कि वह हर चीज़ का मालिक है, हर एक से बेपरवाह और बेनियाज है, किसी की मदद का मोहताज़ नहीं है और हमीद से मुराद यह है कि वह आप-से-आप महमूद (तारीफ किया हुआ) है कोई उसकी हम्द (शुक्र और तारीफ) करे या न करे, मगर हम्द का हक़ उसी को पहुँचता है। *सातवा सवाल*- चलो मान लिया कि वो सब खुदा इस कायनात को चला रहे है तो एक खुदा दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाजी/ मुदाखलत (interfare) कर सकता है या नहीं कर सकता है? अगर कोई ये कहे कि एक खुदा, दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाज़ी कर सकता है तो इस स्थिति मे जिस खुदा के काम मे दखल अंदाज़ी (interfare) की गयी वो खुदा, खुदा नहीं हो सकता क्योकि वो अपना बचाव नहीं कर पाया और बचाव न कर पाना या किसी चीज़ को अपने खिलाफ होने से न रोक पाना इसी को असमर्थ (incapable) होना कहते है और असमर्थ (incapable) होना एक ऐब है लिहाजा वो खुदा तो नहीं हो सकता जिसके काम मे दखल अंदाज़ी की गयी हो, इससे भी यही साबित हुआ कि खुदा सिर्फ एक है। अब अगर कोई ये कहे कि अगर कोई खुदा किसी दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाज़ी करता है तो दूसरा खुदा इस बात की ताकत रखता है कि वह अपने काम मे दखल अंदाज़ी न होने दे, तो इस स्थिति मे दखल अंदाज़ी करने वाला खुदा असमर्थ (incapable) हो गया क्योकि वह दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाजी नहीं कर पाया और किसी चीज़ को ना कर पाना एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता लिहाजा साबित हुआ कि खुदा सिर्फ एक है जो हर चीज़ को कर सकता है और वह हर चीज़ पर मुकम्मल इख्तियार रखता है। *आठवा सवाल*- *उन एक से ज्यादा खुदाओ पर ईमान लाने की कैफ़ीयत क्या होगी?* क्या एक इंसान एक खुदा पर ईमान लाये और दूसरे खुदा पर ईमान न लाये तो क्या ये जायज होगा? मान लीजिये कि 5 खुदा है अब अगर मैं 3 खुदा पर ईमान ले आता हूँ और 2 खुदा पर नहीं तो क्या इस स्थिति में, क्या मैं जन्नत में जाऊंगा या जहन्नुम मे जाऊंगा? अगर 3 खुदा यह कहे कि तुम जन्नत में जाओगे तो क्या वह 2 खुदा जिनका मैं इंकार कर रहा हूं क्या वह मुझसे नाराज नहीं होंगे? वह तो यही कहेंगे कि इस को जहन्नुम में भेजो और अगर वह 2 खुदा मुझे जहन्नुम में भेजना चाहे और जिन 3 खुदाओं को मैं पसंद करता हूं उन पर ईमान रखता हूं जिन की मैं इबादत करता हूं वह 3 खुदा अगर झगड़ कर कहे कि इसको हमें जन्नत में ले कर जाना है यह तो हमारा फरमाबरदार था और वह दो खुदा कहे की नहीं नहीं, उसने अगर तुम्हारी मान ली तो क्या हुआ पर हमारा तो इंकार किया तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? मैं जन्नत में जाऊंगा या जहन्नुम में जाऊंगा? क्या एक खुदा का मोमिन दूसरे खुदा का काफिर (इंकारी) हो तो उसका जन्नत और जहन्नुम का फैसला कैसे होगा? और अगर जन्नत और जहन्नुम का फैसला इस बुनियाद पर होने लगे तो कौन सा खुदा आदिल होगा और कौन सा खुदा ज़ालिम होगा? क्या वह खुदा आदिल होगा जो अपने साथ मोहब्बत और इबादत करने वाले को जन्नत में भेज दे और वह खुदा कैसा होगा जो अपने पर ईमान ना लाने की वजह से किसी को जहन्नुम में भेज दे ? चाहे वह दूसरों पर ईमान रखता हो, इसलिए यह बात अक़ली तौर पर नामुमकिन है कि कल कयामत के दिन (Day of judgement) और आज दुनिया के अंदर फैसला करने के लिए आप एक से ज्यादा खुदा मान ले *नोवा सवाल*- *क्या वह एक से ज्यादा खुदा इंफरादी तौर पर अपने इरादे पर इख्तियार रखते होंगे या नहीं?