Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
January 26, 2025 at 12:22 PM
. सुरति (ध्यान) के संबंध में उपयोगी कथा एक सम्राट अपने बेटे को गुरु के पास भेजा- जाओ बेटा, ध्यान सीख आओ। मैं अब बूढ़ा हो गया हूं, बाप ने कहा- धन तो व्यर्थ है यह मैंने जिंदगी में जान लिया। मुझसे ज्यादा और कौन जानेगा? जितना धन मेरे पास है, देश में किसी के पास नहीं है। पद व्यर्थ है। और कौन जानेगा? मैं सम्राट हूं। मैं तुम्हें धन और पद ही नहीं देना चाहता, परमात्मा का ध्यान भी दिलवाना चाहता हूं मेरे जीते जी मैं देखना चाहता हूं कि मेरा बेटा ध्यान से जुड़ जाए। अदभुत बाप रहा होगा। जो बाप अपने बेटे को ध्यान से जोड़ना चाहे वही बाप है क्योंकि इससे बड़ी कोई संपदा बाप अपने बेटे को नहीं दे सकता। उस बाप ने अपने बेटे को ध्यान करने भेजा और कहा कि जल्दी करना, पूरी चेष्टा लगाना क्योंकि मैं बूढ़ा हूं। मैं तेरी आंख में ध्यान की झलक देख कर मरना चाहता हूं। जो उस देश का सबसे बड़ा सदगुरु था उसके पास भेजा। बेटा बड़ा हैरान हुआ क्योंकि वह सदगुरु असल में ध्यान सिखाने का काम ही नहीं करता था। वह तो तलवार चलाने की कला में सबसे ज्यादा निपुण व्यक्ति था। वह जरा हैरान हुआ कि यह आदमी तलवार चलाना सिखाता है, इसके पास मुझे ध्यान सीखने के लिए भेजा जा रहा है लेकिन पिताजी भेजते हैं, तो ठीक ही भेजते होंगे। जब वह गुरु के पास गया तो उसने कहा गुरु को कि मेरे पिताजी बूढ़े हैं और उन्होंने कहाः जल्दी से ध्यान सीख कर आ जाना। कितना समय लगेगा? गुरु ने कहा, समय की सीमा हो तो तू अभी लौट जा। क्योंकि यह बात कुछ ऐसी है, कभी क्षण में हो जाती है, कभी वर्षों लग जाते हैं। इसकी भविष्यवाणी नहीं हो सकती। यह सब तुझ पर निर्भर है कि तू कितना श्रम करेगा और धैर्य तो चाहिए होगा। अनंत धैर्य चाहिए होगा। तो या तो अभी लौट जा, या सब मुझ पर छोड़ दे। बीच का नहीं चलेगा। बाप ने कहा था, लौट कर तो आना ही मत, जब तक ध्यान सीख न ले। तो झुकना पड़ा गुरु के चरणों में। कहा ठीक है। गुरु ने कहा तो बस तू आश्रम में झाड़ू लगाने का काम शुरू कर। उसकी तो छाती बैठ गई। पहले तो यह आदमी तलवार चलाना सिखाता है, इसके पास ध्यान सिखाने भेजा है। कुछ साफ नहीं पता चल पा रहा कि मामला क्या है और अब यह कह रहा है, आश्रम में झाड़ू लगाना शुरू कर। सम्राट का बेटा! और झाड़ू लगाने से ध्यान कैसे आएगा? लेकिन अब बाप ने भेज दिया, समर्पण कर दिया उसने गुरु को, तो झाड़ू लगानी शुरू कर दी। झाड़ू लगा रहा था दूसरे दिन। और जैसे तुम लगाओगे झाड़ू सोए-सोए, हजार विचारों में खोए-खोए, ऐसा ही लग रहा था। गुरु पीछे से आया और एक लकड़ी की तलवार से उस पर अचानक हमला कर दिया। भारी चोट लगी। चौंक कर खड़ा हो गया कुछ नहीं सूझा कि यह मामला क्या है! उसने पूछा यह बात क्या है? आप होश में हैं? आपने मुझे मारा क्यों? गुरु ने कहा, यह तो अब रोज चलेगा। तुझे सावधानी