⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
February 14, 2025 at 02:28 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈* *लेख क्र.-सधस/२०८१/फाल्गुन/कृ./२.-१७०११* *┈┉══════❀((""ॐ""))❀══════┉┈* ⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳ ************************************** 🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏 ************************ 🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞 🕉️ *षष्ठ सोपान* 🕉️ ☸️ *लङ्काकाण्ड*☸️ ⛳ *चौपाई १ से ८, दोहा ७६*⛳ *जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा ।* *आहुति देत रुधिर अरु भैंसा ॥* *कीन्ह कपिन्ह सब जग्य बिधंसा ।* *जब न उठइ तब करहिं प्रसंसा ॥* वानरों ने जाकर देखा कि वह बैठा हुआ खून और भैंसे की आहुति दे रहा है। वानरों ने सब यज्ञ विध्वंस कर दिया। फिर भी जब वह नहीं उठा, तब वे उसकी प्रशंसा करने लगे ॥ १ ॥ *तदपि न उठइ धरेन्हि कच जाई।* *लातन्हि हति हति चले लै त्रिसूल धावा कपि भागे।* *आए जहँ रामानुज पराई ॥* *आगे ॥* इतने पर भी वह न उठा, [तब] उन्होंने जाकर उसके बाल पकड़े और लातों से मार-मारकर वे भाग चले। वह त्रिशूल लेकर दौड़ा, तब वानर भागे और वहाँ आ गये जहाँ आगे लक्ष्मणजी खड़े थे ॥ २ ॥ *आवा परम क्रोध कर मारा।* *गर्ज घोर रव बारहिं बारा ॥* *कोपि मरुतसुत अंगद धाए।* *हति त्रिसूल उर धरनि गिराए ।* वह अत्यन्त क्रोध का मारा हुआ आया और बार-बार भयंकर शब्द करके गरजने लगा। मारुति (हनुमान्) और अंगद क्रोध करके दौड़े। उसने छाती में त्रिशूल मारकर दोनों को धरती पर गिरा दिया ॥ ३ ॥ *प्रभु कहँ छाँड़ेसि सूल प्रचंडा।* *सर हति कृत अनंत जुग खंडा ॥* *उठि बहोरि मारुति जुबराजा ।* *हतहिं कोपि तेहि घाउ न बाजा ॥* फिर उसने प्रभु श्रीलक्ष्मणजी पर प्रचण्ड त्रिशूल छोड़ा। अनन्त (श्रीलक्ष्मणजी) ने बाण मार कर उसके दो टुकड़े कर दिये। हनुमान् जी और युवराज अंगद फिर उठकर क्रोध करके उसे मारने लगे, पर उसे चोट न लगी ॥ ४ ॥ *फिरे बीर रिपु मरइ न मारा।* *तब धावा करि घोर चिकारा ॥* *आवत देखि क्रुद्ध जनु काला।* *लछिमन छाड़े बिसिख कराला ॥* शत्रु (मेघनाद) मारे नहीं मरता, यह देखकर जब वीर लौटे, तब वह घोर चिग्घाड़ करके दौड़ा। उसे क्रुद्ध काल की तरह आता देखकर लक्ष्मणजी ने भयानक बाण छोड़े ॥ ५॥ *देखेसि आवत पबि सम बाना।* *तुरत भयउ खल अंतरधाना ॥* *बिबिध बेष धरि करइ लराई।* *कबहुँक प्रगट कबहुँ दुरि जाई ॥* वज्र के समान बाणों को आते देखकर वह दुष्ट तुरंत अन्तर्धान हो गया और फिर भाँति-भाँति के रूप धारण करके युद्ध करने लगा। वह कभी प्रकट होता था और कभी छिप जाता था ॥ ६ ॥ *देखि अजय रिपु डरपे लछिमन मन अस मंत्र कीसा।* *परम क्रुद्ध तब भयउ अहीसा ॥* *दृढ़ावा। एहि पापिहि मैं बहुत खेलावा ॥* शत्रु को पराजित न होता देखकर वानर डरे। तब सर्पराज शेषजी (लक्ष्मणजी) बहुत ही क्रोधित हुए। लक्ष्मणजी ने मन में यह विचार दृढ़ किया कि इस पापी को मैं बहुत खेला चुका [अब और अधिक खेलाना अच्छा नहीं, अब तो इसे समाप्त ही कर देना चाहिये ।] ॥ ७ ॥ *सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा ।* *सर संधान कीन्ह करि दापा ॥* *छाड़ा बान माझ उर लागा।* *मरती बार कपटु सब त्यागा ॥८॥* कोसलपति श्रीरामजी के प्रताप का स्मरण करके लक्ष्मणजी ने वीरोचित दर्प करके बाण का सन्धान किया। बाण छोड़ते ही उसकी छाती के बीच में लगा। मरते समय उसने सब कपट त्याग दिया ॥ ८ ॥ *दोहा-७६* *रामानुज कहँ रामु कहँ अस कहि छाँड़ेसि प्रान।* *धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान ॥ ७६ ॥* राम के छोटे भाई लक्ष्मण कहाँ हैं? राम कहाँ हैं? ऐसा कहकर उसने प्राण छोड़ दिये। अंगद और हनुमान् कहने लगे - तेरी माता धन्य है, धन्य है, [जो तू लक्ष्मणजी के हाथों मरा और मरते समय श्रीराम लक्छमण के नामो का स्मरण किया। 🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏🚩⛳ *समिति के सभी संदेश नियमित पढ़ने हेतु निम्न व्हाट्सएप चैनल को फॉलो किजिए ॥🙏🚩⛳* https://whatsapp.com/channel/0029VaHUKkCHLHQSkqRYRH2a ▬▬▬▬▬▬๑⁂❋⁂๑▬▬▬▬▬▬ *जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें* वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः । बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ॥ *माता महालक्ष्मी देवी जी की जय* *⛳⚜सनातन धर्मरक्षक समिति⚜⛳*
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