Mufti Wasim Akram Razavi
January 20, 2025 at 05:03 AM
*बुज़ुर्गों की तन्हाई और आलिमे दीन की सआदत*
मैंने पिछले दिनों एक लेख पढ़ा था, जिसका सार कुछ इस प्रकार था कि एक बुज़ुर्ग व्यक्ति, जिसे उसकी औलाद ने अकेला छोड़ दिया था, रोज़ अखबार खरीदता था। हालांकि वह पढ़ता नहीं था, सिर्फ इसलिए कि इस बहाने कम से कम अखबार लाने वाले की आवाज़ सुन ले और उसके ज़रिए उसे कुछ अपनापन महसूस हो जाए। इस तरह तन्हाई की वहशत की कड़वाहट कुछ तो कम हो जाए।
आज मैं सोच रहा था कि इस दौर में अक्सर बुज़ुर्ग तन्हाई की कड़वाहट सह रहे हैं, चाहे उनकी जवानी किसी भी क्षेत्र से जुड़ी क्यों न रही हो। इन बुज़ुर्गों पर ध्यान देने और उनकी दिलजोई करने की ज़रूरत है।
लेकिन एक अमल करने वाला आलिमे दीन ऐसा होता है कि जब वह बुज़ुर्ग हो जाता है, तो लोगों की भीड़ उसकी तरफ पहले से ज़्यादा ध्यान देती है। उसे तन्हाई की वहशत का सामना नहीं करना पड़ता। यह अल्लाह पाक की तरफ से एक आलिमे दीन पर ख़ास इनायत है।
*✍️: मोहम्मद वसीम अकरम रज़वी*
टिटलागढ़, बलांगीर, ओडिशा
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