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Dinesh द डायरी

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शक मत मेहनत कर

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Dinesh द डायरी
Dinesh द डायरी
5/14/2025, 1:49:32 PM

उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या मेरी हर बात बे-असर ही रही नुक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं यही होता है ख़ानदान में क्या अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं हम ग़रीबों की आन-बान में क्या ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से आ गया था मिरे गुमान में क्या शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद नहीं नुक़सान तक दुकान में क्या ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़ तू नहाती है अब भी बान में क्या बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में आबले पड़ गए ज़बान में क्या ख़ामुशी कह रही है कान में क्या आ रहा है मिरे गुमान में क्या दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुत ख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या वो मिले तो ये पूछना है मुझे अब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या यूँ जो तकता है आसमान को तू कोई रहता है आसमान में क्या है नसीम-ए-बहार गर्द-आलूद ख़ाक उड़ती है उस मकान में क्या ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता एक ही शख़्स था जहान में क्या

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5/15/2025, 11:20:33 AM

बीते हुए लम्हों को सोचा तो बहुत रोया जब मैं तिरी बस्ती से गुज़रा तो बहुत रोया पत्थर जिसे कहते थे सब लोग ज़माने में कल रात न जाने क्यूँ रोया तो बहुत रोया बचपन का ज़माना भी क्या ख़ूब ज़माना था मिट्टी का खिलौना भी खोया तो बहुत रोया जो जंग के मैदाँ को इक खेल समझता था हारे हुए लश्कर को देखा तो बहुत रोया जो देख के हँसता था हम जैसे फ़क़ीरों को शोहरत की बुलंदी से उतरा तो बहुत रोया ठहरा था जहाँ आ कर इक क़ाफ़िला प्यासों का उस राह से जब गुज़रा दरिया तो बहुत रोया

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Dinesh द डायरी
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5/23/2025, 11:07:23 AM

जब जीवन स्वयं का है, तो आशाएँ दूसरों से क्यों? मार्ग स्वयं चुनें, अपेक्षाएँ नहीं कर्तव्य निभाएँ।"

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Dinesh द डायरी
Dinesh द डायरी
5/14/2025, 1:46:30 PM

हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही दिल के लुटने का सबब पूछो न सब के सामने नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही नफ़रतों के तीर खा कर दोस्तों के शहर में हम ने किस किस को पुकारा ये कहानी फिर सही क्या बताएँ प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में कौन जीता कौन हारा ये कहानी फिर सही

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Dinesh द डायरी
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5/15/2025, 11:16:37 AM

मोहब्बत के सफ़र में कोई भी रस्ता नहीं देता ज़मीं वाक़िफ़ नहीं बनती फ़लक साया नहीं देता ख़ुशी और दुख के मौसम सब के अपने अपने होते हैं किसी को अपने हिस्से का कोई लम्हा नहीं देता न जाने कौन होते हैं जो बाज़ू थाम लेते हैं मुसीबत में सहारा कोई भी अपना नहीं देता उदासी जिस के दिल में हो उसी की नींद उड़ती है किसी को अपनी आँखों से कोई सपना नहीं देता उठाना ख़ुद ही पड़ता है थका टूटा बदन 'फ़ख़री' कि जब तक साँस चलती है कोई कंधा नहीं देता

Dinesh द डायरी
Dinesh द डायरी
5/15/2025, 11:22:47 AM

बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है चलो माना कि शहनाई मोहब्बत की निशानी है मगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है बड़े बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैं ? कुएँ में छुप के क्यों आख़िर ये नेकी बैठ जाती है ? नक़ाब उलटे हुए गुलशन से वो जब भी गुज़रता है समझ के फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है सियासत नफ़रतों का ज़ख़्म भरने ही नहीं देती जहाँ भरने पे आता है तो मक्खी बैठ जाती है मैं दुश्मन ही सही आवाज़ दे मुझको मोहब्बत से सलीक़े से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती है

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Dinesh द डायरी
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5/28/2025, 5:33:39 AM
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Dinesh द डायरी
Dinesh द डायरी
5/24/2025, 10:33:46 AM

आदमी उलझा है तेल और नून में उसको मत उलझाइए क़ानून में तब समझ पाओगे तुम मेरा सफ़र छत पे नंगे पाँव चलना जून में डाल ने यूँ टूटकर बदला लिया जीभ फँस के कट गई दातून में सौ दफ़ा पढ़ लो नहीं लिक्खा है वो ढूँढते हैं आप जो मज़मून में तुमसे कब ईमान की उम्मीद थी ख़ुद-परस्ती है तुम्हारे ख़ून में जब तलक साँसें हैं उड़ता है विकास आदमी भी जिस्म के बैलून में

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Dinesh द डायरी
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5/15/2025, 11:18:54 AM

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता

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Dinesh द डायरी
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5/14/2025, 1:45:17 PM

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है कई झूटे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है न इतना शोर कर ज़ालिम हमारे टूट जाने पर कि गर्दिश में फ़लक से भी सितारा टूट जाता है तसल्ली देने वाले तो तसल्ली देते रहते हैं मगर वो क्या करे जिस का भरोसा टूट जाता है किसी से इश्क़ करते हो तो फिर ख़ामोश रहिएगा ज़रा सी ठेस से वर्ना ये शीशा टूट जाता है

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