⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
February 17, 2025 at 02:44 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८१/फाल्गुन/कृ./६.-१७०४१*
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⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳
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🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
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🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞
🕉️ *षष्ठ सोपान* 🕉️
☸️ *लङ्काकाण्ड*☸️
⛳ *चौपाई १ से ७, दोहा ७९*⛳
*चलेउ निसाचर कटकु अपारा।*
*चतुरंगिनी अनी बहु धारा ॥* *बिबिधि भाँति बाहन रथ जाना।*
*बिपुल बरन पताक ध्वज नाना ॥*
राक्षसों की अपार सेना चली। चतुरंगिणी सेना की बहुत-सी टुकड़ियाँ हैं। अनेकों प्रकार के वाहन, रथ और सवारियाँ हैं तथा बहुत-से रंगोंvकी अनेकों पताकाएँ और ध्वजाएँ हैं ॥ १ ॥
*चले मत्त गज जूथ घनेरे ।*
*प्राबिट जलद मरुत जनु प्रेरे ॥*
*बरन बरन बिरदैत निकाया।*
*समर सूर जानहिं बहु माया ॥*
मतवाले हाथियों के बहुत-से झुंड चले। मानो पवन से प्रेरित हुए वर्षा ऋतु के बादल हों। रंग-बिरंगे बाना धारण करनेवाले वीरों के समूह हैं, जो युद्ध में बड़े शूरवीर हैं और बहुत प्रकार की माया जानते हैं ॥ २ ॥
*अति बिचित्र बाहिनी बिराजी।*
*बीर बसंत सेन जनु साजी ॥*
*चलत कटक दिगसिंधुर डगहीं।*
*छुभित पयोधि कुधर डगमगहीं ॥*
अत्यन्त विचित्र फौज शोभित है। मानो वीर वसन्त ने सेना सजायी हो। सेना के चलने से दिशाओं के हाथी डिगने लगे, समुद्र क्षुभित हो गये और पर्वत डगमगाने लगे ॥ ३ ॥
*उठी रेनु रबि गयउ छपाई।*
*मरुत थकित बसुधा अकुलाई ॥*
*पनव निसान घोर रव बाजहिं ।*
*प्रलय समय के घन जनु गाजहिं ॥*
इतनी धूल उड़ी कि सूर्य छिप गये। [फिर सहसा] पवन रुक गया और पृथ्वी अकुला उठी। ढोल और नगाड़े भीषण ध्वनि से बज रहे हैं; जैसे प्रलयकाल के बादल गरज रहे हों ॥ ४ ॥
*भेरि नफीरि बाज सहनाई।*
*मारू राग सुभट सुखदाई ॥* *केहरि नाद बीर सब करहीं।* *निज निज बल पौरुष उच्चरहीं ॥*
भेरी, नफीरी (तुरही) और शहनाई में योद्धाओं को सुख देनेवाला मारू राग बज रहा है। सब वीर सिंहनाद करते हैं और अपने-अपने बल पौरुष का बखान कर रहे हैं ॥ ५ ॥
*कहइ दसानन सुनहु सुभट्टा ।*
*मर्दहु भालु कपिन्ह के ठट्टा ॥*
*हौं मारिहउँ भूप द्वौ भाई।*
*अस कहि सन्मुख फौज रेंगाई ॥*
रावण ने कहा- हे उत्तम योद्धाओ ! सुनो। तुम रीछ वानरों के ठट्टको मसल डालो। और मैं दोनों राजकुमार भाइयों को मारूँगा। ऐसा कहकर उसने अपनी सेना सामने चलायी ॥ ६ ॥
*यह सुधि सकल कपिन्ह जब पाई।*
*धाए करि रघुबीर दोहाई ॥*
*जब सब वानरों ने यह खबर पायी,*
*तब वे श्रीरघुवीर की दुहाई देते हुए दौड़े ॥ ७॥*
*छंद*-
*धाए बिसाल कराल मर्कट भालु काल समान ते।*
*मानहुँ सपच्छ उड़ाहिं भूधर बूंद नाना बान ते ॥*
*नख दसन सैल महाद्रुमायुध सबल संक न मानहीं।*
*जय राम रावन मत्त गज मृगराज सुजसु बखानहीं ॥*
वे विशाल और काल के समान कराल वानर-भालू दौड़े। मानो पंखवाले पर्वतों के समूह उड़ रहे हों। वे अनेक वर्णों के हैं। नख, दाँत, पर्वत और बड़े-बड़े वृक्ष ही उनके हथियार हैं। वे बड़े बलवान् हैं और किसी का भी डर नहीं मानते। रावणरूपी मतवाले हाथी के लिये सिंहरूप श्रीरामजी का जय-जयकार करके वे उनके सुन्दर यश का बखान करते हैं।
*दोहा - ७९*
*दुहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरी जानि।*
*भिरे बीर इत रामहि उत रावनहि बखानि ॥ ७९ ॥*
दोनों ओर के योद्धा जय जयकार करके अपनी-अपनी जोड़ी जान (चुन) कर इधर श्रीरघुनाथजी का और उधर रावण का बखान करके परस्पर भिड़ गये ॥ ७९ ॥
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चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।
तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ॥
*बाबा महाकाल जी की जय*
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