दैनिक सुविचार 🌺🏵️😊🙋‍♂️
February 8, 2025 at 01:43 AM
8.2.2025 एक विदेशी व्यक्ति मेरे पास आया और मुझे कहने लगा, कि *"मैं सांख्य दर्शन पर पुस्तक लिखना चाहता हूं. मैंने कुछ सांख्य दर्शन पढ़ा है, परंतु मेरा इतना सामर्थ्य नहीं है, कि मैं पुस्तक लिख सकूं। आप मेरा सहयोग कीजिए।"* मैंने उसे कहा कि *"यदि मेरे पास इतना समय होता, कि मैं आपकी पुस्तक लिखवा दूं. तो मैं अपनी पुस्तक स्वयं न लिख लेता!"* ऐसे स्वार्थी लोग आपको भी मिलते होंगे, जो दूसरे की 70/80% मेहनत और समय का अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करते हैं, या करना चाहते हैं। *"उनकी अपनी योग्यता केवल 20/30% ही होती है, और दूसरे की योग्यता का लाभ उठाकर अपना नाम कमाना चाहते हैं। अपनी प्रशंसा और प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं। यह तो 'दूसरों का शोषण' कहलाता है।"* ऐसे लोगों से सावधान रहें। दूसरों का सहयोग करना अच्छी बात है। परंतु उसका यह स्वरूप नहीं होता, कि *"वे आपकी 70/80% मेहनत का लाभ ले जाएं, और स्वयं 20/30% ही मेहनत करें।"* यदि दूसरों से सहायता लेनी हो तो उसका स्वरूप यह होता है कि *"80/ 90% परिश्रम आप स्वयं करें, और 10/20% सहयोग अन्य लोगों से लेवें।"* तब तो वह रचना आपकी मानी जाएगी। इतनी ही मात्रा में सहयोग लेना देना चाहिए। यदि आप की इतनी योग्यता न हो, तो ऐसा काम आरंभ नहीं करना चाहिए। अपनी ऐसी इच्छाओं को छोड़ देना चाहिए। पहले अपनी योग्यता बढ़ानी चाहिए। *"जब आपकी योग्यता 80% 90% हो जाए, तब 10/20% दूसरों का सहयोग लेकर कार्य करना उचित होता है। इसी का नाम सभ्यता और मनुष्यता है।"* *"कृपया सभ्यता और मनुष्यता के नियमों का पालन करें। दूसरों की योग्यताओं का अनुचित लाभ लेकर उनका शोषण न करें।"* ---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*
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