* देखें दो चीजों में फर्क समझे एक है चाहत और एक है इरादा जो अमल की सूरत में जाहिर होता है यानी दो खुदा किसी चीज की चाहत तो कर सकते है लेकिन इरादा उनमें से सिर्फ एक ही कर सकता हैै। उदाहरण के लिए एक खुदा एक बंदे को मारना चाहता है और दूसरा खुदा उस बंदे को जिंदा रखना चाहता है मगर दोनों खुदा का अपनी चाहत पर अमल करना क्या यह मुमकिन है? अगर कोई यह कहे कि दोनों खुदाओं का अपनी चाहत पर अमल करना मुमकिन है तो यह दो विपरीत (opposite) बातों को एक जगह इकट्ठा करना है जो कि एक illogical fallacy है। अब अगर कोई यह कहे कि उन दोनों खुदाओं में से कोई एक ही अपनी चाहत को इरादे में बदल सकता है तो इस स्थिति में यह उस खुदा के लिए ऐब है जो अपनी चाहत को इरादे में नहीं बदल सकता और खुदा के अंदर कोई भी ऐब नहीं हो सकता लिहाजा साबित हुआ कि खुदा एक है जो इस दुनिया के अंदर सब मामलात अपनी मर्जी से चलाता है अगर एक से ज्यादा खुदा होते तो इस दुनिया के अंदर किसी किस्म का निजाम कायम नहीं रह सकता था क्योंकि हर दूसरा खुदा अपने इरादे और इख्तियार को इस्तेमाल करने की कोशिश करता क्योंकि इरादा और इख्तियार इस्तेमाल करने के लिए ही होता है। *निष्कर्ष (Conclusion)*- हमने 9 ऐसे सवाल आपके सामने रखे हैं जिनसे अक़ली तौर पर यही बात साबित होती है कि इस कायनात का मालिक सिर्फ एक खुदा ही हो सकता है। जो लोग एक से ज्यादा खुदा को मानते हैं उन्होंने जो दलील दी थी जैसे फैक्ट्री में एक गाड़ी को अलग-अलग लोग मिलकर बनाते हैं वैसे ही यह कायनात को अलग-अलग खुदाओं ने मिलकर बनाई है तो मैं उनसे सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि फैक्ट्री के लोगों का किसी चीज को बनाना और खुदा का किसी चीज को बनाना दो अलग-अलग बातें हैं, हम फैक्ट्री के लोगों की तुलना ख़ुदा से नहीं कर सकते है क्योंकि फैक्ट्री के लोगों में ऐब होते है और ख़ुदा हर ऐब से पाक है जैसे फैक्ट्री के लोगों को मुकम्मल इख्तियार नहीं होते हैं, वो हर चीज नहीं कर सकते है, वो किसी दूसरे के काम में दखलंदाजी नहीं कर सकते, उनको सिर्फ अपने काम की ही जानकारी होती है और इनमें बहुत सी चीजें ऐसी होती हैं जो कि ऐब हैं जिन्हें हम खुदा के बारे में नहीं कह सकते हैं क्योंकि खुदा हर एक ऐब से पाक है और सबसे अहम बात ये है कि ख़ुदा nothing से सब कुछ बनाता है और लोग ख़ुदा के बनाए हुए मटेरियल इस्तेमाल करके कोई चीज बनाते है। इसलिए फैक्ट्री के लोगों की तुलना खुदा से नहीं की जा सकती है यहां से तमाम अक़ली दलाईल हमें एक खुदा की तरफ लेकर जा रहे हैं जो लोग अल्लाह के एक होने में यकीन