दैनिक सुविचार 🌺🏵️😊🙋‍♂️
February 11, 2025 at 01:40 AM
11.2.2025 आप देखेंगे कि यदि 2-4 व्यक्ति कहीं बैठ जाएं, तो वे काम की बात कम करते हैं, और फालतू बातें अधिक करते हैं। *"फालतू बात का मतलब इधर-उधर की राजनीति की बातें, सामाजिक चरित्र की बातें। जैसे कि रिश्वत खोरी बहुत बढ़ गई है, नेता लोग भ्रष्ट हैं, देश की स्थिति खराब है, युवा पीढ़ी भटक रही है, सुल्फा गांजा शराब आदि नशीली वस्तुओं का सेवन बहुत हो रहा है, मांसाहार भी देश में बढ़ गया है, घर घर में कैंसर का रोग देखने को मिल रहा है, आदि आदि।"* इस प्रकार से अनेक विषयों पर खूब चर्चा निंदा चुगली आदि करते हैं। *"ताजा समाचारों पर दो दो घंटे तक टीका टिप्पणी करते हैं। इस प्रकार से बहुत सा समय नष्ट करते हैं।"* इतने समय तक बहस चर्चा करने के बाद भी परिणाम क्या होता है? शून्य = 0. *"जितनी भी समस्याओं पर व्यर्थ की बहसबाज़ी करते हैं, उसका परिणाम कुछ भी नहीं आता। उसमें से एक भी समस्या नहीं सुलझती, और ऐसी फालतू बातें कर करके व्यर्थ ही अपना तथा दूसरों का तनाव बढ़ाते रहते हैं।"* *"यदि इतना समय बचाकर वे वैदिक शास्त्रों का कुछ अध्ययन करते, ईश्वर का चिंतन करते, कुछ ईश्वर का ध्यान करते, किसी रोगी विकलांग आदि व्यक्ति की सेवा करते, तो अधिक लाभ होता। समय का सदुपयोग होता, पुण्य मिलता, शांति मिलती, और जीवन भी सार्थक होता।" "परंतु ये सब अच्छे काम न कर के व्यर्थ ही अपना तथा दूसरों का समय नष्ट करते हैं। इससे हानियां बहुत अधिक मात्रा में होती हैं, और लाभ कुछ नहीं होता।"* इसलिए केवल समस्याओं को ही न गिनवाते रहें। *"या तो वर्तमान परिस्थितियों को बदलने के लिए विधिवत् कार्य करें। अर्थात जो राज्य के अधिकारी हैं, उनको सूचित करें।"* उनसे निवेदन करें, कि *"देश की स्थिति बहुत खराब है, आप कृपया इसे ठीक करें या करवाएं।" "यदि लोगों में इतना सामर्थ्य न हो, कि वे राज्य के अधिकारियों तक देश की समस्याएं नहीं पहुंचा सकते, तो वर्तमान में जो परिस्थितियां चल रही हैं, उन्हें चुपचाप स्वीकार करें, कि "बस संसार ऐसा ही है। यह ऐसे ही चलता है, और हमें ऐसी ही परिस्थितियों में जीना है।" "यदि इस तरह से परिस्थितियों को स्वीकार कर लेंगे, तो तनाव टेंशन आदि से कुछ मात्रा में बचे रहेंगे, और कुछ ठीक-ठाक ढंग से जीवन जी लेंगे।" "तब दूसरे लोग, जिनका सामर्थ्य हो, वे समस्याओं के विषय में राज्य के अधिकारियों को सूचित करें।"* *"कृपया मेरी बात को ठीक प्रकार से समझने का प्रयत्न करें। इस का उल्टा अर्थ न निकालें। मैं आलसी बनकर परिस्थितियों की उपेक्षा करने की बात नहीं कह रहा।"* मैं तो दो विकल्प रख रहा हूं। *"या तो पुरुषार्थ करके परिस्थितियों को बदलें। यह पक्ष अधिक अच्छा है।" अथवा "यदि आप का इतना सामर्थ्य न हो, तब चुपचाप परिस्थितियों को स्वीकार कर लें। फालतू बातें कर कर के अपना और दूसरों का तनाव न बढ़ाएं। " "यदि आप इन दो विकल्पों में से एक काम भी नहीं करेंगे, और पुरुषार्थहीन होकर केवल परिस्थितियों को ही कोसते रहेंगे, तो आप पूरा जीवन ऐसे ही कुढ़ते रहेंगे और दुखी रहेंगे। स्वयं चिंता में डूबे रहेंगे और दूसरों की भी टेंशन बढ़ाते रहेंगे। इससे आपको बहुत अधिक पाप लगेगा, और इसका ईश्वर से दंड भी मिलेगा।"* मैं ऐसा कहना चाहता हूं। *"अतः बुद्धिमत्ता से काम लें, व्यर्थ बातों में समय नष्ट न करें। अपना और दूसरों का तनाव न बढ़ाएं। ईश्वर के दंड से बचें। पुरुषार्थी बनें, समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करें, उलझाएं नहीं। स्वयं सुखी रहें और दूसरों का सुख बढ़ावें। इसी में बुद्धिमत्ता और जीवन की सफलता है।"* ---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*
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