⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
February 10, 2025 at 02:30 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८१/माघ/शु./१३-१६९७२*
*┈┉══════❀((""ॐ""))❀══════┉┈*
*।। ॐ तत्सत् ।। ।। श्रीगणेशायः नमः ।।*
🚩 *श्रीमद्भागवतमहापुराणम्* 🚩
⛳ *तृतीय स्कन्धः* ⛳
⛳ *अथ सप्तविंशोऽध्यायः*⛳
🕉️🚩 *प्रकृति-पुरुष के विवेक से मोक्ष-प्राप्ति का वर्णन* 🚩🕉️
⛳ *श्लोक_१६ से २०* ⛳
🔆 *एवं प्रत्यवमृश्यासावात्मानं प्रतिपद्यते । साहङ्कारस्य द्रव्यस्य योऽवस्थानमनुग्रहः ।।१६।।*
👉 अर्थात् _माता जी ! इन सब बातों का मनन करके विवेकी पुरुष अपने आत्मा का अनुभव कर लेता है, जो अहंकार के सहित सम्पूर्ण तत्त्वों का अधिष्ठान और प्रकाशक है ।।१६।।
🔆 *देवहूतिरुवाच*
*पुरुषं प्रकृतिर्ब्रह्मन्न विमुञ्चति कर्हिचित् । अन्योन्यापाश्रयत्वाच्च नित्यत्वादनयोः प्रभो ।।१७।।*
👉 अर्थात् _देवहूति ने पूछा- प्रभो ! पुरुष और प्रकृति दोनों ही नित्य और एक-दूसरे के आश्रय से रहने वाले हैं, इसलिये प्रकृति तो पुरुष को कभी छोड़ ही नहीं सकती ।।१७।।
🔆 *यथा गन्धस्य भूमेश्च न भावो व्यतिरेकतः । अपां रसस्य च यथा तथा बुद्धेः परस्य च ।।१८।।*
👉 अर्थात् _ब्रह्मन् ! जिस प्रकार गन्ध और पृथ्वी तथा रस और जल की पृथक् पृथक् स्थिति नहीं हो सकती, उसी प्रकार पुरुष और प्रकृति भी एक-दूसरे को छोड़कर नहीं रह सकते ।।१८।।
🔆 *अकर्तुः कर्मबन्धोऽयं पुरुषस्य यदाश्रयः । गुणेषु सत्सु प्रकृतेः कैवल्यं तेष्वतः कथम् ।।१९।।*
👉 अर्थात् _अतः जिनके आश्रय से अकर्ता पुरुष को यह कर्मबन्धन प्राप्त हुआ है, उन प्रकृति के गुणों के रहते हुए उसे कैवल्य पद कैसे प्राप्त होगा? ।।१९।।
🔆 *क्वचित् तत्त्वावमर्शेन निवृत्तं भयमुल्बणम् । अनिवृत्तनिमित्तत्वात्पुनः प्रत्यवतिष्ठते ।।२०।।*
👉 अर्थात् _यदि तत्त्वों का विचार करने से कभी यह संसार बन्धन का तीव्र भय निवृत्त हो भी जाय, तो भी उसके निमित्त भूत प्राकृत गुणों का अभाव न होने से वह भय फिर उपस्थित हो सकता है ।।२०।।
🕉️ *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥* 🕉️
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अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।।
*महाकाल भगवान जी की जय*
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