करते हैं उनका नजरिया अक़्ल के मुताबिक है और जो लोग एक से ज्यादा खुदाओं का नजरिया रखते हैं उनका यह नजरिया अक्ल के खिलाफ है इसलिए अल्लाह ताला ने तौहीद पर ईमान लाने को लाज़मी करार दिया है और जिस इंसान तक इस्लाम की दावत ठीक से नहीं पहुंचे जैसा कि पहुचनी चाहिए थी तो उस इंसान से अल्लाह अपने वुजूद और तौहीद के मुताबिक ही सवाल करेगा। अगर इस कायनात के एक से ज्यादा ख़ुदा होते तो ये कायनात कुछ दिन भी नहीं चल सकती थी, पूरी कायनात का निज़ाम दरहम बरहम हो जाता, और सब ख़ुदा पूरी कायनात का मालिक बनने के चक्कर में आपस में ही लड़ जाते। और हम देख रहे है कि कायनात अरबों सालों से यूहीं चली आ रही है और अरबों सालों से कायनात के नियम व कानून में कोई तब्दीली नहीं आई है जिसकी वजह से ही हम मौसम की जानकारी हासिल कर लेते है और सूरज के निकलने और उगने का समय भी एक्यूरेट बता देते है, हम अपनी फसलों के बोने और पकने का भी समय कायनात के नियम की वजह बता सकते है यानी कायनात के नियामों में अरबों साल गुजरने के बाद भी कोई तब्दीली न आना हमें एक खुदा कि तरफ इशारा कर रहे है और मौजूदा दौर के भी सभी साइंटिस्ट इस बात पर मुत्तफिक है कि इस कायनात को चलाने वाला ड्राइविंग फोर्स सिर्फ एक ही है। और अल्लाह इसी बात को अपने आखिरी संदेश कुरआन में कुछ इस तरह बताता है कि: *अगर आसमान और ज़मीन में एक अल्लाह के सिवा दूसरे ख़ुदा भी होते तो (ज़मीन और आसमानों) दोनों का निज़ाम बिगड़ जाता।* 📓(क़ुरआन 21:22) *अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है, और कोई दूसरा ख़ुदा उसके साथ नहीं है। अगर ऐसा होता तो हर ख़ुदा अपनी पैदा की हुई चीज़ों को लेकर अलग हो जाता, और फ़िर वो एक दूसरे पर चढ़ दौड़ते।* 📓(क़ुरआन 23:91) *अगर अल्लाह के साथ दूसरे ख़ुदा भी होते, जैसा कि ये लोग कहते हैं, तो अर्श (सिंहासन) के मालिक के मक़ाम पर पहुंचने की ज़रूर कौशिश करते।* 📓(क़ुरआन 17:42)

*तौहीद (अल्लाह एक है) (Oneness of God)* क्या इस पूरी कायनात को एक ख़ुदा ने बनाया है? या बहुत से ख़ुदाओं ने मिलकर इस कायनात को बनाया है? क्या इस कायनात को चलाने वाला एक ख़ुदा है? या बहुत से ख़ुदा मिलकर इस कायनात को चला रहे हैं? चलिए इन सवालों का जवाब हम ख़ुद इस कायनात से पता कर लेते हैं।अब आप ये सोच रहे होंगे कि आख़िर ये कायनात हमें इन सवालों के जवाब कैसे देगी ? तो इसका जवाब ये है कि हम इस कायनात पर और इसमें मौजूद तमाम चीजों पर गौर ओ फ़िक्र (चिंतन-मनन) करेंगे और देखेंगे कि क्या इस कायनात और इसमें मौजूद तमाम चीजों की व्यवस्था और मैनेजमेंट को एक ख़ुदा की ज़रुरत है या बहुत से ख़ुदाओं की? अगर बहुत से ख़ुदा इस कायनात को बनाने वाले और चलाने वाले होते तो क्या ये कायनात एक दिन भी चल पाती? या इस कायनात को चलाने के लिए सिर्फ एक ख़ुदा की ज़रुरत है? आइए अब हम चलते हैं एक ख़ुदा की तलाश में और देखते हैं कि इस कायनात का एक ख़ुदा हो सकता है? या बहुत से ख़ुदा? आप में से हर व्यक्ति की अक्ल इस बात की गवाही देगी कि दुनिया में कोई भी काम छोटा हो