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January 21, 2025 at 03:44 PM
*फिटकरी*
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1-फिटकरी से जल स्वच्छ किया जाता है। दाड़ी बनाने के बाद गालों पर चर्म रोगों से बचाव हेतु मला जाता है। कट जाने या छिल जाने पर इसके चूर्ण को लगाया जाता है। घीकुमार और करैलों को फिटकरी के पानी से धोकर उसकी कटुता मिटाई जाती है। आँवले का मुरब्बा बनाने हेतु हरे आँवलों की अम्लता कम करने के लिए आंवलों में छेदकर फिटकरी के पानी में रात भर भिगो (डुबो) कर रखा जाता है ।
2-कच्ची फिटकरी को पानी में घोलकर कुल्ला करने से मुखपाक, गलग्रन्थि- प्रदाह, गले की खराश दूर हो जाती है।
3-कच्ची फिटकरी 4 रत्ती मधु के साथ दिन में 2-3 बार चाटने से ऊर्ध्वगामी और अधोगामी रक्तपित्त रुक जाता है।
4- फिटकरी भस्म 4 रत्ती, धुली हुई पीपल दो रत्ती को मधु से 24 घंटे में 2-3 बार चटाने से रक्तवमन, रवतातिसार, रवत प्रमेह रुक जाता है।
5- दो रत्ती फिटकरी को 5 तोला आकाश जल या परिश्रुत जल (जल को उबालकर छाने हुए) में घोलकर आँखों में सुबह-शाम 2-2 बूँद डालने से आँख आने का रोग दूर हो जाता है।
6- सर्प दंशित रोगी को बेहोश होने से पूर्व 3 माशा फिटकरी का चूर्ण गुनगुने पिघले हुए गोघृत में घोलकर 2-2 घन्टे के अन्तर अथवा बार-बार 5-6 बार पिलाने से सांप का विष उतर जाता है और रोगी बेहोश भी नहीं हो पाता है।
7- 1 तोला फिटकरी को 5 तोला जल में घोलकर उसका फोहा वृश्चिक दंश पर लगाने से और 2-2 बूँद आँखों में डालने से वृश्चिक दंश पीड़ा शान्त हो जाती है।
8- फिटकरी के महीन चूर्ण को खोपरे (नारियल) के तैल में मिलाकर चर्म रोगों पर लगाने से उनकी खुजली मिट जाती है और व्रण ठीक हो जाते हैं।
9- कच्ची फिटकरी को जल में घोलकर योनि में पिचकारी लगाने से योनि- स्राव रुक जाता है और योनि के व्रण नष्ट हो जाते हैं।
10- फिटकरी की भस्म को 4 रत्ती की मात्रा में चाटने से खाँसी और श्वास के वेग रुक जाते हैं। रक्तार्श का रक्त स्त्राव, रक्त प्रदर, रक्त प्रमेह, सुजाक, श्वेत प्रदर, योनि स्राव इसके सेवन से रुक जाते हैं और पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं। यह योग मलेरिया ज्वर में भी गुणकारी है।
11- फिटकरी की भस्म को दाँतों पर नित्य मलने से पायोरिया मिट जाती है। दाँतों और मसूढ़ों के रोग थमे रहते हैं तथा लगातार प्रयोग से पूर्णरूपेण ठीक हो जाते हैं और कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।
12- फिटकरी भस्म 4 रत्ती को दही के तोड़ या दूध के फाड़े हुए पानी से सेवन कराने से घन्टों या 2-3 दिनों का रुका हुआ मूत्र खुलकर होता है। यह प्रयोग मूत्रावरोध में तत्काल लाभप्रद है।
13- दाँत उखाड़ने के पश्चात् इसके घोल से कुल्ला करने से रक्तस्त्राव, सूजन और दर्द में तुरन्त लाभ होता है।
14- 1 या 2 प्रतिशत का फिटकरी घोल आंखों (आंख आने पर या दुखने पर) डालना लाभप्रद है।
15 फिटकरी का फूला सूक्ष्म पीसकर मलाई में मिलाकर -नेत्रों पर बांधना भी लाभप्रद है।
16- फिटकरी की खील 1 ग्राम शहद 8 ग्राम भली प्रकार मिलाकर काजल की भांति लगाना लाभप्रद है।
17- 1 ग्राम फिटकरी की खील का कपड़छन चूर्ण 30 मि.ली. वाष्पजल (उवाला हुआ जल) या गुलाबजल में मिलाकर नेत्रों में डालना अतिशय लाभकारी है।
