awgpofficial
February 14, 2025 at 12:14 AM
*🥀 १४ फरवरी २०२५ शुक्रवार 🥀* *//फाल्गुन कृष्णपक्ष द्वितीया २०८१//* ➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ *‼ऋषि चिंतन‼* ➖➖➖➖‼️➖➖➖➖ 〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️ *➖स्वस्थ रहना चाहते हैं तो➖* *➖प्रकृति के अनुसार चलें➖* 〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️ 👉 *फैशनपरस्ती, कृत्रिमता, बनावट एवं प्रकृति विरुद्ध आहार-विहार ने मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घजीवन को छीना है ।* यह क्रम यदि न बदला, तो आगामी शताब्दी तक वैसे ही बौने, छोटे, अल्पजीवी मनुष्य रह जाएँगे जैसे कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकांड में कलियुग के अंत में होने वाले मनुष्यों के संबंध में भविष्यवाणी की है। *कुदरत के विरुद्ध आचरण करना मनुष्य के जीवन के मूल आधार को, स्वास्थ्य को चौपट करता जायेगा।* जब तक यह प्रवाह न रुकेगा, मानव जाति की बीमारी और वेदनाओं में किसी प्रकार की कमी न होगी वरन् बढ़ोत्तरी ही होती जायेगी। 👉 *इसलिये बीमारी और निर्बलता से सताये हुए, शारीरिक पीड़ाओं और असमर्थताओं में तड़पते हुए लोगों को एक बात "कान खोलकर" सुन लेनी चाहिए, सुनकर गिरह बाँध लेनी चाहिए कि प्रकृति के कानूनों को तोड़ने में नहीं वरन् पालन करने में ही उनका कल्याण है।* फैशन, कृत्रिमता और भौतिक विज्ञान की चमक-दमक का कौतुक कुछ मनोरंजन तो करा सकता है, पर जीवन के सच्चे आनंद में बढ़ोत्तरी नहीं कर सकता। *डॉक्टर की रंग-बिरंगी औषधियाँ निरोगता की वृद्धि में कुछ भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकी हैं और आगे भी कोई तरकीब कामयाब न होगी। प्रकृति माता से लड़कर नहीं, उसके आज्ञाकारी बालक बनकर ही हम उससे जीवनदान प्राप्त कर सकते हैं।* 👉 यह ठीक है कि मनुष्य समाज आज ऐसी परिस्थिति में आ गया है, कि प्रकृति, रहन-सहन, आहार-विहार के अनुसार पूर्ण रूप से आचरण करना शक्य नहीं है *परंतु यह भी ठीक है कि जितनी कृत्रिमता को झूठी फैशन, शेखी और चटोरपन के कारण बढ़ा लिया गया है, उसमें बहुत कुछ कमी की जा सकती है।* सात्विकता, स्वाभाविकता और आवश्यकता का ध्यान रखकर यदि जीवन क्रम चलाने की नीति को अपना लिया जाय, तो खान-पान और रहन-सहन के बहुत सारे आडंबर, जो आज फैशन और सभ्यता के आधार मालूम पड़ते हैं, तब व्यर्थ, निरर्थक और भार स्वरूप प्रतीत होंगे और उनका शीघ्र से शीघ्र परित्याग कर देने की इच्छा होगी। 👉 *कायाकल्प की इच्छा करने वालों ! स्वस्थ और निरोग जीवन की आकांक्षा करने वालों ! इस कृत्रिमतामय प्रकृति विरुद्ध आहार-विहार से मुँह मोड़ो और पीछे की ओर लौट चलो।* उसी मार्ग को अपनाओ, जिसे हमारे पूजनीय पूर्वजों ने अपनाया था। चलो, इन बनावटी और तड़क-भड़क की कृत्रिमताओं से पीछे की ओर लौट चलें। चलो ! *सादगी का, सरल और निर्दोष जीवन बिताएँ। चलो ! प्रकृति माता के चरणों में खड़े होकर अपनी भूल का प्रायश्चित करें और उससे स्वास्थ्य और जीवन का दूध माँगें दयालु माता हमें दूध पिलायेगी और उससे हमारा कल्याण हे जायेगा।* औचित्य, आवश्यकता और जीवन रक्षा को सामने रखक आहार-विहार का क्रम रखा जाय, तो बहुत सारी निरर्थक हानिकारक एवं अप्राकृतिक बात से सहज ही छुटकारा मिल सकता है। ➖➖➖➖🪴➖➖➖➖ *बिना औषधि के कायाकल्प पृष्ठ-१२* *🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴* ➖➖➖➖🪴➖➖➖➖ https://youtu.be/kPBxA0B4ZY4?si=Y-oHD4Hb81v218Rz
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