
awgpofficial Shantikunj
February 15, 2025 at 11:40 PM
*‼ इतना तो व्यस्त और विवश होते हुए भी कर सकते हैं ‼*
*‼ शांतिकुंज ऋषि चिंतन ‼*
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🌞 *16 Febuary, 2025 Sunday* 🌞
🌻 *१६ फरवरी, २०२५ रविवार* 🌻
*!! फाल्गुन माह, कृष्ण पक्ष, चतुर्थी तिथि, संवत २०८१ !!*
‼ *सूर्योदय 7:00 AM, सूर्यास्त 6:02 PM* ‼
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🔸 *जिनके पास अभीष्ट योग्यता, भावना और सुविधा हो उन्हें इस आपत्तिकाल में मानवता की पुकार सुनकर आगे आना चाहिए और लोभ-मोह की कीचड़ में सड़ते रहने की अपेक्षा उस आदर्शवादी महानता का वरण करना चाहिए जिसे किसी समय इस देश के प्रत्येक नागरिक द्वारा सहज स्वभाव अपनाया जाता था। परिस्थितियाँ, मनोभूमि और प्रवाह प्रचलन बदल जाने से अब इस प्रकार के कदम बढ़ाना दुस्साहस जैसा प्रतीत होता है। किसी समय, जिसमें इतनी भी जीवट न हो, उसे मृतक तुल्य माना जाता था।*
🔹 *आज की परिस्थितियों में जो लोग वरिष्ठ अथवा क्लिष्ट वानप्रस्थ का मार्ग अपना सकेंगे विश्व मानव और विश्व-शान्ति के लिए अपना थोड़ा-बहुत भी योगदान दे सकेंगे वे बड़भागी माने जायेंगे। इस घोर अन्धकार में उन छोटे दीपकों का साहस भी भूरि-भूरि सराहने योग्य माना जायगा।*
*गायत्री मंत्र का अधिकार किसे है | Gayatri Mantra Ka Adhikaar Kise Hai | आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी*
https://youtu.be/scsOgPVQzA0?si=GzcWzHwfJl9RF-WR
🔷 *सम्भवतः इस आह्वान को प्रत्येक जीवित और जागृत आत्मा द्वारा सुनने योग्य माना जायगा। सम्भवतः बहुतों की आन्तरिक आकाँक्षा इस दिशा में कदम बढ़ाने की होगी भी किन्तु यह सम्भव है कि वे ऐसी विषम परिस्थितियों में जकड़े हुए हो कि व्यवहारतः कुछ अधिक कर सकना उनके लिए सम्भव न हो। विधि की विडम्बना विचित्र है। कुछ की परिस्थितियाँ बहुत कुछ करने योग्य होती हैं पर मन इतना गिरा मरा होता है कि आदर्शों की तरफ बढ़ने की इच्छा तक नहीं उठती। इसे विपरीत कुछ ऐसे भी होते है कि जिनका अन्तरात्मा महामानवों के चरण-चिन्हों पर चलते हुए कुछ कर गुजरने के लिए निरन्तर छटपटाता रहता है पर परिस्थितियाँ इतनी विपरीत होती हैं कि उन्हें लाँघ सकना किसी जिम्मेदार एवं कर्त्तव्य परायण व्यक्ति के लिए सम्भव ही नहीं होता वरन् उन्हें मन मसोस कर बैठना पड़ता है।*
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🔶 *मिशन के लिए भी वह सम्भव नहीं कि वानप्रस्थ कार्यकर्त्ताओं के घर परिवार का आर्थिक उत्तरदायित्व वहन कर सके। अधिक से अधिक इतना ही सम्भव है कि कार्यकर्त्ताओं के भोजन-वस्त्र की व्यवस्था जुटाई जाती रहे। ऐसी दशा में जिन्हें घर से बाहर जाकर कार्य-क्षेत्र में कूदने की सुविधा नहीं है उन्हें स्थानीय क्षेत्र में ही प्रकाश फल का प्रयत्न करना चाहिए। सक्रिय सदस्यों और कर्मठ कार्यकर्ताओं को भी सृजन-सेना के द्वितीय मोर्चे पर लड़ने वाले सैनिक माना जाता है। नियमित रूप से कुछ घण्टे अथवा समय दे सकने वाले और अपनी आजीविका का उपयुक्त अंश इस प्रयोजन के लिए लगाने वाले व्यक्ति भी अपने क्षेत्र में इतना काम कर सकते हैं जिसे अति-महत्वपूर्ण कह कर सराहा जा सके।*
*✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
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