या बड़ा, कभी सुव्यवस्थित और नियमित रूप से और बाकायदगी के साथ नहीं चल सकता, जब तक कि कोई एक व्यक्ति उसका ज़िम्मेदार न हो। जैसे एक कार में दो स्टेयरिंग लगाकर उसे दो लोगों को चलाने दिया जाए तो आप समझ सकते हैं कि उस कार का क्या हाल होगा। एक व्यक्ति उसको अपने हिसाब से चलाना चाहेगा और दूसरा व्यक्ति अपने हिसाब से एक व्यक्ति उस कार को एक दिशा में चलाना चाहेगा तो दूसरा अलग दिशा में चलाना चाहेगा, एक व्यक्ति कार को स्पीड से चलाना चाहेगा तो दूसरा व्यक्ति स्पीड से नहीं चलाना चाहेगा, एक व्यक्ति कार को रोकना चाहेगा तो दूसरा व्यक्ति उसे रोकने नहीं देगा, अब आप बताइए कि ऐसी कार जिसका कंट्रोल दो व्यक्तियों को दे दिया जाए तो क्या उस कार का सुव्यवस्थित रूप से चल पाना मुमकिन है? ऐसे ही अगर एक हुकूमत के दो बादशाह हो तब भी वह हुकूमत चल नहीं पाएगी क्यूंकि एक बादशाह चाहेगा मेरा हुक्म चले तो दूसरा बादशाह अपना हुक्म चलाना चाहेगा, एक बादशाह हुकूमत के लिए एक नीति (Policy) बनायेगा। तो दूसरा बादशाह उस नीति का विरोध करेगा, अब आप बताइए कि अगर एक हुकूमत को बराबर इख्तियार देकर दो बादशाहों को चलाने के लिया दिया जाए तो क्या वह हुकूमत एक दिन भी चल पायेगी? क्या आपने कभी सुना है कि एक स्कूल के दो हेडमास्टर हो? एक विभाग के दो डायरेक्टर हो? एक फ़ौज के दो कमांडर हो? और अगर कहीं ऐसा हो तो क्या आप समझते हैं कि एक दिन के लिए भी प्रबन्ध ठीक हो सकता है? आप अपने जीवन के छोटे- छोटे मामलों में भी तजरबा करते हैं कि जहां एक काम को एक से अधिक लोगों की ज़िम्मेदारी पर छोड़ा जाता है, वहां अत्यन्त अव्यवस्था और बदनज़मी पैदा हो जाती है। लड़ाई झगड़े होते हैं और अन्त में साझे की हंडिया एक दिन चौराहे में फूटकर रहती है। इंतेज़ाम नियमित्ता, एकरूपता और सलीका दुनिया में जहां भी आप देखते हैं, वहां निश्चित रूप से किसी एक ताक़त का हाथ होता है कोई एक ही वुजूद इख्तियार और प्रभुत्व वाला होता है और किसी एक ही के हाथों में सारे कामों की बागडोर होती है उसके बिना इंतेज़ाम (प्रबंध) की कल्पना आप नहीं कर सकते। यह ऐसी सीधी बात है कि कोई व्यक्ति जो थोड़ी अक्ल भी रखता हो इसे मानने में संकोच या हिचकिचाहट ना करेगा इस बात को ध्यान में रख कर ज़रा अपने आस पास की दुनिया पर नज़र डालिए। ये विशाल कायनात जो आपके सामने फैली हुई है उसमें 250 अरब से ज़्यादा गैलेक्सी मौजूद है और हर गैलेक्सी के अंदर 300 अरब से ज़्यादा सूरज मौजूद है और हमारा सूरज इस गैलेक्सी का सब से छोटा सितारा है जो कि हमारी प्रथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है। और इस सूरज के अंदर से हर सेकंड में 50 करोड़ परमाणु बम (Atomic Bomb) के बराबर एनर्जी निकल रही है, हमारी गैलेक्सी के पास जो सब से क़रीब गैलेक्सी दरयाफ़्त हुई है वो हमारी प्रथ्वी से 20 लाख प्रकाश वर्ष (Light Year) की दूरी पर है। ये करोड़ों - अरबों सितारे जो हमारे संसार में फैले हुए हैं लगातार गति कर रहे हैं। और अपनी गति के दौरान कभी ऐसा नहीं होता कि एक सितारा दूसरे सितारे