Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
January 30, 2025 at 02:26 PM
. सांझी पीड़ा
चेन्नई में कॉलेज का अंतिम साल था तीनों दिन लगातार पेपर थे प्रज्ञा को पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ न सूझता था....... पिता को वादा किया था कॉलेज में टॉप करने का.....
पर विधि का लिखा.... प्रज्ञा को खबर मिली के पिता कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते वीरगति को प्राप्त हुए.......
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प्रज्ञा ने पिता के अंतिम दर्शन के स्थान पर उनसे किया वादा पूरा कर उन्हें श्रद्धाजंलि देने का निर्णय लिया..... वो कार्य पूरा करने का जिसके लिए बिहार से पिता ने उसे सुदूर दक्षिण के चेन्नई भेजा था..... प्रज्ञा रोई नहीं बस अपना कमरा बंद कर किताबें खोल कल होने वाली परीक्षा की तैयारी करने लगी......
सुबह के तीन बज चुके थे प्रज्ञा ने अपना लेपटॉप खोला और अपने ईमेल पर एक छोटी सी ईमेल टाइप की....
"में नहीं रोई पापा, में आपसे किया हर वादा पूरा करूंगी...... आज का एग्जाम बस चंद घंटे बाद है.... आपका आशिर्वाद हमेशा साथ है ही"
प्रज्ञा ने मेल सेंड कर दी.....
फिर ये हर रोज का सिलसिला बन गया..प्रज्ञा हर रात अपने पापा को एक मेल लिखती अपनी खुशी.. अपने दुख.. अपनी रोज की दिनचर्या सब लिखती......
चार साल बीत गए प्रज्ञा जिंदगी सफलताओं को चूमती गयी...... पर हृदय से वो टीस न गयी पिता के अंतिम दर्शन न कर पाने की टीस, पिता की मिट्टी से लिपट कर न रो पाने की टीस...... वो सारा रुदन, वो आँसू उसके हृदय में जमा थे........ कल पिता की पुण्यतिथि है, .....
प्रज्ञा ने अपनी ईमेल खोली और लिखने बैठ गयी......!
"कल का दिन फिर मुश्किल से गुज़रने वाला होगा, मैं तब वहां क्यों नहीं थी, जब मुझे वहां होना चाहिए था..... मैं खुद को कभी क्षमा नहीं कर पाऊंगी....."
सुबह प्रज्ञा ने अपना लैपटॉप खोला, मेल खोलते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं, उसके मुंह से आवाज न निकली वो मौन एकटक लैपटॉप की स्क्रीन को देखे जा रही थी.....
आज पिता की मृत्यु के चार साल बाद उनका रिप्लाई आया था....... प्रज्ञा की मेल पर....
प्रज्ञा ने बार बार पिता की ईमेल को देखा, उसने एक एक अक्षर को पढ़ा..... ये पिता की ही ईमेल थी...... प्रज्ञा ने काँपती उंगलियों से मेल पर क्लिक किया......
प्यारी बेटी......
मैं जब तुम्हारे पिता की जगह नियुक्त हुआ था मैंने एक दुर्घटना में अपनी जवान बेटी को बस कुछ दिन पहले ही खोया था..... तुम्हारे पिता जिस कंप्यूटर पर बैठते थे उस पर उनका निजी ईमेल खुला हुआ था... मैं लॉगआउट करना चाहता था पर तुम्हारा ईमेल दिख गया..... फिर हर रोज घर से तय कर निकलता के तुम्हारे पिता का मेल आज लॉगआउट करूँगा.... पर तुम्हारे मेल पढ़ने का लालच मुझे वो न करने देता..... चार साल में कई बार तुम्हे रिप्लाई का सोचा पर न में तुम्हारा दिल तोड़ पाया, न अपने जीने का सहारा छोड़ पाने का लालच.... तुम्हारे हर मेल में मुझे मेरी बेटी दिखती रही.....
पर आज ये स्वार्थी पिता तुम्हें कह रहा है तुम रो लो प्रज्ञा..... क्योंकि तुम्हारा अपराध बोध तुम्हारे पिता को भी चैन न लेने देता होगा.....
अब रोज न सही, कभी कभी ही सही, मुझे मेल कर दिया करना...... ये एक पिता का अनुरोध है जो फिर अपनी बेटी को खोना नहीं चाहता!
प्रज्ञा का चार साल से रुका आंसुओं का बांध टूट चुका था....... कमरे के बाहर तक उसकी रुलाई गूंज रही थी!
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