Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
Sanatan Kahaniya (Daily Story, कहानी, Kahani )
February 2, 2025 at 03:46 PM
. अनमोल वचन जीवन बहुत छोटा है इसे गुस्सा, पछतावा, शिकायत और चिंता करने में बर्बाद न करें। हमेशा प्रसन्न और सकारात्मक रहें। हे परमात्मा मुझे अपने आप को भूलने में मदद करें, दया करें कि मैं सारी शिकायतों और दुनियावी संघर्ष से मुक्त हो जाऊँ। मैं पूरी तरह से तेरे प्रति निस्वार्थ भक्ति में खो जाऊं, मुझे तुच्छता और दूसरों से स्वयं की तुलना करने की आदत से बचाएँ। हे चिर मार्गदर्शक प्रभु, मुझे दिव्य प्रेम और आत्म बलिदान की सच्ची भावना से भर दें। हम और तुम एक हो गये हैं, यह प्रवाह सतत मेरे हृदय से प्रवाहित होता रहे, जीवन में तभी सुख आता है, जब हम प्राप्त की हुई चीजों के साथ जीना सीख लेते हैं। जेहि विधि नाथ होई हित मोरा। करहु सो वेगि दास मैं तोरा।। खुद पर भरोसा करने का हुनर सीख लो, सहारे कितने भी सच्चे हों, एक दिन साथ छोड़ ही जाते हैं। संभलना सीख लीजिये, गिराने वाले एक रोज़ नहीं, हर रोज़ मिला करते हैं। संसार की प्रत्येक घटना से स्वयं को शिक्षित करने का प्रयास करें। विनम्रता का अर्थ समर्पण नहीं है, यह तो अपनों से रिश्तों को बरकरार रखने का एक प्रभावशाली अस्त्र है। बचपन और बुढ़ापा दोनों एक जैसे होते हैं दोनों को जवानी के सहारे की सख़्त ज़रूरत होती है। खुशी के फूल उन्हीं की झोली में गिरते हैं जो अपनों से, अपनों की तरह मिलते हैं। आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु हैं। मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उस का परिश्रम ही होता है जो सदैव उसके साथ रहता है, इसलिए परिश्रम करने वाला व्यक्ति कभी भी दुखी नहीं रहता। सिवाय हमारे विचारों के, हमें कोई और नहीं बांधता। सिवाय हमारे डर के हमें कोई और नहीं रोकता। सब कुछ हमारे अंदर ही है आज से हम डर पर काबू पायें और विचारों को श्रेष्ठ बनायें। व्यक्ति क्या है ये महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन व्यक्ति में क्या है ये बहुत ही महत्वपूर्ण है। भगवान कहते हैं तुम धोखा खा लेना पर किसी को धोखा मत देना क्योंकि धोखा खाने वाला एक दिन संभल जाता है पर धोखा देने वाला एक दिन सब कुछ खो देता है । https://whatsapp.com/channel/0029VaiuKol0lwgtdCVs4I3Z सत्य के आश्रित बनें, हमारी जिह्वा में सत्यता हो, चेहरे पर प्रसन्नता हो और हृदय में पवित्रता हो, तो इससे बढ़ कर सुखद एवं श्रेष्ठ जीवन और नहीं हो सकता। असत्य हमें भीतर से कमजोर बना देता है, असत्य भाषित करने वालों का आत्मबल भी बड़ा कमजोर होता है। जो लोग अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं वही सबसे अधिक असत्य का भाषण भी करते हैं। हमें सत्य का आश्रय लेकर एक जिम्मेदार व्यक्ति बनने का सतत प्रयास करना चाहिए। उदासी में किये गये प्रत्येक कर्म में पूर्णता का अभाव पाया जाता है इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि प्रत्येक कर्म