से टकरा जाए, देखिए इन सब के घूमने में कैसी सख़्त और अटल नियामित्ता है। कभी रात अपने समय से पहले आती हुई आपने देखी? कभी दिन अपने समय से पहले निकला? कभी चांद प्रथ्वी से टकराया? कभी सूरज अपना रास्ता छोड़कर हटा? कभी किसी स्टार को आपने एक बाल बराबर भी अपनी गर्दिश की राह से हटते हुए देखा या सुना? ये करोड़ों गृह (Planet) जिनमें से कुछ हमारी प्रथ्वी से लाख गुना बड़े हैं और कुछ सूरज से भी हजारों गुना बड़े हैं। ये सब घड़ी के पुर्जो की तरह एक ज़बरदस्त नियम में कसे हुए हैं और एक बंधे हुए हिसाब के अनुसार अपनी अपनी निश्चित गति के साथ अपने अपने निश्चित मार्ग पर चल रहे हैं। न किसी की रफ़्तार में ज़र्रा बराबर भी फर्क पड़ता है, न कोई अपने रास्ते से बाल बराबर भी टल सकता हैं। उनके बीच जो संबंध और निसबतें क़ायम कर दी गई हैं, अगर उनमें एक पल के लिए ज़रा सा भी अंतर आ जाए तो कायनात का समस्त प्रबन्ध ही छिन्न - भिन्न हो जाए। जिस प्रकार रेले टकराती है उसी प्रकार ग्रह एक दूसरे से टकरा जाएं। और इसी के साथ साथ हमारा पूरा यूनिवर्स लगातार फ़ैल भी रहा हैं और हमारे यूनिवर्स के फैलने की रफ़्तार को ज़र्रा बराबर भी कम कर दिया जाए या बढ़ा दिया जाए तो हमारे यूनिवर्स की सब चीज़ें आपस में टकरा जायेगी। यह तो आकाश की बातें हैं अब ज़रा अपनी प्रथ्वी और ख़ुद अपने ऊपर नज़र डालकर देखिए, हमारी प्रथ्वी पर जीवन का यह सारा खेल जो आप देख रहे हैं यह सब कुछ बंधे हुए नियमों और जाबतों की बदौलत क़ायम है, जैसे हमारी प्रथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) के कारण ही सब चीज़ें इस प्रथ्वी पर रुकी हुई है अगर एक सेकेंड के लिए भी प्रथ्वी से गुरुत्वाकर्षण बल हटा लिया जाए तो प्रथ्वी पर मौजूद तमाम चीज़े स्पेस में उड़ने लग जाएं इस प्रथ्वी पर जितनी भी चीज़े काम कर रही है, सब की सब एक नियम में बंधी हुई हैं और इस नियम में कभी अंतर नहीं आता। हवा अपने नियम का पालन कर रही है, पानी अपने नियम में बंधा हुआ है, रोशनी के लिए जो नियम है उस पर वह चल रही है गर्मी और सर्दी के लिए जो नियम है उसकी वह पाबंद हैं। मिट्टी ,पत्थर, धातुएं, बिजली, भाप, पेड़ ,जानवर, किसी में यह मजाल नहीं कि अपनी हद से बढ़ जाए या अपनी फितरतों (स्वभाव) और गुणों को बदल दे या उस काम को छोड़ दें, जो उसे सौंपा गया है। फ़िर अपनी - अपनी हद के अन्दर अपने - अपने नियम का पालन करने के साथ इस प्रथ्वी की सारी चीज़े एक दूसरे के साथ मिलकर काम कर रही हैं और दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है सब इसलिए हो रहा है कि ये सारी चीज़े और सारी ताकतें मिलकर काम कर रही है आप एक मामूली से बीज की ही मिसाल ले लीजिए जिसको आप धरती में बोते हैं वह कभी विकसित हो कर पेड़ बन ही नहीं सकता, जब तक कि धरती और आकाश की सारी शक्तियां मिलकर उसको पालने पोसने में हिस्सा न लें। धरती अपने खाज़ानो से उसको भोजन देती है, सूरज उसकी ज़रुरत के मुताबिक़ उसे गर्मी पहुंचाता है, पानी से वह जो कुछ मांगता है वह पानी दे देता है, हवा से वह जो कुछ चाहता है वह दे देती है, रातें उसके लिए ठंडक और ओस का इंतेज़ाम करती है, दिन उसे गर्मी पहुंचा कर पुख्तगी की ओर ले जाता है इस प्रकार महीनों और सालों तक लगातार एक नियम और कायदे के साथ ये सब मिल जुलकर उसे पालते - पोसते हैं। तब जाकर कहीं पेड़ बनता है और उसमें फल आते हैं। आपकी ये सारी फसलें जिनके बलबूते पर आप जी रहे हैं इन्हीं बेशुमार तरह - तरह की शक्तियों के मिलजुलकर काम करने ही की वजह से तैयार होती है। बल्कि आप ख़ुद ज़िन्दा इसी वजह से है कि धरती और आकाश की तमाम शक्तियां मिलकर आपके पालन-पोषण में लगी हुई है। अगर सिर्फ़ एक हवा ही इस काम में अपना सहयोग देना छोड़ दें तो आप खत्म हो जाएंगे। अगर सूरज अपना काम न करे तो आपकी प्रथ्वी ही खत्म हो जाएं। यदि पानी, हवा और गर्मी के साथ सहयोग करने से इंकार कर दे तो आप पर बारिश की एक बूंद न बरस सके। यदि मिट्टी पानी के साथ सहयोग करना छोड़ दे तो आपके बाग़ सूख जाएं। आपकी खेती कभी न पके, और आपके मकान कभी न बन सकें। यदि लोहा आग के साथ सम्बंध रखने से इंकार कर दे तो आप रेलें और मोटरें तो दूर रही, एक छुरी और एक सूई तक न बना सकें यानी ये सारी दुनिया जिसमें आप जी रहे हैं, यह केवल इस कारण क़ायम है कि इस विशाल कायनात की सभी चीज़े पूरी पाबंदी के साथ एक - दूसरे से मिलकर काम कर रहे हैं। और किसी चीज़ की यह मजाल नहीं है कि अपने काम से हट जाएं या किसी दूसरी चीज़ से सहयोग का मामला न करें। यह जो कुछ मैंने आपसे बयान किया है, क्या इसमें कोई बात ग़लत या सच्चाई के ख़िलाफ़ है? शायद आप में से कोई भी इसे हरगिज़ ग़लत न कहेगा, अच्छा यदि यह सच है तो मुझे बताईए कि यह ज़बरदस्त इंतेज़ाम, यह आश्चर्यजनक नियमितता, यह उच्चकोटी की एकरूपता, यह आकाश और धरती की असीम एवम अनगिनत चीज़ों और शक्तियों में पूर्ण सामंजस्य तालमेल का आख़िर कारण क्या है? इसका कारण इसके सिवा कुछ नहीं हो सकता है कि इस पूरी कायनात का चलाने वाला सिर्फ़ एक ही ख़ुदा हो सकता है अगर दस - बीस नहीं दो ख़ुदा भी इस कायनात के मालिक होते तो यह व्यवस्था इस नियमित रूप से कभी न चल सकती, इसी बात को अल्लाह ने अपने आख़िरी पैग़ाम क़ुरआन में कुछ इस तरह बयान किया है कि:- *अगर आसमान और ज़मीन में एक अल्लाह के सिवा दूसरे ख़ुदा भी होते तो (ज़मीन और आसमानों) दोनों का निज़ाम बिगड़ जाता।* 📓(क़ुरआन 21:22) अल्लाह तआला का कुरआन में दलील देने का यह तरीका बहुत सीधा - सादा भी है और बहुत गहरा भी। सादा सी बात जिसको एक देहाती, एक मोटी समझ का आदमी भी आसानी से समझ सकता है, यह है कि एक मामूली घर का निज़ाम (व्यवस्था) भी चार दिन सही - सलामत नहीं चल सकता। अगर उस घर के दो मुखिया (Head) हो। और गहरी बात यह है कि कायनात का पूरा निज़ाम, ज़मीन की तहों से लेकर दूर - दूर के ग्रहों तक, एक हमागीर (विश्वव्यापी) क़ानून पर चल रहा है यह कायनात एक पल के लिए भी क़ायम नहीं रह सकती और न ही चल सकती है अगर इसकी अनगिनत अलग-अलग ताकतों और कायनात की बेहद और बेहिसाब चीज़ों के बीच सही तनासुब (अनुपात) और तवाजुन (संतुलन) और तालमेल