18- कच्ची फिटकरी 1 ग्राम, उबाला हुआ जल 100 मि.ली. मिलाकर नेत्र स्त्राव में डालना अत्यधिक उपयोगी है।
19- अत्यावर्त्तव में फिटकरी भस्म, स्वर्णगैरिक, संग जराहत सभी समभाग मिश्री मिलाकर चूर्ण करके कपड़छन कर लें। 2-2 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार गुलाब जल (वाष्पित अर्क) से पिलायें। अतिशय लाभकारी है ।
20- श्वेत प्रदर में 2 प्रतिशत फिटकरी के घोल से योनि दूश (सफाई, धोना) तथा आधा-आधा ग्राम फिटकरी भस्म जल से सेवन करना अतीव गुणकारी है।
21- योनि संकोचनार्थ (तंग करने हेतु) फिटकरी के घोल से धोकर 1 फाया भिगोकर योनि के अन्दर रखें ।
22- फिटकरी भस्म 1-1 ग्राम जल से सुबह-शाम उपदंश रोग में खाना लाभप्रद है तथा उपदंश के घावों पर फिटकरी के घोल की पट्टी रखना भी लाभकारी है।
23- खुजली रोग में फिटकरी पीसकर सरसों के तैल मिलालें, साथ में कपूर भी डालें और फिर मालिश करें ।
24-दाद में फिटकरी टंकण, आमलासार गन्धक और कपूर मिलाकर लगाना अतिशय उपयोगी है।
25- कुकुरकास में फिटकरी भस्म 1 रत्ती, प्रवालपिष्टी आधी रत्ती, काकड़ासिंगी 2 रत्ती को मिलाकर मधु से चटाना उपयोगी है ।
26- शैय्या क्षत में 1 प्रतिशत घोल का लेप व व्रण बन्धन करना परम लाभप्रद है।
27- अतिसार और प्रवाहिका में दो ग्राम फिटकरी चूर्ण 500 मि.ली. दूध से सेवन करना अत्यन्त उपयोगी है।
28- शिरः शूल में फिटकरी भस्म 1 ग्राम तथा छोटी इलायची का चूर्ण 1 ग्राम गरम जल से सेवन करना लाभकारी है।
29- प्रतिश्याय में धतूरे के पत्ते के रस की भावना देकर फिटकरी की भस्म बनाकर 2-2 रत्ती की मात्रा में उष्ण जल से सेवन करना लाभप्रद है ।
30- विषम ज्वर और सामान्य ज्वर में आक दुग्ध की भावना देकर फिटकरी की भस्म बनाकर 2-2 रत्ती की मात्रा में. गरम जल से लेना उपयोगी है।
31- 2 प्रतिशत फिटकरी के घोल में रोगी को नंगा करके बिठाने से (गुदा के रास्ते) कांच निकलने के रोग में लाभ हो जाता है।
32- खूनी बबासीर में 1-1 ग्राम भस्म जल से सुबह-शाम जल से सेवन करें।
33- पूयमेह में फिटकरी की भस्म तथा स्वर्ण गैरिक मिलाकर डेढ़-डेढ़ ग्राम की मात्रा में जल से सेवन करना लाभप्रद है।
34- उदरशूल में 1 ग्राम फिटकरी मट्ठा या शरबत से लेना उपयोगी है।
35- पान्डु और कामला रोग में फिटकरी भस्म 4-4 रत्ती मट्ठा या दही के तोड़ के साथ सेवन करना अतिशय लाभकारी है।
36- निमोनिया में फिटकरी भस्म और टंकण भस्म मिलाकर मिश्री मिलाकर गरम जल से सेवन कराना उपयोगी है।
37- उरःक्षत में शुभा भस्म 4 रत्ती मक्खन के साथ सेवन करना लाभप्रद है।
38- रक्त वमन और खांसी में रक्त आने पर फिटकरी भस्म 1 ग्राम गाय या बकरी के दूध से सेवन करना लाभकारी है।
39- कासरोग में फिटकरी भस्म को गुड़ में मिलाकर चूसना लाभप्रद है। या बलगमी खाँसी में उष्ण जल से और सूखी खांसी में गुनगुने दूध से सेवन करना लाभप्रद है।
49- श्वेत कुष्ठ में 5 प्रतिशत फिटकरी का घोल का लेप करना और 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाना लाभप्रद है ।
41- विष सेवन कर लेने पर फिटकरी को 5 ग्राम की मात्रा में लेकर जल में घोलकर रोगी को पिलायें। इस योग से वमन बन्द हो जाती है।
42- विषैले कीट पतंग या जानवरों के डंक मारने या काट लेने पर पीड़ित स्थान पर फिटकरी का घोल लगाना लाभप्रद है।
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