को प्रसन्नता के साथ किया जाए, निष्कपट निर्दोष और निरवैर भाव ही हृदय की पवित्रता है। यदि जीवन में कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है तो वह हमारे हृदय की पवित्रता है, पवित्र हृदय से किये गये कार्य भी पवित्र ही होते हैं जिनका हृदय पवित्र होता है उनके कार्य और जीवन दोनों ही पवित्र होते हैं । जीना भी सीखिए:- आनन्द साधन से नहीं साधना से प्राप्त होता है। आंनद तो भीतर का विषय है तृप्ति बाहर का। आंनद आत्मा का विषय है। मन को कितना भी मिल जाए यह बार बार अपूर्णता का अनुभव कराता ही रहेगा। जो अपने भीतर तृप्त हो गया उसे बाहर के अभाव कभी परेशान नहीं करते। केवल मानव जन्म मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु हमें जीवन जीने की कला भी आनी आवश्यक है। पशु पक्षी तो बिल्कुल भी संग्रह नहीं करते, फिर भी उन्हें इस प्रकृति द्वारा जीवनोपयोगी सब कुछ प्राप्त हो जाता है। जीवन तो बड़ा आनंदमय है लेकिन हम अपनी इच्छाओं व वासनाओं के कारण इसे कष्टप्रद और क्लेशमय बनाते हैं। केवल संग्रह के लिए जीने की प्रवृत्ति ही जीवन को कष्टमय बनाती है जिसे इच्छाओं को छोड़ कर आवश्यकताओं में जीना आ गया समझो उसे सुखमय जीवन का सूत्र भी समझ आ गया । समय को सार्थक करें:- हमारे पूरे जीवन भर की कमाई भी समय के एक क्षण को नहीं खरीद पायेगी, इसलिए समय का दुरुपयोग करने से सदैव बचना चाहिए। समय निरंतर गतिशील एवं परिवर्तनशील है प्रतिक्षण घट रहा है यह आज है कल नहीं और अभी है फिर नहीं। समय मूल्यवान और बहुमूल्य नहीं वह तो अमूल्य है इसलिए जीवन में व्यस्तता अवश्य होनी चाहिए पर वह सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्यों में हो तभी समय का सदुपयोग समझा जाना चाहिए। समय किसी के साथ नहीं चलता हमें ही इसके साथ चलना पड़ेगा। समय का सदुपयोग, बुद्धिमत्ता है और समय का दुरुपयोग बहुत बड़ी बुद्धिहीनता है इसलिए समय के महत्व को विशेष रूप से समझते हुए अपने जीवन को निरंतर सद्कार्यों में, शुभ कार्यों में एवं श्रेष्ठ कार्यों में लगाया जाये ताकि आपका यह मानव जीवन सफल हो सके । सत्संगति है सूप ज्यों त्यागै फटकि असार कहैं कबीर गुरु नाम ले परसै नहीं विकार कबीर जी अच्छी संगति को सूप के ही समान बताते हुए कहते हैं कि जैसे सूप फटक कर असार भूसा का त्याग कर देता है, गुरु ज्ञान की संगति, समस्त बुराइयाँ बाहर कर देती है, सदा उत्तम संगत रखें। हम श्रेष्ठ रहें उत्कृष्ट बनें। हम जप, तप, योग, ध्यान से हर पल स्वस्थ रहें हम, मस्त रहें हम। यदि कोई व्यक्ति ज्ञानवान होकर भी तदनुसार ज्ञान का उपयोग नहीं करता है तो उसकी स्थिति एक पंगु, चलने फिरने में असमर्थ व्यक्ति के समान होती है वह न तो उस ज्ञान से थोड़ा भी लाभ ले सकता है और न ही उस विषय में कोई उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। उपयोग ज्ञान का कर लें हम जीवन में सब सुख भर लें हम साधन आराधन भरे विपुल इस भव सागर से तर लें हम सहनशीलता सबसे बड़ा गुण है अपने लिए सख्त रहें, लेकिन