
कुशवाहवंश /Kushwaha Linage
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About कुशवाहवंश /Kushwaha Linage
उत्पत्ति और वंश:- 🌾 पारंपरिक पेशा और सामाजिक स्थिति 🏰 ऐतिहासिक भूमिका 📍 भौगोलिक वितरण 🧘♂️ संस्कृति और धार्मिक विश्वास 📊 जनसंख्या और सामाजिक स्थिति 🏛️ आधुनिक युग में योगदान यदि आप कुशवाहा समाज के किसी विशेष पहलू, जैसे उपजातियाँ, प्रमुख व्यक्तित्व, या सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो कृपया हमारे चैनल को subscribe करें। जय श्री राम🙏🙏 धन्यवाद!!
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कुशवाह (चिनोरिया) समाज पर संक्षिप्त: चिनोरिया (Chinoriya) कुशवाहा: "चिनोरिया" शब्द से तात्पर्य संभवतः चिनौर या चिनोर क्षेत्र से है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में स्थित चिनोर (Chinor) नामक स्थान कुशवाहा समाज का एक प्रमुख केंद्र रहा है, और यहाँ के कुशवाह लोग अपने नाम के साथ "चिनोरिया" जोड़ते हैं। विशेषताएँ: चिनोरिया कुशवाह समाज ग्वालियर, मुरैना, भिंड जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में निवास करता है। यह समुदाय कृषि में दक्ष और सामाजिक रूप से संगठित है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कुशवाहा जाति की उत्पत्ति कुश (भगवान राम के पुत्र) से मानी जाती है, जिससे इन्हें क्षत्रिय मूल का वंशज भी माना जाता है। आधुनिक युग में, चिनोरिया कुशवाहा समाज ने शिक्षा, राजनीति, और व्यापार में भी काफी प्रगति की है। सामाजिक आंदोलन: कुशवाहा समाज में स्वाभिमान और क्षत्रिय पहचान को लेकर कई बार आंदोलन और सम्मेलन होते रहे हैं, जिनमें "चिनोरिया" समाज की भूमिका भी उल्लेखनीय रही है। अगर आप चिनोरिया कुशवाहा समाज का इतिहास, वंशावली, या किसी खास व्यक्ति, गांव या जागीर के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो कृपया और स्पष्ट करें। आपने विकल्प 1: "चिनोरिया कुशवाह समाज का इतिहास" चुना है। यहाँ इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी जा रही है: 🕰️ चिनोरिया कुशवाह (काछी) समाज का इतिहास: कुशवाहा समाज, जिसे कई क्षेत्रों में काछी, माली, या सैनी नाम से जाना जाता है, प्राचीन भारत की एक प्रमुख कृषक जाति रही है। चिनोरिया विशेषण का प्रयोग उन कुशवाहा लोगों के लिए होता है जिनकी उत्पत्ति मध्यप्रदेश के ग्वालियर ज़िले के चिनोर या आसपास के इलाकों से मानी जाती है। 📜 वंश परंपरा और मूल: इस समाज की वंशावली की उत्पत्ति भगवान राम के पुत्र "कुश" से मानी जाती है, इसलिए यह खुद को कुशवाहा कहता है। इतिहासकारों के एक वर्ग का मानना है कि यह जाति प्राचीन कच्छप वंशी क्षत्रिय रही है, जो समय के साथ कृषि कार्य में लग गई और बाद में "काछी" के नाम से जानी गई। 🏞️ चिनोर (ग्वालियर क्षेत्र) और चिनोरिया उपनाम: चिनोर (Chinor) ग्वालियर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक गाँव है जहाँ कुशवाह समाज की बड़ी आबादी है। यहाँ के कई कुशवाहा परिवारों ने अपने नाम में "चिनोरिया" जोड़ना शुरू किया, जिससे उनकी भौगोलिक और जातीय पहचान स्पष्ट हो सके। इसी क्षेत्र के कुशवाहों ने कई जागीरें संभालीं और सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों की स्थापना की। ⚔️ ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता संग्राम: चिनोरिया कुशवाह समाज ने 1857 की क्रांति और उसके बाद कई किसान आंदोलनों में भाग लिया। स्वतंत्रता संग्राम में भी कुछ स्थानीय नेताओं ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी, हालाँकि इस विषय में दस्तावेज़ सीमित हैं। 