और सहयोग न हो। और यह सब कुछ इसके बिना मुमकिन नहीं है कि कोई एक ज़बरदस्त ताक़त रखने वाली ज़ात मौजूद है जो इन अनगिनत चीजों को पूरे ताल - मेल के साथ चला रही है। और इसके साथ-साथ ही अनगिनत चीज़ों को एक-दूसरे का सहयोग करते रहने पर मजबूर भी कर रहा है। अब यह किस तरह समझा जा सकता है कि बहुत से ख़ुदाओं की हुकूमत में कायनात का क़ानून इस बाकायदगी के साथ चल सके? नज़्म (अनुशासन ) का पाया जाना ख़ुद ही यह लाज़िम करता है कि नज़्म को चलाने वाला एक अकेला है यह कायनात अरबों सालों से एक ही क़ानून पर चल रही है कभी ऐसा न हुआ कि इस कायनात के क़ानून में कोई तब्दीली आयी हो। ये कायनात ख़ुद इस बात की गवाही दे रही है कि इसको चलाने वाला सिर्फ़ एक ख़ुदा है दस-बीस नहीं, सिर्फ़ दो ही ख़ुदा इसको चलाने वाले होते तो यह कायनात कभी नहीं चल सकती थी। एक मामूली से स्कूल का प्रबंध तो दो हेड मास्टरों की हेड मास्टरी सहन नहीं कर सकता, एक देश तो दो हाकिमों को बर्दाश्त नहीं कर सकता, फ़िर भला इतनी बड़ी ज़मीन और आसमानों की सल्तनत दो ख़ुदाओं की खुदाई में कैसे चल सकती थी? अगर इस कायनात को बनाने वाले और चलाने वाले एक से ज्यादा ख़ुदा होते तो ज़मीन और आसमानों का निज़ाम बिगड़ जाता क्योंकि इस कायनात में हर ख़ुदा अपनी मर्ज़ी पूरी करने की कोशिश करता और दूसरे ख़ुदा से लड़ बैठता जैसा कि अल्लाह ने अपने आख़िरी पैग़ाम में कहा है कि :- *अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है, और कोई दूसरा ख़ुदा उसके साथ नहीं है। अगर ऐसा होता तो हर ख़ुदा अपनी पैदा की हुई चीज़ों को लेकर अलग हो जाता, और फ़िर वो एक दूसरे पर चढ़ दौड़ते।* 📓(क़ुरआन 23:91) आख़िर ये किस तरह मुमकिन था कि कायनात की अलग-अलग ताकतों और अलग-अलग हिस्सों के बनाने वाले और मालिक अलग-अलग ख़ुदा होते और फ़िर उनके बीच ऐसा भरपूर सहयोग होता जैसा कि हम इस कायनात के पूरे निज़ाम (व्यवस्था) की अनगिनत ताकतों और बेहद और बेहिसाब चीज़ों में, और अनगिनत तारों और सय्यारों (ग्रहों) में पा रहे हैं। करोड़ों-अरबों सालों से यह कायनात यूंही क़ायम चली आ रही है, लाखों साल से इस धरती पर पेड़-पौधे उग रहे हैं। जीव-जन्तु पैदा हो रहे हैं। और न जाने इस धरती पर कब से इंसान जी रहा है। कभी ऐसा न हुआ कि चांद ज़मीन पर गिर जाता या ज़मीन सूरज से टकरा जाती। कभी रात और दिन के हिसाब में अंतर न आया कभी हवा की जल से लड़ाई न हुई, कभी पानी ने मिट्टी का साथ देने से मना नहीं किया, कभी गर्मी ने आग से नाता न तोड़ा इस कायनात में निज़ाम की बकायदगी और निज़ाम के हिस्से में तालमेल इस बात की दलील है कि इस कायनात पर हुकूमत करने वाला एक ही ख़ुदा है उसी के हाथ में कायनात के सब इकतिदार है, अगर कायनात के इकतिदार और ताक़त कई ख़ुदाओं के बीच बटी हुई होती तो इन इकतिदार और ताक़त रखने वाले ख़ुदाओं में इख्तिलाफ का सामने आना यक़ीनी तौर पर ज़रूरी था। और ये इख्तिलाफ़ उनके बीच जंग और टकराव तक पहुंचे बिना न रह सकता था। फ़िर हर ख़ुदा अपने हिस्से की पैदा की हुई चीजों को लेकर अलग हो जाता, और फ़िर वह एक दूसरे पर चढ़ दौड़ते। यही बात कुरआन में कुछ इस तरह बयान हुई है कि:- *अगर अल्लाह के साथ दूसरे ख़ुदा भी होते, जैसा कि ये लोग कहते हैं, तो अर्श (सिंहासन) के मालिक के मक़ाम पर पहुंचने की ज़रूर कौशिश करते।