दूसरों की कमियों और दोषों के प्रति सहनशील रहें। भोजन का व्रत तभी सहज और कारगर है जब विचार, व्यवहार, वाणी का उपवास हो। कितनी खूबसूरत बात है ना... कि ईश्वर ने हमें चुना है एक और दिन देखने के लिए, और हम इसे कितने हल्के में लेते हैं। बहुत से लोग हैं जिन्होंने आज की सुबह नहीं देखी। इन बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू करना है, तब हम समझ पाएंगे कि जो कुछ हमारे पास नहीं है उससे ज्यादा हमारे पास है। ईश्वर कोई उपलब्धि या सिद्धि नहीं, बस खुद के हमेशा होने का अहसास है। मित्रता एवं रिश्तेदारी सम्मान की नही, भाव की भूखी होती है बशर्तें लगाव दिल से होना चाहिए, दिमाग से नही। ये सत्य है कि भीड़ में सभी अच्छे लोग नहीं होते लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि अच्छे लोगों की भीड़ नहीं होती। दुनिया की सब से असरदार दवा है ज़िम्मेदारी। जो ज़िन्दगी में थकान नहीं होने देती। संस्कार ही अपराध खत्म कर सकते हैं सरकारें नहीं और यह किसी दुकान में नहीं, परिवार के बुजुर्गों से ही मिलते हैं। ज़िन्दगी उसी की मस्त है जो स्वयं के कार्य में व्यस्त है, परेशान वही है... जो दूसरों की खुशियों से है त्रस्त। क्या खूब कहा है किसी ने बस उम्र बीत रही है दिन ब दिन ख्वाहिशें बाकी है शिकायतें बाकी है । आत्म मंथन :- अगर हम बेचैन होने के बजाय शान्त रहे, तो आनन्द जरुर आता है जैसे गन्दे जल को हिलाने से जल और भी गन्दा हो जाता है, जब कि शान्त छोड़ दे तो गन्दगी अपने आप अलग हो जाती है। उड़ान को हमने जोड़ लिया आत्म सम्मान से अब टकरा सकते है किसी भी आँधी या तुफान से बस टकराकर टुटना और रुकना नही, तभी सफलता है जीवन मे। कुछ लोग मुस्कराते ही अच्छे लगते हैं जैसे आप, किसी को देखना हैं उनके मुस्कराते चेहरे को देखिये। मन को सिखाना है तो कुशल व्यवहार और आपसी प्यार सिखाइये क्योंकि मन ही प्रेम बांटता है सुख बांटता है।अगर मन को ईर्ष्या सिखाएंगे तो वह दूसरे की कमजोरी देखकर बैर करेगा। जिन्हे आप अच्छा मान कर विश्वास करते हैं उन पर भरोसा करते हैं और वो भी आप के अच्छे विचार से सहमत रहते हैं। उनके प्रति प्रश्न चिन्ह कदापि ना लगाएं, उन पर ही विश्वास करें, क्योंकि अब उनसे अच्छा आपको कोई नहीं मिलेगा। आपके मन मे अगर दूसरों को दुःखी देखने की चाहत होती है तो समझिये आप सुख से दूर हो रहे हैं। अच्छा बनना और अच्छा होना दोनों में ज़मीन और आसमान का फ़र्क है। लोग अच्छा बनने के लिए न जाने कितने अच्छे लोगों की ज़िन्दगी से खेल जाते हैं और जो अच्छे होते है वो हज़ारों की ज़िन्दगियाँ बना जाते हैं। पसंददीदा रिश्तों को हमेशा संभाल कर रखें। अगर ये खो गए तो गूगल भी ढूंढ नहीं पाएगा। उनके लिये सवेरे नहीं होते जो जिन्दगी मे कुछ भी पाने की उम्मीद छोड चुके हैं। उजाला तो उनका होता है जो बार बार हारने के बाद कुछ पाने की उम्मीद रखे हैं। हमेशा संभल कर रहें क्योंकि सिक्के के ही नहीं इंसान के भी दो पहलू होते हैं। मौत लिखी ना हो तो मौत ख़ुद ज़िन्दगी की