🧱 आधुनिक काल में योगदान: चिनोरिया कुशवाह समाज ने शिक्षा, व्यापार, राजनीति और सरकारी सेवाओं में तेज़ी से उन्नति की है। आज यह समाज OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) में आते हुए भी राजनीतिक रूप से सजग और संगठित है। समाज के भीतर संघठनात्मक एकता, विवाह प्रणाली, और धार्मिक परंपराएँ अभी भी मज़बूती से बनी हुई हैं। 🧬 चिनोरिया कुशवाह परिवारों की पारंपरिक वंशावली 🔰 1. वंश परंपरा की मूल मान्यता: कुशवाह समाज की वंशावली की शुरुआत भगवान राम के पुत्र "कुश" से मानी जाती है। इस कारण से समाज ने "कुशवाहा" उपनाम अपनाया, जिसका अर्थ है – "कुश का वंशज"। पारंपरिक दृष्टि से यह कच्छप वंशी क्षत्रिय या सूर्यवंशी क्षत्रिय माने जाते हैं। 🏡 3. चिनोर क्षेत्र के कुछ प्रमुख कुशवाह परिवार (परंपरागत जानकारी): कुंवर सिंह चिनोरिया परिवार – पुराने समय में स्थानीय स्तर पर ज़मींदार/जागीरदार भूमिका निभाई। बलराम सिंह कुशवाहा परिवार – समाज सुधार और पंचायत स्तर पर नेतृत्व किया। किशोर सिंह चिनोरिया परिवार – शिक्षा और धर्मस्थलों में योगदान। हरिप्रसाद कुशवाहा परिवार – आरक्षण, सामाजिक संगठन और राजनीतिक संघर्षों में सक्रिय। 📚 4. वंशावली रिकॉर्ड कैसे संचित किए जाते थे? पुराने ज़माने में समाज के पुरोहित या भाट-ब्राह्मण वंशावली लिखा करते थे। चिनोर व ग्वालियर क्षेत्र में ऐसे कई पंडे थे जो पीढ़ियों से कुशवाह परिवारों की कुलवंशों को संचित करते थे। शादी-विवाह के समय वंशावली देखी जाती थी जिससे सगोत्र विवाह न हो। *समाप्त* Next part- Follow and like share.

आप सभी एडमिन है और आशा करता हूँ कि इस चैनल के माध्यम से हम ज्यादा से ज्यादा कुशवंशी क्षत्रिय को जोड़कर एक मिसाल पेश करेंगे इस मेरा मानना है हम फालतू के भाषण और तर्क कुतर्क करके समय को खराब न करके इस पर चर्चा करेगें की बदलाब के साथ कौन कौन से अति आवश्यक है जिनको समय के साथ करना जरूरी है।आप सभी का तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद!

#हमारा_क्षत्रिय_इतिहास_हमारी_धरोहर #कछवाहा_राजवंश_और_विरासत जयपुर रियासत में सबसे ताकतवर ठिकानों में एक था चोमू ठिकाना और उसी से निकला था अजैराजपुरा ठिकाना। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में जिस बटालियन ने सबसे पहले ढाका में दस्तक दी वो थी फोर्थ गार्ड ,जिसके कमांडर थे अजयराजपुरा जागीर के कर्नल हिम्मत सिंह जो आगे चल के लेफ्टिनेंट जनरल बने। चोमू कछवाहा राजपूतों का ठिकाना था भारतीय सेना के प्रथम आईएमए देहरादून से पास आउट अधिकारी थे मेजर जनरल भगवती सिंह जो की अति संपन्न चोमू ठिकाने से आते थे ।उनके भाई लेफ्टिनेंट जनरल उमराव सिंह चीन के विरुद्ध पूर्वी मोर्चे पर कॉर्प को कमांड कर रहे थे ।भगवती सिंह के बेटे माधवेंद्र सिंह नेवी के चीफ हुए और इसी परिवार के मेजर आदित्य सिंह ग्यारह वर्ष पूर्व कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए। क्या आधुनिक लोक तंत्र का एक भी राजशाही परिवार है जिसने अपने बेटो को बॉर्डर पर भेज रखा हो ? Lt. Col. (later Lt Gen )Himmeth Singh (Clan Nathawat / Thikana Ajairajpura): CO 4 Guards (1st Rajput), the unit was awarded the Battle Honour for Akhaura & Theatre Honour for East Pakistan. 4 Guards was the first to reach Dacca & the last to leave. Pics: Farewell Parade, Outskirts of Dacca,somewhere in the then East Pakistan.