* 📓(क़ुरआन 17:42) अगर कायनात में एक अल्लाह के अलावा दूसरे ख़ुदा भी होते तो सब आपस में लड़ जाते और पूरी कायनात की बागडोर अपने हाथ में लेने की कोशिश करते यानि अर्श (सिंहासन) के मालिक बनने की कोशिश करते। इसलिए कि कुछ हस्तियों का खुदाई में शरीक (Partner) होना सिर्फ़ दो ही सूरतों में हो सकता है। या तो वे सब अपनी-अपनी जगह मुस्तकिल ख़ुदा हो या उनमें से एक असल ख़ुदा हो और बाक़ी उसके बन्दे हो जिन्हें उसने कुछ खुदाई अधिकार दे रखे हो। पहली सूरत में ये किसी तरह मुमकिन न था कि ये सब आज़ाद और पूरा अधिकार रखने वाले ख़ुदा हमेशा हर मामले में एक-दूसरे के इरादे में तालमेल करके इस अथाह कायनात के इंतिजाम को इतने मुकम्मल तालमेल, यक्सानियत (समानता), और अनुपात और संतुलन के साथ चला सकते ज़रूरी था कि उन ख़ुदाओं के मंसूबों और इरादों में क़दम - क़दम पर टकराव होता और हर एक ख़ुदा अपनी खुदाई दूसरे ख़ुदाओं की मदद के बिना चलती न देख कर यह कोशिश करता की वह अकेला सारी कायनात का मालिक बन जाए। और इस वजह से उन ख़ुदाओं में आपस में ही जंग हो जाती। दूसरी सूरत कि उनमें से एक असल ख़ुदा हो और बाक़ी उसके बन्दे हो जिन्हें उसने कुछ खुदाई अधिकार दे रखे हो। इस सूरत में भी कायनात का बकायदागी के साथ चल पाना मुमकिन नहीं हैं क्यूंकि बन्दे का हौसला खुदाई अधिकार तो दूर, खुदाई के ज़रा से इमकान को भी सहन नहीं कर सकता। अगर कहीं किसी जानदार को ज़रा-सी खुदाई भी दे दी जाती तो वह फट पड़ता, कुछ पलों के लिए भी बंदा बनकर रहने पर राज़ी न होता और फौरन ही पूरी कायनात का ख़ुदा बन जाने की फ़िक्र शुरू कर देता। जैसे कि अल्लाह ने इस दुनिया में इंसान की आजमाइश के लिए इंसान को कुछ अधिकार दे रखे हैं। ताकि अल्लाह इंसान को आजमाएं कि ये दुनिया में मेरे हुक्म को मानेगा या मुझसे बगावत करके इस दुनिया मे अपना हुक्म चलाएगा आप दुनिया में ख़ुद ही देख सकते हैं कि इंसान दुनिया में ख़ुदा से बगावत कर चुका है। दुनिया में अपना हुक्म चला रहा है और बहुत से अक्ल के अंधे इंसान तो ख़ुदा का ही इंकार कर रहे हैं। जिस कायनात में गेंहू का एक दाना और घास का एक तिनका भी उस वक्त तक पैदा न होता हो, जब तक कि ज़मीन और आसमानों की सारी कुव्वते (ताकतें) मिल कर उसके लिए काम न करें, उसके बारे में सिर्फ़ एक इंतिहा दर्जे का जाहिल और कम अक्ल आदमी ही यह सोच सकता है कि उसका इंतेज़ाम एक से ज़्यादा ख़ुदा या पूरा या आधा अधिकार रखने वाले ख़ुदा चला रहे होंगे। वरना जिसने कुछ भी इस कायनात के निज़ाम को समझने की कोशिश की हो, वह तो इस नतीजे पर पहुंचे बिना नहीं रह सकता कि यहां खुदाई बिल्कुल एक ही की है और उसके साथ किसी दर्जे में भी किसी और के शरीक होने का बिल्कुल इम्कान नहीं हैं।

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