हिफाज़त करती है और जब मौत मुक़द्दर में लिखी हो तो ज़िन्दगी ख़ुद मौत से जाकर लिपट जाती है । जैसे उबलते पानी में कभी परछाई नहीं दिखती ठीक उसी प्रकार परेशान मन से समाधान नहीं मिलते, शान्त रहिए सभी समस्याओं का हल मिल जायेगा। धर्म से अर्थ प्राप्त होता है धर्म से सुख का उदय होता है धर्म से ही मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है इस संसार में धर्म ही सार है। अतः शास्त्रोचित धर्म का पालन अवश्य करें। आप एक अच्छे इंसान कहलाते हैं जब परिस्थितियां आप के स्वभाव के अनुकूल होती हैं परंतु जब आप अपने स्वभाव को किसी भी परिस्थिति के अनुकूल बना लेते हैं तब आप एक उत्कृष्ट व्यक्ति कहलाते हैं। दूसरों की क्रियाओं को देखकर व्यर्थ परेशान न हों अपने ऊपर ध्यान देंवें । परमात्मा आपको अपने चरणों में नहीं ह्दय में बैठाना चाहता है, वह आप में वही आनन्द देखना चाहता है, वही अनुभूति देखना चाहता है, जिस का वह मूल स्रोत है। परमात्मा आप को वह स्वतंत्रता देना चाहता जो आप को किसी धर्म ने नही दी। माॅं के बिना घर अधूरा है और पापा के बिना जिंदगी ऊपर उठने के लिए किसी डिग्री की ज़रूरत नहीं अच्छे शब्द ही इंसान को बादशाह बना देतें हैं। दूसरों पर क्रोध करना भी अच्छा नहीं है। आप के क्रोध से दूसरा व्यक्ति दुखी हो या न हो, कम से कम पहले आप तो दुखी होंगे ही, इसलिए स्वयं दुखी होना और दिन भर दुखी होते रहना फिर दूसरों का भी मन दुखाते रहना यह सभ्यता नहीं है। आप 100% दूसरों की इच्छा और बुद्धि के अनुसार नहीं जी सकते, ऐसे ही दूसरे लोग भी 100% आपकी इच्छा और बुद्धि के अनुसार काम नहीं करेंगे। आप अपनी इच्छा और अपनी बुद्धि से काम करते हैं ऐसे ही सभी को अधिकार है अपनी इच्छा और अपनी बुद्धि से जीने का। कामयाब होने के लिये मेहनत पर यकीन करना होगा, किस्मत तो जुए में आजमाई जाती है। क्या फर्क पड़ता है कि असल जिंदगी में हम कैसे हैं जिसने जैसी सोच बना ली उसके लिए हम वैसे हैं। जीवन किसी से बंधा नहीं है, बंधी होती है भावनाएं आशाएं उम्मीदें और विश्वास। दूसरों से तुलना करने के बजाय खुद की तुलना अपने बीते हुए कल से करें। आप खुश रहें स्वस्थ रहें सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहें... इसी कामना के साथ... मन के अनुकूल हो तो हरि कृपा और मन के विपरीत हो तो हरि इच्छा इस तथ्य को धारण कर लें तो जीवन में आनंद ही आनंद है । 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ऐसी ही और पोस्ट के लिए Kutumb ऐप और वॉट्सएप चैनल पर God's Love (प्रभु प्रेम) सनातन ग्रुप से जुड़ने के लिए लिंक को टच करें और चैनल को फॉलो करें🙏 "GOD's LOVE" Kutumb Link👇🏻 https://rb.gy/m8ys0u WhatsApp Channel Link👇🏻 https://whatsapp.com/channel/0029VaiuKol0lwgtdCVs4I3Z Telegram Join Link👇🏻 https://t.me/Sanatan100 ० GOD is LOVE ग्रुप धार्मिक, भावनात्मक व प्रेरणादायक पोस्टों से संबंधित है। आप सभी का दिन शुभ हो 🙏🏻😊
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