बरतनी पड़ेगी। तू होश रख। यह तो कभी भी मौके बेमौके चलेगा। यह तो तेरे ध्यान का पाठ है। फिर कठिनाइयां शुरू हुईं। लेकिन उन्हीं कठिनाइयों से रास्ता बना। गुरु कब हमला कर दे, पता न चले। उसकी चाल भी ऐसी धीमी थी कि पैर की आवाज न हो। झाड़ू लगा रहा है युवक या खाना खा रहा है या किताब पढ़ रहा है, वह पीछे से आ जाए, इधर-उधर से आ जाए और हमला कर दे। चोट पर चोट पड़ने लगीं, घाव पर घाव होने लगे। लकड़ी की ही तलवार, मगर फिर भी, चोट तो लगती है। धीरे-धीरे होश सम्हालना ही पड़ा। और कोई उपाय न था। किताब भी पढ़ता रहे और खयाल भी रखे कि गुरु आता ही होगा। जस पनिहार धरे सिर गागर! झाड़ू लगा रहा है अब, मगर कब आ जाएं गुरुदेव, कुछ पता नहीं। तीन महीने में यह हालत हो गई कि कितने ही धीमे गुरु आए, वह झट मुड़ कर खड़ा हो जाए। तीन महीने में वह वक्त आ गया कि गुरु को चोट मारना मुश्किल हो गया । उसको कभी बेहोश पाना मुश्किल हो गया। एक दिन रात सोया ही था कि नींद में गुरु ने हमला कर दिया। वह तो उठ कर बैठ गया। उसने कहा, यह जरा जरूरत से ज्यादा हो गया। अब क्या मुझे सोने भी न दोगे? उसने कहा, अब यह दूसरा पाठ शुरू होता है। अब दिन में तो तू सध गया, अब रात में सधना है। लेकिन अब शिष्य को भी बात समझ में आने लगी थी। ये तीन महीने में तकलीफ तो बहुत हुई थी लेकिन तीन महीने में जो सीखा उसका सुख अपूर्व था। ऐसी शांति कभी जानी नहीं थी। ऐसा सन्नाटा! विचार तो कहां खो गए थे पता ही न चलता था। जैसे दीया जल जाए, अंधेरा खो जाता है ऐसे ही ध्यान जग जाए तो विचार खो जाते हैं। न वासना उठती थी, न चाह उठती थी, न चिंता उठती थी। जगह ही नहीं थी, सदा होश सधा था। तो अब समझ में तो आने लगा था कि गुरु जो कर रहा है, ठीक ही कर रहा है अब यह तो कह ही नहीं सकता था कि, मुझे न सताओ, मारो मत। खुश हो गया। https://whatsapp.com/channel/0029VaiuKol0lwgtdCVs4I3Z रात के हमले शुरू हो गए। वह बूढ़ा कब उठ आता रात में दो-चार, आठ-दस दफा! उसको नींद भी नहीं आती होगी। बूढ़ा आदमी, उसको नींद का कोई कारण भी न था। उस युवक तीन महीने बीतते-बीतते घावों से भर गया शरीर लेकिन बात फलित हो गई। तीन महीने पूरे होते-होते नींद में भी जैसे ही गुरु कदम रखे कमरे में कि वह आंख खोल दे। वह कहे कि बस महाराज, मैं जागा हुआ हूं। आप फालतू कष्ट न करें। तीन महीने पूरे होने पर गुरु एक दिन नकली तलवार फेंक कर असली तलवार ले आया। उस युवक ने कहाः आप अब मार ही डालोगे क्या? नकली तो ऐसा था कि चोट लगती थी, भर जाती थी। यह असली तलवार! गुरु ने कहाः अब तू जानता है कि नींद में भी घटना घट गई। अब तू नींद में भी जागा रहता है। इसी को कृष्ण ने कहा है- जब सब सो जाते हैं तब भी संयमी जागता है। इसका यह मतलब नहीं है कि वह आंखें खोले पड़ा रहता है। आंख लगी रहती है, शरीर सोया रहता है फिर भी भीतर कोई जागता है। भीतर एक जागरण सतत बना रहता है। गुरु ने