JAINISM Channel (Jain Terapanth)
January 30, 2025 at 04:53 PM
*30 जनवरी*
*कब क्या हुआ!*
जाने तेरापंथ के इतिहास को
सन् 1936 के ब्यावर मर्यादा महोत्सव के निर्णय के आधार पर बड़े या छोटे संतो द्वारा मार्ग में आचार्य के मिलने पर बैठकर वंदना करने की परंपरा प्रारंभ हुई l
*मार्ग में बैठकर वन्दना करना*
आचार्य मार्ग में मिलते तो छोटे साधु उन्हें बैठ कर वन्दना करते। बड़े साधु बैठते नहीं थे, खड़े-खड़े ही हाथ जोड़ लेते। यह एक सामान्य संघीय विधि थी। आचार्यश्री तुलसी जब आचार्य बने तो उनकी उम्र छोटी थी। दीक्षा-पर्याय भी कम था। उनका पहला महोत्सव ब्यावर में हुआ। बड़े सन्तों ने मिलकर चिन्तन किया कि भले ही हमारे आचार्य छोटे हैं पर आचार्यों का बहुमान हमारा बहुमान है। हम खड़े-खड़े वन्दना करें, यह ठीक नहीं है। बड़े साधु भी बैठकर वन्दना करें तो अच्छा लगेगा। तब से यानी सन् 1936 (वि. सं. 1993) ब्यावर मर्यादा महोत्सव पर किये गये चिन्तन के आधार पर यह एक परम्परा बन गई कि आचार्य मार्ग में मिलें तो भले छोटा-बड़ा कोई भी साधु हो, वह यथासंभव बैठकर ही वन्दना करे।
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