कहा- अब तू घबरा मत और उसे बात जंचने भी लगी थी। अब इन तीन महीनों में जो घटा था वह तो इतना गहरा था कि उसके सपने तक खो गए थे। विचार खो गए, सन्नाटा ही सन्नाटा था। रात और दिन एक अपूर्व शून्यता भीतर जग रही थी। उस शून्यता का आनंद फलने लगा था। पहले तीन महीनों में शांति मिली थी, इन दूसरे तीन महीनों में आनंद की पहली झलक मिलनी शुरू हो गई थी। झोंका आ जाता था आनंद का, जैसे वसंत आ गया। फूल खिल जाते थे। असली तलवार! अब तो जागना और भी सजगता से हो गया। तीन महीने गुरु ने असली तलवार लेकर उसका पीछा किया, लेकिन एक बार भी चोट करने का मौका नहीं मिला। तीन महीने पूरे हो जाने पर--एक दिन गुरु वृक्ष के नीचे बैठा किताब पढ़ रहा था। उस युवक को खयाल आया कि यह बूढ़ा मुझे नौ महीने से सता रहा है इसका नतीजा अच्छा ही हुआ है इसमें कोई शक-शुबहा नहीं है। जो नौ महीने में मिला है, नौ जन्मों में भी नहीं मिलता। लेकिन यह मुझे इतना सताता है, कभी मैं भी तो इस पर हमला करके देखूं, यह भी इतने होश में है या नहीं? झाड़ू लगाते हुए ऐसा सोच ही रहा था कि उस बढ़े ने कहा कि सुन, मैं बूढ़ा आदमी हूं, ऐसा करना मत। वह तो एकदम चौंक गया। उसने कहा कि मैंने तो कुछ किया ही नहीं। उसने कहाः तूने सोचा, इतना काफी है। तू मेरे पैर की आवाज सुनने लगा है नींद में, मेरा कमरे में प्रवेश करना तुझे पता चल जाता है। एक दिन तेरे जीवन में भी ऐसी घड़ी आएगी कि विचार का प्रवेश हुआ और उसकी भी तुझे आवाज सुनाई पड़ जाएगी। तेरे भीतर विचार आया, बस इतना काफी है। अब तुझे मुझ बूढ़े आदमी पर हमला करने की कोई जरूरत नहीं है। युवक गुरु के चरणों में गिर पड़ा। ध्यान की अंतिम घड़ी वही है। वही समाधि है। उस दिन उसके जीवन में पहली दफा समाधि का अनुभव हुआ। जस पनिहारिन धरे सिर गागर, सुरति न टरे बतरावत सबसे।। तुम भी ऐसे चलो, ऐसे उठो, ऐसे बैठो कि होश सधा हुआ रहे और जरूरी नहीं है कि तुम्हारे पीछे भी कोई तलवार लेकर पड़े। मौत तो पड़ी ही हुई है तुम्हारे पीछे.. तलवार लेकर। क्या इतना काफी नहीं है? जरा उसका ही ख्याल कर लिया करो फिर होश सधने लग जाएगा। जिसको मौत की याद साफ होने लगे वह आदमी होश से भर जाता है। अगर आप को कहानी अच्छी लगे तो उसे आगे ज़रूर भेजें, किसी का भला हो सकता है... धन्यवाद। 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ऐसी ही और अच्छी पोस्ट के लिए kutumb ऐप और वॉट्सएप चैनल पर god's love (प्रभु प्रेम) सनातन ग्रुप से जुड़ने के लिए लिंक को टच करें और ग्रुप ज्वाइन करें "god's love" kutumb link👇🏻 https://rb.gy/m8ys0u whatsapp channel link👇🏻 https://whatsapp.com/channel/0029vaiukol0lwgtdcvs4i3z telegram join link👇🏻 https://t.me/godsgreats ० god is love ग्रुप धार्मिक, भावनात्मक व प्रेरणादायक पोस्टों से संबंधित है। आप सभी का दिन शुभ हो 🙏🏻😊
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